अपराजेय योद्धा शरद के सामने अजित हुए पराजित । भाजपा का सत्ता अभियान छीछालेदर के साथ महाराष्ट्र में रुका। विपक्ष में ना बैठना एवं शिवसेना की ना मानना पड़ा भारी?

*कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया*)

  • *सफलता के शिखर पर असफलता! ! मंथन करे भाजपा?*

भाजपा के बड़ों ने कराई फजीहत!

?? महाराष्ट्र में संपन्न चुनाव के बाद जहां भाजपा थी वहीं से थोड़ा आगे दौड़ कर फिर वही पहुंच गई। भाजपा की फजीहत भाजपा के बड़े रणनीतिकारों की वजह से हो गई! सभी का निशाना चूक गया और बड़ी छीछालेदर के साथ पार्टी का सत्ता अभियान यहां रुक गया? अपराजित योद्धा शरद पवार के सामने बागी भतीजे अजित पवार पराजित हो गये। साफ है कि इस पूरे मामले में देवेंद्र फडणवीस की इस्तीफे के बाद भाजपा को साख के मुद्दे पर भारी कीमत चुकानी पड़ी है!

देश एवं देश के अधिकांशतया प्रदेशों में सत्ता पर काबिज भाजपा को महाराष्ट्र में तगड़ा झटका लगा है। यहां हाल ही में मुख्यमंत्री पद की शपथ लिए देवेंद्र फडणवीस इस्तीफा दे चुके हैं। बागी अजित पवार भी इस्तीफा देकर अपने राजनीतिक भविष्य की अंधी सुरंग में है! पूरे मामले में यहाँ शिवसेना एनसीपी एवं कांग्रेस को साथ लाकर अपनी मुहिम में कामयाब दिख रही है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भाजपा के रणनीतिकारों में जैसे खलबली मच गई। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री की मुलाकात हुई और उसके बाद देवेंद्र फडणवीस का इस्तीफा हो गया। यदि पूरे मामले को बारीकी से देखा जाए तो यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा किसी पार्टी की किरकिरी हुई है तो वह है भाजपा? चर्चाओं के मुताबिक भाजपा यहां जिस प्रकार से सत्ता के लिए उतावली थी उसका उतावलापन ही उसकी साख पर बट्टा लगा गया! भाजपा के रणनीतिकार महाराष्ट्र में फेल हो गए! उन्होंने शरद पवार के घर सेंध लगाई लेकिन अजित पवार भाजपा के लिए असफलता का कलंक बन गए।

महाराष्ट्र की जनता ने वैसे तो शिवसेना एवं भाजपा को जनादेश देकर सत्ता में वापस लाने का काम किया था। लेकिन शिवसेना जब मुख्यमंत्री के पद पर अड़ी तो भाजपा को यह रास नहीं आया। महाराष्ट्र में भाजपा का दिल बड़ा नहीं दिखा। यदि ऐसा होता तो आज शिवसेना व भाजपा की सरकार महाराष्ट्र में बनी नजर आती। भाजपा ने शिवसेना को झिड़क दिया!

शिवसेना ने भी सत्ता के उतावलापन में एनसीपी कांग्रेस से जाकर हाथ मिला लिया। कई दिनों तक सियासी प्रपंच हुए और फिर कांग्रेस शिवसेना तथा एनसीपी सरकार बनाने को राजी हो गए। रात का सपना रात में ही बिखर गया और सुबह मुख्यमंत्री पद पर देवेंद्र फडणवीस ने अजित पवार के साथ शपथ ले ली ।महाराष्ट्र का मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट के निर्देश दिए लेकिन 27 नवंबर से पहले ही मुख्यमंत्री का इस्तीफा महाराष्ट्र को नए पथ पर लेकर चला गया।

महाराष्ट्र में यदि कोई अपराजेय योद्धा बन कर उभरा तो वह है एनसीपी नेता शरद पवार ।शरद पवार ने यह दिखा दिया कि आज भी रणनीति के मामले में उनका कोई सानी नहीं है। वह भाजपा को महाराष्ट्र में आमने-सामने बैठकर चुनौती दे सकने में सफल है। बागी अजित पवार डींगें मार रहे थे कि उनके साथ एनसीपी के काफी विधायक हैं लेकिन बेचारे भाजपा के लिए कुछ ना कर पाए। उप मुख्यमंत्री पद से तो छुट्टी मिली है अलबत्ता अब एनसीपी में भी उनकी राह कठिन है।

राजनीतिक चर्चाओं के मुताबिक भाजपा ने महाराष्ट्र में बड़ी गलती की है। उसके चाणक्य कहे जाने वाले बड़े रणनीतिकार यहां पर धूल फांक बैठे ! पार्टी ने सत्ता के उतावलेपन में शुचिता एवं वैचारिक प्रतिबद्धता तो खोयी ही अलबत्ता उसका सत्ता अभियान भी महाराष्ट्र में बड़ी छीछालेदर के साथ रुक गया है। काश भाजपा यहां विपक्ष में ही बैठती अथवा वह शिवसेना को आगे करती तो शायद उसकी इज्जत बची रहती! लेकिन भाजपा को भी बस केवल महाराष्ट्र में कुर्सी और सत्ता नजर आ रही थी! आखिरकार भाजपा के बड़े इस अभियान में अपने हाथ जला बैठे और पूरे देश में भाजपा की जमकर फजीहत करवा डालें? जाहिर है कि इससे जहां भाजपा को आत्ममंथन करने की आवश्यकता होगी वहीं अब देश में विपक्ष के नेता भी अपनी एकता को नए सिरे से आगे बढ़ाने में कामयाब होंगे!

भाजपा को शिवसेना को सत्ता देने से परहेज था लेकिन एनसीपी से हाथ मिलाने में परहेज नहीं था! उसी तरह एनसीपी और कांग्रेस ने भी भाजपा को भले ही खूब कोसा हो लेकिन हिंदुत्व के अलंबरदार शिवसेना को साथ लेने में उसे भी कोई परहेज नहीं दिखा!

मैं कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया राजनीतिक विश्लेषकों से चर्चा के बाद यह अनुमान लगा सकता हूं कि देश की सियासी स्थिति करवट ले रही है? आने वाले दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति का असर देश के अन्य प्रांतों पर भी पड़ेगा। फिलहाल इसके लिए इंतजार करना होगा ।लेकिन कुछ भी हो महाराष्ट्र में अब नई सरकार के गठन की हवा चल पड़ी है। भाजपा के देवेंद्र फडणवीस एवं बागी अजित पवार इस्तीफा देकर विपक्ष में बैठने की अवस्था में है। जबकि शिवसेना ,कांग्रेस एन सी पी सत्ता पर काबिज होने के लिए तैयारी में जुटे हैं।

इस पूरे नाटक का पटाक्षेप होता नजर आ रहा है। लेकिन इस सियासी प्रदर्शन सबसे ज्यादा यदि किसी की साख को बट्टा लगा है तो वह है भाजपा? स्पष्ट है कि अब भाजपा के बड़े रणनीतिकारों को भी अहंकार की चोटी से नीचे उतर के लिए सोचना होगा! उन्हें समझना होगा कि राजनीति में उन्हें भी टक्कर देने वाले लोग आज भी देश में हैं। जरूरी है कि भाजपा के रणनीतिकार आगे से अब पार्टी की फजीहत ना हो इसके लिए ईमानदारी से सोचें!

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