कुछ पत्रकार मौका देखकर हुए राजनीति में सक्रिय -पत्रकारों ने कलम में डाल रखी है राजनीति की स्याही। -अपनी पत्रकारिता को बेरंग कर दिया राजनीति के चक्कर में। -आज के समय का ज्वलंत मुद्दा।
अब्दुल मुईद सिटी रिपोर्टर-एसएम न्यूज 24 टाइम्स सिटी रिपोर्टर-एसएम न्यूज 24 टाइम्स
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बाराबंकी। जनपद में इस समय कुछ पत्रकारों को राजनीतिक रंग चढ़ा हुआ है। पत्रकारिता का मजाक उड़ाकर पत्रकार क्षेत्र की सक्रिय राजनीति कर रहे हैं जबकि चैथे स्तंभ को स्पष्ट शब्दों में सच पर आधारित लोगों को न्याय दिलाने वाला ऐसा खम्भा बताया गया जिसकी दीवाल को छू लेने पर लोगों को न्याय मिलने की आस हर स्तंभ से ज्यादा रहती है। अधिकारियों से, नेताओं से, समाज से पीड़ित व्यक्ति पत्रकारों की चैखट पर आने के बाद न्याय की ज्यादा उम्मीद रहती है और पत्रकार की कलम से लिखी गई सच्चाई के आधार पर उसे संज्ञान में लेते हुए शासन प्रशासन में उसकी आवाज बुलंद होती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जनपद के साथ-साथ कई कस्बों से लेकर गांव तक की राजनीति पत्रकार कर रहे हैं, मालूम हो कि चुनाव से पूर्व ही कई कलमकार प्रधानी, चेयरमैनी, अध्यक्षी, सभासदी आदि के लिए राजनैतिक रोटियां सेंकने लगे हैं। कई पत्रकार तो अपने आपने भावी प्रत्याशी बताकर वोट भी मांगना शुरू कर दिया है। जनपद की नगर पंचायत बंकी, जैदपुर, सतरिख, हैदरगढ़, देवा, सिद्धौर, नगर पालिका आदि में कई पत्रकार अपने पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया है। इस जनपद के साथ पूरे उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को राजनीतिक रंग चढ़ा हुआ है, जब किसी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है या उस पार्टी के नेता बन जाने के बाद उस पार्टी की गलत नीतियों को जनता के सामने उजागर नहीं कर सकते हैं तथा पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में भी आप नहीं खड़े हो सकते। यह बात कटु सत्य है कि समय-समय पर यह देखने को मिलता रहता है कि जनपद के अन्दर इस समय कई पत्रकार जो मीडिया प्रभारी से लेकर जिला अध्यक्ष और अन्य पदों पर रहकर सक्रिय पत्रकारिता कर रहे हैं। सवाल यह भी उठता है कि आखिर यह कहां तक ठीक है। कलमकार तो अपनी कलम की लेखनी से अपना वजूद तथा समाज के पीड़ित व्यक्तियों को न्याय दिलाते हैं, लेकिन पद व सत्ता के लालच में पार्टी की सदस्यता लेने के बाद उसका विरोध आखिर पत्रकार कैसे उजागर कर सकंेगे। ऐसे पत्रकारों को राजनीतिक करनी चाहिए या फिर पत्रकारिता। चलो जानते हैं चैथा स्त्ंाभ विषय में चैथा खम्भा पत्रकारिता, प्रेस और समाचार को कहा जाता है, चैथा खंभा शब्द न्याय की स्पष्ट क्षमता और राजनीतिक मुद्दों को तैयार करने की निहित क्षमता दोनों में प्रेस और समाचार मीडिया है। हालांकि इसे औपचारिक रूप से राजनीतिक व्यवस्था के हिस्से के रूप में पहचाना नहीं गया है, लेकिन यह महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष सामाजिक प्रभाव को नियंत्रित करता है।
क्या पत्रकार इसी तरह से सियासी रंग में रंगते रहेंगे या फिर पीड़ित, शोषित, दलित, निर्बल को न्याय दिलाने के लिए आगे आयेंगे।
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