दूध से ज्यादा सफेद था दूध क्रांति के जनक का जीवन, ये दो घटनाएं उनका मुरीद बना देंगी

आज के दौर में जब नेता, अधिकारी अपने बेटा-बेटियों, रिश्तेदारों को सरकारी नौकरी, ठेका और कंपनियां बनवाने के लिए जोड़-तोड़ करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने कुछ ऐसा किया कि आप उन पर गर्व करेंगे, डॉ. कुरियन ऐसे ही थे, पढ़िए उनकी जिंदगी के कुछ किस्से….

श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन के प्रयासों की वजह से आज भारत दुनिया के दुग्ध उत्पादक देशों में सबसे आगे है। वर्गीज कुरियन दुनिया में सबसे बड़े डेयरी विकास कार्यक्रम ‘ऑपरेशन फ्लड’ के वास्तुकार थे। डॉ. कुरियन ने आनंद (गुजरात ) सहकारी डेयरी विकास की स्थापना की, सफेद क्रांति का निर्माण किया और भारत को दुनिया में सबसे बड़ा दूध उत्पादक बनाया। वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को कालीकट के एक ईसाई परिवार में हुआ था और इनकी मृत्यु 90 वर्ष की उम्र में 9 सितम्बर 2012 को हुई। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डॉ. कुरियन ने एक भारतीय राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इस तरह स्थापित कर दिया कि उसने 1949 के बाद से कभी मंदी नहीं देखी। उन्होंने एक शिशु सहकारी दूध उत्पादक संघ के लिए एक प्रसंस्करण संयंत्र की स्थापना की और भारत में डेयरी किसानों के विकास को ज़मीनी स्तर से ऊपर उठाया। गुजरात के एक अंग्रेज़ी चैनल बीबीएन न्यूज़ को डॉ. कुरियन के ख़ास दोस्त एब्रिल एसजे ने एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें उन्होंने डॉ. कुरियन के बारे में कुछ अलग बातें बताई हैं।

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सॉफ्टवेयर इंजीनियर की हाईटेक गोशाला: A-2 दूध की खूबियां इनसे जानिए एब्रिल एस जे कहते हैं, ”मेरे साथ कुरियन के कुछ ऐसे अनुभव हैं जो मैंने उनसे एक मित्र के रूप में साझा किए हैं, ये वो अनुभव हैं जिनके बारे में कोई बात नहीं करता, उन अनुभवों से मैंने पाया कि व्यक्तिगत स्तर पर डॉ. कुरियन बहुत ईमानदार व्यक्ति थे, इसके साथ ही अपनी प्रतिबद्धिताओं के लिए भी वह बेहद समर्पित थे।” वह कहते हैं कि एक बार एक इंटरव्यू में डॉ. कुरियन से पूछा गया था कि वे क्या सोचते हैं कि उनके जीवन में ये ‘दुर्जेय’ परिणाम हासिल करने का रहस्य क्या हो सकता है (सफेद क्रांति, दुनिया में सबसे बड़ी सहकारी व्यवस्था आदि) उनका उत्तर सरल था – ‘निष्ठा’। एब्रिल एसजे कहते हैं, ”डॉ. कुरियन को जितना मैं एक दोस्त के रूप में जानता हूं उससे यही कह सकता हूं कि वाकई वो अपने काम के लिए पूरी तरह से निष्ठावान थे। वह बताते हैं कि दूध के अलावा, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) ने ‘धारा’ के नाम पर विपणन तेल का कारोबार शुरू किया तो उनके कई दुश्मन बन गए, इस परियोजना को सफल बनाने के लिए उन्होंने बहुत कुछ खो दिया था। डॉ. कुरियन की इस काम में जो सहायता कर रहे थे और कुरियन जिनपर काफी विश्वास करते थे, मिस्टर छोटानी। एक अवसर पर छोटानी ट्रेन से सफर कर रहे थे और उन्हें उसी चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया, ऐसा माना जाता है कि ये काम ‘धारा’ प्रोजेक्ट को पसंद न करने वालों ने किया था। इस हादसे में मिस्टर छोटानी बच गए। लेकिन ऐसा कहा जा रहा था कि उनका अगला निशाना डॉ. कुरियन हो सकते हैं। डॉ. कुरियन से कहा गया कि वो अपनी सुरक्षा के लिए बॉडी गार्ड ले सकते हैं लेकिन उन्होंने मना कर द

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बकरियों के दूध से बन रहा दही और पनीर, अच्छे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद एब्रिल एसजे कहते हैं कि डॉ. कुरियन नसीब में भरोसा करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि अगर मुझे कुछ होना होगा तो वो होकर रहेगा, कोई भी बॉडी गार्ड उसे नहीं रोक सकता और मैं इस प्रोजेक्ट से भी पीछे नहीं हटूंगा। इसके बाद पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे उनका ये तेल का प्रोजेक्ट भी सफल हुआ। यह उनके विश्वास, दृढ़ संकल्प और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप के खिलाफ अपने लोगों को उनके निर्विवाद समर्थन का ही नतीजा था। एब्रिल बताते हैं, ‘एक बार मैं डॉ. कुरियन के घर गया। हम उस वक्त कॉफी पी रहे थे जब उनके पास एक फोन कॉल आई।’ मैं जितना सुन पाया उसमें कुरियन पूरी शांति के साथ सिर्फ ‘हां’, ‘नहीं सर’ में ही जवाब दे रहे थे। जब कॉल डिसकनेक्ट हो गई तो वो हमसे बोले – मुख्यमंत्री का फोन था, वो तेल की कीमत कम करने के लिए कह रहे थे। मैंने उनसे पूछा, तुमने क्या कहा? ”मैंने कहा कि मैं इसे नहीं बदल सकता”, उनका जवाब था। इसके बाद इस बात को वहीं खत्म कर हम अपनी बातें करने लगे और कॉफी का आनंद लेने लगे।

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पशुओं को चॉकलेट खिलाकर बढ़ा रहे दूध उत्पादन एब्रिल बताते हैं, ”डॉ. कुरियन की मौत से कुछ समय पहले उन्हें आनंद के कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में नियुक्त किया गया था लेकिन कुरियन ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि उन्हें लगता था कि संस्थान को कुछ बदलावों की ज़रूरत है, जिसे करने की शायद उन्हें छूट नहीं दी जाएगी, कम से कम उस स्तर पर तो बिल्कुल नहीं जिस पर वो चाहते हैं। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए एब्रिल बताते हैं, ”एक समारोह में कुछ एक मौके पर कुछ उच्च राजनीतिज्ञ विश्वविद्यालय के परिसर में अपने नाम और व्यक्तित्व को बढ़ावा देने के लिए काम करना चाहता था। डॉ. कुरियन के मुताबिक, यह आवश्यक नहीं था, इसके अलावा यह उनके सिद्धांतों और विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा के खिलाफ था। उनके ऊपर काफी दबाव था लेकिन उन्होंने इसकी अनुमति नहीं दी और जहाँ तक मुझे याद है, फिर वह समारोह विश्वविद्यालय परिसर में नहीं रखा गया। हालांकि इसके बाद भी कई राजनीतिक हस्तक्षेप हुए जिसके कारण डॉ. कुरियन ने पद से इस्तीफा दे दिया।

 

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