बन्दा अपने मालिक की मर्ज़ी में खुश रहे, यही सालेह बन्दे की पहचान है – मौ0 वसी हसन खान

नेवाज अंसारी संवाददाता एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स)

क़दीम तरही शब्बेदारी का 20 वां दौर सम्पन्न

जला के खाक़ वो कर देगा ज़ालिमों का वजूद ,जो शोला दर्द का मजलूम की इक आह में है – हाजी सर वर अली कर्बलाई

बाराबंकी । अन्जुमन ग़ुन्चए अब्बासिया के जेरे एहतमाम क़दीम तरही शब्बेदारी का 20 वां दौर अपने रवायती अंदाज से मौलाना गु़लाम अस्करी हाल, अस्करी नगर, बाराबंकी में सम्पन्न हुआ । जिसका आगाज़ तिलावते कलाम पाक से शुजा हैदर ने की। शब्बेदारी की मजलिस को सम्बोधित करते हुये मौलाना वसी हसन खां साहब फैजाबादी ने कहा कि  बड़े से बड़ा मसला हल हो सकता है अगर लोग अपनी ज़बान पर काबू रखे । उन्होंने यह भी कहा कि अगर बोलना चाँदी है तो चुप रहना सोना है । जबान बदं करके आप अपना काम करते रहिये । अब्दियत के मफ़हूम को बयान करते हुए फरमाया कि बन्दा अपने मालिक की मर्ज़ी में खुश रहे। यही सालेह बन्दे की पहचान है। सारे ओहदों की बुनियाद अब्दियत और बन्दगी है । अन्त में मौलाना ने कर्बला वालों व हज़रते अब्बास (अ़ ) की शहादत का मंजर बयान किया जिसे सुनकर सभी रोने लगे । इस शब्बेदारी की शुरूवात से अब तक बीस वषोँ में 13 वीं बार (भाग लेने) शिरकत करने पर अन्जुमन के सरपरस्त व मौलाना वसी हसन खां साहब को अन्जुमन की ओर से तोहफा उनकी खिदमत में पेश किया गया। मजलिस से पहले बाराबंकी के मकामी शायरो ने अपने अपने तरही कलाम पेश किये। जिसमें उस्ताद शायर ए अहलेबैत  सईद जै़दपुरी ने पढ़ा – उनको ये ज़िद है ज़ालिमों को पारसा कहो, हम कहते है बुरा है जो उनको बुरा कहो।  कशिश सण्डीलवी ने पढ़ा – हैदर का शेर आया है मैदां में जिस घड़ी, फौजे अदू के होश उड़े फाख़्ता कहो।  अजमल किन्तूरी ने अपना कलाम पढ़ा- मिटेगा हज़रते हुज्जत के नूर से एक दिन, वुजूदे कुफ्र जो अब तक शबे स्याह में है। मुजफ़्फर इमाम बाराबंकवी ने पढ़ा – नहरे फु़रात बेटे के कब्जे में देखकर जिबराईल से अली ने कहा मरहबा कहो। हाजी सरवर अली करबलाई नेअपना कलाम पढ़ा – जला के खाक़ वो कर देगा ज़ालिमों का वजूद ,जो शोला दर्द का मजलूम की इक आह में है।उसको वजूद ए दीन ए रसूल ए खुदा कहो ,बाक़ी  है  जिससे   दीन  उसे करबला कहो ।शबी अहमद आब्दी ने पढ़ा – मज़ा न दौलते मंसब व इंसो जाँ में है, जो लुत्फ़ शामों सहर जिक्रे ला इलाहा में है।  कामयाब सण्डीलवी ने पढ़ा – वो दीन की बक़ा के लिए हो गए निसार शामिल थी उनके खून में शह की रज़ा कहो। जाकिर इमाम बाराबंकवी ने पढ़ा- अब्बास की बहन ने बचाई है करबला  , जब फर्शे ग़म पे आओ इन्हे शुक्रिया कहो। इसके अलावा तमाम छोटे बच्चों ने भी नज़रानये अक़ीदत पेश किया । शब्बेदारी में जाफर इमाम के अज़ाखाने से अलम ए हजरत ए अब्बास उठकर मौलाना गुलाम अस्करी हाल में आया। शब्बेदारी की निजामत कशिश सण्डीलवी ने अपने बेहतरीन अंदाज में की। मजलिस के बाद मुल्क की मशहूर व मारूफ अन्जुमन व बाराबंकी की शान अन्जुमन गुन्चए अब्बासिया ने अपना तरही कलाम पढ़ा – बर्पा जो हो रही है करोना में मजलिसे, इसको गमे हुसैन का इक मोजिज़ा कहो ।इसके बाद तमाम अन्जुमनों का नम्बर करा के  ज़रिये हुआ । जिसमें पहला नबंर अन्जुमन सदाए हुसैन बाराबकी ने पढ़ा – सकीना कहती थी रोकर मेरे भइय्या अली अकबर । उसके बाद अन्जुमन ग़ुलामें असकरी, बाराबकी ने पढ़ा – मौला अली को फातहे खैबर कहो अगर , अब्बास को भी फातहे करबोबला कहो। आखिर में अन्जुमन इमामिया, बाराबकीं ने पढ़ा – बेमिस्ल है वफाए अलमदारे कर्बला, ग़ाजी की इस वफा को भी रश्के वफा कहों।  रात भर अन्जुमनों ने नौहाख्वानी और सीनाज़नी करके जनाबे ज़हरा (स0) को उनके लाल का फुरसा दिया। शब्बेदारी में शिरकत करने वाली तमाम अन्जुमनों को अन्जुमन की जानिब से बतौर तोहफा हदिया भी दिया गया। शब्बेदारी में रात भर चाय व पानी और नजरे मौला का इंतजाम किया गया। अन्त में अन्जुमन के जनरल सिक्रेटरी  कशिश सण्डीलवी व सदर शाहिद हुसैन रिज़वी और कन्वीनर क़मर इमाम आब्दी ने तमाम अज़ादारो, अन्जुमनों , मोमिनों का शुक्रिया किया। शब्बेदारी में कोविड- 19 की गाइडलाइन के मद्देनजर सोशल डिसडिस्टेन्सिन्ग, मास्क व सेनेटाइज़र के साथ नियमों का खयाल रखा गया।नेवाज अंसारी संवाददाता एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स)

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