स्वास्थ्य और सौन्दर्य का शत्रु मोटापा भगाने के 27 घरेलु उपाय

संपादक मोहिनी शर्मा एडवोकेट एसएम न्युज24 टाइम्स 8564852662

एसएम न्युज24 टाइम्स/मोटापे का अर्थ है- शरीर में चर्बी यानी वसा का ज़्यादा मात्रा में कट्ठा हो जाना । चर्बी भी अजब चीज़ है । अगर संतुलन में हो तो शरीर को सुडौल बनाए रखती है , कम हो तो आदमी बेडौल दिखता है और ज़्यादा हो जाए तो बेडौल ही क्या पूरा शरीर डाँवाँडोल हो जाता है । अर्थात् एक सीमा तक चर्बी ज़रूरी है , इसके बाद गैरज़रूरी । जिनके शरीर में चर्बी संतुलित मात्रा में है , उनके लए तो चिंता की कोई बात नहीं है पर जिनके शरीर में चर्बी की कमी है , वे चीं बढ़ाने के लिए और जिनके शरीर में चर्वी ज्यादा है , वे इसे घटाने के लिए परेशान दिखते हैं ।इस अध्याय में हम चर्बी बढ़ने अर्थात् मोटापे की समस्या से नेजात पाने की ही चर्चा करेंगे । मोटापे की समस्या के जैविक कारणों पर तमाम वैज्ञानिक विश्लेषण पलब्ध हैं , पर यहाँ उनकी गंभीर चर्चा बहुत ज़रूरी नहीं दिखती क्योंकि यह ( स्तक जनसामान्य को ध्यान में रखकर लिखी जा रही है।

मोटापे की समस्या के कुछ मोटे – मोटे पहलू जान लेना तो उपयोगी है ही ।

दरअसल मोटापे की समस्या मुख्य रूप से दो तरह से पैदा होती है । कुछ लोगों में मोटापा वंशगत प्रभाव से आता हैया शरीर की अन्दरूनी मशीनरी सी होती है कि वे जो कुछ खाते हैं उसका ज़्यादा हिस्सा ची में तब्दील हो जाता यानी एक वर्ग ऐसा है जिनके शरीर में चर्बी जमा करने की ख़ास प्रवृत्ति होती ।ऐसे लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति हमेशा चौकन्ना रहने की ज़रूरत होती । मोटापे का दूसरा और सबसे व्यापक कारण है लापरवाही भरी दिनचर्या ।जरूरत से ज़्यादा और सारे दिन कुछ न कुछ खाते रहने , आलस्य भरा और ग्महीन जीवन बिताने , भोजन के बाद दिन में सोने , तली – भुनी , वसायुक्त मरीजों का ज़्यादा सेवन करने जैसी आहार – विहार की लापरवाहियों की वजह से यादातर लोग मोटापे के शिकार बनते हैं ।

एक सवाल यह है कि आखिर किस स्थति को हम मोटापा कहेंगे ? तो इसका सामान्य सा उत्तर यह है कि जब तक रीर की चुस्ती — फुर्ती कायम है और मन में उत्साह – उमंग बना हुआ है , तब तक मोटापे या दुबलेपन जैसी कोई समस्या नहीं है ।

यूँ सामान्यतः जितने इंच शरीर की लंबाई हो लगभग उतने ही किलो शरीर का वजन हो तो इसे संतुलित स्थिा मानी जाती है । इसमें उन्नीस – बीस के फर्क से कोई खास अन्तर नहीं पड़ता लेकिन जब फर्क ज़्यादा बढ़ने लगे तो समझिए कि सावधान होने का समय गया है ।

जिन बुजुर्गों का वज़न , 30-35 वर्ष की उनकी स्वस्थ अवस्था जितः आज भी बना हुआ है , वे अपने को अच्छी स्थिति में मान सकते हैं ।

मोटापे का आक्रमण सबसे पहले अक्सर पेट , कमर , कूल्हों और जाँघों पर होता है । इसके बाद गर्दन , चेहरा , हाथ – पैर व शरीर के शेष अंग इस गिरफ्त में आते हैं ।

ध्यान रखने वाली बात है कि शुरूआती दौर में , या जब मोटापा पेट , कमर , कूल्हों और जाँघों तक ही सीमित है तब तक इसे दूर कर ज़्यादा आसान है । लेकिन जब पूरे शरीर पर मोटापा अपना मजबूत कब्जाज लेता है तो इसे हटा पाना तकलीफ़देह और मशक्कत भरा काम हो जाता है।

खैर , स्थिति जो भी हो , अगर मोटापे से ग्रस्त लोग अपना स्वास्थ्य और सौन्दर्य वापस लाना चाहते हैं तो उन्हें अविलम्ब संकल्प की मजबूती के सा कमर कसकर कुछ उपायों पर अमल करने की तैयारी कर ही लेनी चाहि अन्यथा भविष्य की देहरी पर मधुमेह , हाई ब्लडप्रेशर , कब्ज , गैस , हृदय रो दमा , गठिया आदि अन्यान्य रोग उनका स्वागत करने को तैयार मिलेंगे , यह जान लें ।

वैसे मोटापे से त्रस्त लोग इससे निजात पाने के लिए जाने क्या – क करते हैं और कहाँ – कहाँ भटकते हैं , पर ज्यादातर ऐसा ही होता है कि मोटा अन्तिम दम तक साथ नहीं छोड़ता । यह भी गौरतलब है कि मोटापे के इलाज चक्कर में अक्सर लोग ज़्यादा खतरनाक बीमारियों के शिकार बन जाते हैं ।

सीधी सी बात यह है कि मोटापा दूर करने का कार्यक्रम बहुत सोच – समझक बनाएं और मुस्तैदी से उसका पालन करें ।

दवाओं का सहारा लेने का इरादा हो इतना याद रखें कि एलोपैथी में मोटापा घटाने की अब तक जो भी दवाएं हैं , निरापद कतई नहीं हैं । इन दवाओं से आप ज़्यादा बड़ी मुसीबत में फंस सकते.

प्राकृतिक चिकित्सा से अच्छे परिणाम मिल सकते हैं । आयुर्वेद तमाम नुस्खे निरापद और कारगर हो सकते हैं , पर इनमें भी हर किसी नुस्खे सिर्फ जड़ी – बूटियों के नाम पर ही आँख मूंदकर नहीं आजमाया जा सकत पथ्य – अपथ्य का ध्यान रखते हुए होम्योपैथी और बायोकैमी दवाओं से वज़ घटाना पूरी तरह सुरक्षित माना जा सकता है ।

कई लोग सोच सकते हैं कि स्वदे पोन्नति चिकित्सा की बात करते – करते होम्योपैथी का ज़िक्र कैसे ? तो यहाँ अति संक्षेप में यह बता देना उचित है कि होम्योपैथी के सिद्धांत और आयुर्वेद की मूल मान्यताओं में कहीं कोई विरोधाभास नहीं है , बल्कि कई मायनों में होम्योपैथी कहीं ज़्यादा आयुर्वेदिक पद्धति है ।

 

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