पाकिस्तान के मुक़ाबले में दहाड़ने वाले चीन के सामने भीगी बिल्ली क्यों बने हुए हैं? मनमोहन सरकार पर कमज़ोर चीन नीति का आरोप लगाने वाले मोदी अब क्यों ख़ामोश हैं?

समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ

इधर लगभग एक महीने से ज़्यादा का समय हो गया है और लगातार भारत-चीन सीमा पर अलग-अलग दोनों देशों के सैनिकों के बीच संघर्ष की ख़बरें सामने आ रही हैं। पहले उत्तरी सिक्किम के नाकू ला सेक्टर में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प की ख़बरें आई, उसके बाद ख़बर आई कि लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दोनों देशों के सैनिक पांच मई से ही आमने-सामने हैं।

इस बीच एक ख़बर ऐसी भी आई कि जिसने आम भारतीयों के होश उड़ा दिए। रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने एक न्यूज़ वेबसाइट में लेख के ज़रिए यह दावा किया है कि चीन ने तीन अलग-अलग जगहों पर भारतीय इलाक़ों में घुसपैठ कर ली है। भारतीय सेना के रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने दावा किया है चीन ने पूर्वी लद्दाख के तीन अलग-अलग इलाक़ों में भारत के क़रीब 40 से 60 स्क्वैयर किमी जमीन पर घुसपैठ कर ली है। रिटायर्ड जनरल पनाग के अनुसार, अब जब चीन भारत में घुसपैठ कर चुका है तो वह दिल्ली के सामने समझौते की ऐसी शर्तें रखने की कोशिश करेगा जिसे मानना भारत के लिए आसान नहीं होगा और अगर भारत ने शर्तें नहीं मानीं तो चीन सीमित युद्ध भी छेड़ सकता है। इस बीच भारत के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक न्यूज़ वेबसाइट पर प्रकाशित सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल के इस आर्टिकल को ट्वीट किया है। राहुल गांधी ने लिखा है कि, ‘सभी देशभक्तों को जनरल पनाग का आर्टिकल ज़रूर पढ़ना चाहिए।’ उन्होंने अपने ट्वीट में आर्टिकल की एक पंक्ति भी कोट की है- ‘इनकार कोई समाधान नहीं है।’ जनरल पनाग का मानना है कि मोदी सरकार और सेना ने वास्तविक्ता से मुंह मोड़ लिया है। उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि, ‘हालांकि, मोदी सरकार और सेना ने स्पष्ट रणनीति बनाने और पूरे देश को इससे अवगत करवाने की जगह यह मानने से ही इनकार कर दिया है कि भारत की ज़मीन पर चीनी घुसपैठ हुई है। वह मौजूदा हालात की वजह एलएसी को लेकर दोनों देशों की अलग-अलग धारणा बता रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि भारतीय ज़मीन पर चीन के ज़बर्दस्ती क़ब्ज़े को एलएसी को लेकर अलग-अलग धारणा काहवाला देना बेहद ख़तरनाक है।

कुल मिलाकर क़रीब एक महीने से ऊपर हो गया है चीन और भारत में सीमा पर अलग-अलग जगहों पर टकराव जारी है, लेकिन इस बारे में न तो भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल का कोई बयान आया है और न ही चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ (सीडीस) बिपिन रावत का। हां, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिनों पहले देश की तीनों सेनाओं के प्रमुख, अजित डोभाल और बिपिन रावत के साथ एक बैठक ज़रूर की थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी तीनों सेनाओं के प्रमुख, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ के साथ बैठक की थी। हालांकि इन बैठकों में क्या बातें हुईं, इस बारे में अब तक कुछ ख़ास सार्वजनिक नहीं हुआ है। वहीं इस देश के गृह मंत्री जो बात-बात पर पाकिस्तान को ख़त्म करने की धमकी देते हैं उन्होंने भी अपनी राजनीतिक वर्चुअल रैलियों के माध्यम से ही चीन पर हमला बोला है।

 

इस बीच भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य लेफ़्टिनेंट जनरल एसएल नरसिम्हन ने समाचार पत्र इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा है कि इस बार चीनी पक्ष 2017 के डोकलाम विवाद के समय से कहीं ज़्यादा आक्रामक मालूम हो रहा है, हालांकि उसके सैनिकों की संख्या इस बार उतनी ज़्यादा नहीं लगती। वहीं एक अन्य भारतीय रक्षा विशेषज्ञ का मानना है कि चीन के मामले में भारत अपनी आक्रामकता नहीं दिखा पाता क्योंकि चीन उससे लगभग हर क्षेत्र में कहीं ज़्यादा मज़बूत स्थिति में है। फिर चाहे वह सामरिक और भौगोलिक रूप से हो या इंफ़्रास्ट्रक्चर के मामले में। उन्होंने कहा कि, व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि बिना समझौते के भारत इस विवाद का हल नहीं ढूंढ सकता और आक्रामक रवैये के ज़रिए तो बिल्कुल भी नहीं। वैसे भी चीन आमतौर से भारत पर भारी ही पड़ता है। अगर आप डोकलाम विवाद को याद करें तो लगभग दो महीने तक आमने-सामने रहने के बाद भी चीन ने उस इलाक़े में कई हैलीपैड और इमारतें बना ही ली थीं। डोकलाम विवाद में चीन भारत के सामने झुका हो, ऐसा नहीं हुआ था।

जानकारों का मानना है कि चीन को लेकर 2014 की रैलियों में जिसतर के बायन नरेंद्र मोदी ने दिए थे उससे एक बार ऐसा ज़रूर लगा था कि वह शायद चीन के मुक़ाबले में कोई मज़बूत और कड़ा रुख अपनाएं। लेकिन जब से वह भारत के प्रधानमंत्री बने हैं तब से तो वह लगातार चीन के आगे नमस्तक ही दिखाई दे रहे हैं। इस बीच चीन पहले से कहीं अधिक आक्रमकता दिखा रहा है और बार-बार भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रहा है। वहीं कुछ भारतीय राजनीतिक टीकाकारों का कहना है कि, मोदी सरकार, उनकी पार्टी के नेता और उनके समर्थन मीडिया हल्के लगातार जिस प्रकार देश को हिन्दू-मुस्लिम और भारत-पाकिस्तान के मुद्दों में उलझए हुए हैं उससे चीन-भारत विवाद जैसे मुद्दे काफ़ी पीछे छूट गए हैं। यही कारण है कि जहां लद्दाख़ के एक बड़े भाग पर चीनी सैनिकों ने डेरा डाला हुआ है तो वहीं उससे ध्यान भटकाने के लिए मोदी, अमित शाह और उनके अन्य नेता एवं उनका समर्थक मीडिया बिहार और पश्चिम बंगाल के चुनाव की बातों को बढ़ा चढ़ाकर पेश कर रहा है।

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