कही सत्ता परिवर्तन की आहट तो नहीं है भ्रष्टाचार का मकड़जाल -जनपद में छोटे-छोटे मामलों में बड़े-बड़े नेता अदम पैरवी करते नजर आ रहे हैं। -कुछ जनप्रतिनिधि ऐसे कमाई कर रहे हैं जैसा उनको पहले से मालूम है कि उनका टिकट अगली बार कट जायेगा। -जनपद की ज्यादातर विधान सभाओं व नगर पंचायत का यही हाल ।

अब्दुल मुईद -रिपोर्टर (एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स) 9936900677

-अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक अन्दर ही अन्दर काट रहे हैं मलाई
-नेता कहते हैं कि अधिकारी सुन नहीं रहे और अधिकारी कहते हैं ऊपर से प्रेशर  बहुत ।

 

बाराबंकी। जनपद में फैला भ्रष्टाचार कही सत्ता परिवर्तन का द्योतक तो नही है। भ्रष्टाचार मुक्त से शुरूआत होकर कही खात्मा भ्रष्टाचार पर ही तो नहीं होने जा रहा है। समय के साथ सभी चीजों में परिवर्तन होता है, परिवर्तन ही प्राकृतिक का नियम है, किन्तु कभी-कभी किसी काम की अति ही उसका अंत करती है। भ्रष्टाचार की बात करे तो सभी जगह है किन्तु ऐसा भ्रष्टाचार की जनता के साथ सभी देखकर भी आंख बंद कर ले ऐसा भ्रष्टाचार लगभग सभी विभागों में व्याप्त है। भ्रष्टाचार के खिलाफ जनपद में जंग की शुरूआत हो चुकी है किन्तु उसका परिणाम आने में अभी समय लगेगा। एक-एक करके भ्रष्टाचार समाज में उजागर हो रहे हैं, आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला विधायक से लेकर संासद तक लगा रहे हैं। वही जनपद की तमाम नगर पंचायतों में भितरघातियों द्वारा अन्दर ही अन्दर दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर धड़ाधड़ फायर किये जा रहे हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार भ्रष्टाचार के कारण जनपद का विकास अब धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा है। नये विकास कार्य अब नहीं हो रहे हैं। जनपद स्तर को छोड़कर देखा जाये तो शहर में लगभग 90 प्रतिशत सड़के खस्ता हाल हो चुकी है, कई जगह तो रोड न बनाकर सिर्फ उस पर बड़े-बड़े बे्रकर बना दिये गये हैं। उक्त सड़कों पर सैकड़ों जनप्रतिनिधि प्रतिदिन आवागमन रहता है किन्तु किसी भी अधिकारी, जनप्रतिनिधि की नजर नहीं पड़ती है। सिस्टम भ्रष्ट हो तो जनता की उम्मीदें भी क्षींण हो जाती हैं। सत्ता के लालच में कुछ नेता सब कुछ जानते हुए भी बड़े-बड़े नेताओं की कारगुजारियों को उजागर नहीं कर पा रहे हैं।

विदित हो कि भ्रष्टाचार के कारण ही गरीब और अमीर में अन्तर बढ़ने लगता है और समाज में वैमनस्य पैदा होने लगती है। गरीब की ऊर्जा अमीर के साथ मिलकर निर्माण में लगने के स्थान पर विरोध में लगती है। जनपद में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुका है किन्तु वह दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। फलस्वरूप भ्रष्टाचार को रोग अन्दर ही अन्दर बढ़ता जा रहा है जैसे कैन्सर बढ़ता है। भ्रष्टाचार को खत्म करने में सबसे ज्यादा अहम भूमिका पुलिस की होती है, किन्तु वर्तमान समय मंे पुलिस विभाग में अत्याधिक भ्रष्टाचार फैला है। देशभक्ति और जनसेवा का नारा लगाने वाली यू0पी0 पुलिस जनसेवा के स्थान पर आत्म सेवा में जुटी रहती है। इनके साथ-साथ नगर पंचायत से लेकर अस्पताल, राशन, तहसील और नजूल, स्कूल कालेज, मकन, दुकान हर जगह भ्रष्टाचार तेजी से पनप रहा है।

वर्तमान समय में परिवर्तन के लिए नहीं बल्कि सत्ता सुख पाने के लिए मुद्दे उठाए जाने लगे हैं। आज के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर सामाजिक और सार्वजनिक जीवन में पतन और राजनीति में अवसरवादिता ने अपना स्थान बना लिया है। पहले भ्रष्टाचार को एक असाधारण दोष माना जाता था। बाद में माना जाने लगा कि लोकतंत्र में भ्रष्टाचार तो होता ही है। यदि हम लोकतंत्र कि मर्यादाएं भंग करने वाली चीजों को लोकतंत्र का अंश मानने लगें तो यह हमारे समाज और व्यक्तित्व में आए पतन को ही दर्शाने वाली बात होगी। यदि हम लोकतंत्र कि मर्यादाएं भंग करने वाली चीजों को लोकतंत्र का अंश मानने लगें तो यह हमारे समाज और व्यक्तित्व में आए पतन को ही दर्शाने वाली बात होगी। इस जड़ स्थिति से हमें मध्यवर्ग ही उबार सकता है। भ्रष्टाचार से सबसे ज्यादा नुकसान मध्यम वर्ग को ही होता है। यदि यह वर्ग साहस करके सच को सच कह सके तो हमारे सार्वजनिक जीवन के पतन और राजनीतिक जीवन में आई अवसरवादिता और भ्रष्टाचार से हमें छुटकारा मिल सकता है। जनता बदहाल स्थिति में जी रही है, यही भ्रष्टाचार की सुगबुगाहट सत्ता परिवर्तन की आंधी तो नहीं होगी। परिवर्तन बहुत मायने रखता है। इसी कारण विरोध या संघर्ष आज चेतना के स्तर पर न होकर पावर के स्तर पर होने लगा है। परिवर्तन की आकांक्षा अगर ‘सत्ता’ के लिए हो, ‘पावर’ के लिए हो तो जिस तरह का बड़े-बड़े आंदोलन, नामुमकिन हो जाता है। यहां तो स्थिति आज यह है कि जिस चीज या कि मुद्दे को उठाओ उसे अपने सत्ता में आने कि प्रक्रिया को तेज करने का साधन भर समझ लो। वर्तमान में जनता हित की बात यहां नहीं होती है। हर मुद्दों को निजी स्वार्थ के हित में भुनाया जाता है।

मध्यवर्ग कि उत्पत्ति ‘मध्य’ शब्द से हुई है। मोटे तौर पर यह हमारे देश का वह हिस्सा है, जो पढ़ा-लिखा है, प्रोफेशनल वर्ग से है। हमारे देश में मध्यवर्ग की भूमिका एक सजग और जागरूक वर्ग की रही है। राष्ट्रीय आन्दोलन के समय इस वर्ग के माध्यम से ही चेतना का प्रसार हुआ। अगर हम आज की राजनीतिक पार्टियों को देखें तो सक्रिय रूप से काम करने वाले राजनीतिकों में अधिकतर लोग मध्यवर्ग से रहे हैं। हमारे बुद्धिजीवी वर्ग-जैसे डॉक्टर, पत्रकार, लेखक, शिक्षक, इंजीनियर जैसे सारे लोग जो इस भ्रष्टाचार रूपी फैले मकड़जाल को उखाड़ फेंक सकते हैं, किन्तु वर्तमान समय में किसी को समाज के हित की परवाह नहीं रह गई है। इसी वर्ग के माध्यम से बहुत हद तक हमारी जनता अपनी जरूरतों, पीड़ाओं और सीमाओं को अभिव्यक्त करती है। पत्रकार और मीडिया के लोग आम लोगों की जुबान का काम करते हैं। अभिव्यक्त करने की क्षमता एक बहुत बड़ी क्षमता है। जब तक हम अपनी बात किसी तक पहुचाएँगे नहीं, कोई हमारी तकलीफ कैसे जान सकेगा? और ये लोग ही हमें इस तरह कि समस्याओं से प्रत्यक्ष कराते हैं। आज मध्यवर्ग के सामने बहुत बड़ी चुनौती है?

जनपद के ज्यादातर बड़े नेता पर्दे के पीछे से अपने विरोधियों को किसी न किसी तरीके से फंसाकर राजनैतिक अपनी रोटियाँ सेंक रहे हैं। छोटे-छोटे से मामलों में खुद व्यक्तिगत रूचि लेकर सत्ता का मजा ले रहे हैं। जनपद में बहुत से छोटे काण्डों पर बड़े-बड़े नेता अदम पैरवी करते नजर आ रहे हैं। इससे उनकी छवि धूमिल हो रही है, लेकिन वह लोग सब कुछ जानकार भी अंजान बने हुए, जनता उनकें द्वारा किये जा रहे घोटाले व वैमनस्तापूर्ण कार्यवाही से जागरूक है लेकिन इंतिजार कर रही है समय आने का।
मध्यमवर्ग के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है अपने नैतिक दायित्व को समझने की, प्रलोभनों में नहीं आने की. अपनी स्थिति के कारण यह वर्ग ऐसा कर सकता है। यदि वह इस मोह से खुद को उबार लेगा तो निश्चित ही वह इस डूबते हुए समाज को बचा लेनेवाला ‘तिनका’ साबित होगा।

अब्दुल मुईद -रिपोर्टर (एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स) 9936900677

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