सुप्रीमकोर्ट ने खारिज कीं सभी 18 पुनर्विचार याचिकाएं, नहीं खुलेगा राम मंदिर का केस

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अयोध्या मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच का फैसला आ गया है. इस मामले में सभी पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी गई है. बंद चैंबर में पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 18 अर्जियों पर सुनवाई की और सभी याचिकाएं खारिज कर दी गईं. इस मामले में 9 याचिकाएं पक्षकार की ओर से, जबकि 9 अन्य याचिकाकर्ता की ओर से लगाई गई थी.
इन याचिकाओं की मेरिट पर भी विचार किया गया था. इससे पहले निर्मोही अखाड़े ने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का फैसला किया. निर्मोही अखाड़े ने अपनी याचिका में कहा कि फैसले के एक महीने बाद भी राम मंदिर ट्रस्ट में उनकी भूमिका तय नहीं हुई है. कोर्ट इस मामलें में स्पष्ट आदेश दे. लेकिन अब उनकी याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं.
चीफ जस्टिस एसए बोबडे के साथ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और संजीव खन्ना सुनवाई करेंगे. इस पीठ में अब जस्टिस संजीव खन्ना नया चेहरा होंगे. पहले बेंच की अगुवाई करने वाले तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर हो चुके हैं. संजीव खन्ना ने उनकी जगह ली है. शीर्ष अदालत ने अयोध्या जमीन विवाद मामले में नौ नवंबर को अपना फैसला सुनाया था. अदालत ने विवादित जमीन रामलला को यानी राम मंदिर बनाने के लिए देने का फैसला किया था.
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की विशेष पीठ के सामने 9 नवंबर को दिए अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए कुल 18 याचिकाएं दाखिल की गईं. इनमें 9 याचिकाएं पक्षकारों की ओर से और शेष 9 अन्य याचिकाकर्ता की ओर से थी.
चूंकि ये रिप्रेजेंटेटिव सूट यानी प्रतिनिधियों के जरिए लड़ा जाने वाला मुकदमा है, लिहाजा सिविल यानी दीवानी मामलों की संहिता सीपीसी के तहत पक्षकारों के अलावा भी कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है. फैजाबाद कोर्ट के 1962 के आदेश के मुताबिक सीपीसी के ऑर्डर 1 रूल 8 के तहत कोई भी नागरिक पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है.
सुनवाई से ठीक एक दिन पहले निर्मोही अखाड़ा भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. अखाड़ा ने याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने 9 नवंबर के फैसले में केंद्र को राम मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट में इसे पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने का निर्देश दिया था.
फैसला सुनाए एक महीने से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अब तक इसकी भूमिका और प्रतिनिधित्व को परिभाषित नहीं किया गया है, यानी अखाड़ा इस संबंध में स्पष्टीकरण चाहता है. साथ ही याचिका में विवादित अधिगृहित 2.77 एकड़ जमीन के बाहर इसके स्वामित्व वाले कई मंदिरों को वापस करने की मांग की भी की गई है.
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