एम्बुलेंस दुरुपयोग से उपजे सवाल और समाधान

प्रदीप सारंग 9919007190

एम्बुलेंस के अवैध प्रयोग सम्बन्धी हाल की घटनाओं ने सभी को अचंभित कर रखा है। एम्बुलेंस दुरूपयोग की ये कोई नई घटना नहीं है इससे पूर्व भी घटनाएं प्रकाश में आती रही हैं। किंतु मुख्तार प्रकरण से चर्चा में आई दोनों एम्बुलेंस पंजाब में आवगमन में प्रयुक्त तथा पंजाब से उत्तर प्रदेश लाने वाली एम्बुलेंस बाराबंकी में पंजीकृत है। और दोनो के फिटनेश सर्टिफिकेट की तिथि बीत चुकी थी बिना नवीनीकरण कराए एम्बुलेंस रोड पर चलाई जा रही हैं। एक एम्बुलेंस का पंजीकरण ही फर्जी पाया गया है। न अस्पताल का अता पता है न स्वामी का। इसके अतिरिक्त इसी हफ्ते बाराबंकी स्थित जैदपुर कोतवाली, प्रभारी धर्मेन्द्र रघुवंशी द्वारा पकड़ी गई एम्बुलेंस UP 35 AT 5855 में रॉयल ब्लू ब्रांड की अवैध शराब की सैकड़ों दर्जन शीशियाँ बरामद हुई हैं। जाँच में एम्बुलेंस के रूप में प्रयुक्त वाहन का वास्तविक नम्बर HR 55 G 7064 पाया गया है। इमरजेंसी वाहन के रूप में निर्मित एम्बुलेंस के दुरूपयोग की घटनाएं चिंताजनक हैं। ऐसी घटनाओं से कुछ न कुछ शिक्षा तो लेनी ही चाहिए।


मुख्तार एम्बुलेंस से जुड़े दोनों तथ्य ऐसे हैं जिनसे सरकारी कार्यशैली पर ही सवाल खड़े किये जा रहे हैं। जबकि ये सवाल कार्यशैली के न होकर व्यवस्था के हैं, प्राविधानों से सम्बंधित हैं। दरअसल सच ये है कि जब एम्बुलेंस के पंजीकरण के लिए अलग से प्राविधान ही नहीं हैं तो सरकारी मशीनरी क्या करे..? नियमावली के तहत वाहन स्वामी का दायित्व होता है कि वह अपने वाहन के अभिलेख, बीमा, फिटनेस आदि को अद्यतन रखे। इसी प्राविधान के तहत परिवहन विभाग मुक्त है, जबकि कम्प्यूटर युग है ऐसे प्राविधान बन जाने चाहिए कि जब भी वाहन सम्बन्धी किसी अभिलेख के नवीनीकरण की तिथि आये तो विभाग वाहन स्वामी को सूचित करे। इससे होगा ये कि विभाग के पास ऐसे सॉफ्टवेयर होंगे जिससे हर रोज नवीनीकरण कराए जाने वाले वाहनों तथा वाहन स्वामियों की सूची सहित अनेक जानकारियां स्वतः सामने आ जाया करेंगी। जिससे फर्जी पते पर पंजीकरण फर्जी नाम से पंजीकरण की पोल खुल जाने का एक अवसर मिल जाया करेगा। दूसरे रोगी वाहन जिनके फिटनेश नही हैं बीमा नही है रोड पर चल नही सकेंगे। वाहन स्वामी को उनके मोबाइल पर व्हाट्सएप पर मैसेज भेजकर, काल करके तथा रजिस्टर्ड डाक से हिदायत दी जा सकेगी। वाहन स्वामी के मेल भी विभाग ले सकता है। आखिर डिजिटल भारत बनाने पर तुली सरकारों को कुछ प्राविधान बदलने ही होंगे।
जहाँ तक दोनों एम्बुलेंस के पंजीकरण बाराबंकी में होने का सवाल है इसमें दो तथ्य उजागर होते हैं एक एम्बुलेंस जिसका स्वामी फेंक है वो तो फ्राड का मामला है और दूसरी एम्बुलेंस जिसके स्वामी महानिदेशक चिकित्सा हैं इसमें सरकार की खुद की करतूत है। किसी भी जनपद में खरीदे गए वाहन को उसी जनपद में पंजीकरण होना चाहिए किन्तु एक नियम आड़े आ जाता है जिसके चलते सरकार खुद अपने नियम से आँख मिचौली खेलती है। नियम ये है कि वाहन की कैटेगरी निर्धारित है कि किस कैटेगरी का वाहन किस जनपद में चल सकेगा। चूंकि लखनऊ में इस कैटेगरी के वाहन पंजीकरण कराए नही जा सकते हैं इसलिए अधिकारियों द्वारा अधीनस्थ अधिकारियों को आदेश देकर निकट के जनपद बाराबंकी में पंजीकरण करा दिए जाते हैं। ये खेल कोई नया नहीं है बल्कि दर्जनों वर्षों से ऐसा होता रहा है। न सिर्फ एम्बुलेंस बल्कि 100 डायल जोकि 112 है के वाहन भी आसपास के जनपदों में प्रयुक्त वाहन बाराबंकी में पंजीकृत हैं।

जो भी हो नियमावली में बदलाव आवश्यक है विशेषकर एम्बुलेंस मामले में ताकि कम से कम रोगी वाहन को अद्यतन रखा जा सके एवं एम्बुलेंस की गणना एवं मॉनिटरिंग अलग से हो सके। सभी वाहन के लिए हो जाये तब तो बेहतर ही रहेगा।एम्बुलेंस यानी आकस्मिक रोगी वाहन। एक ऐसा वाहन जिसको बनाया ही इसप्रकार गया है जिससे घायल, रोगी, बीमार को लाने ले जाने में सुविधा जनक रहे और आरम्भिक चिकित्सीय सुविधा सरल सुलभ रहें, साथ ही सायरन सहित नीली बत्तियां छत पर लगाई गयी हैं ताकि आवागमन में यातायात सुगम हो सके। इसप्रकार एम्बुलेंस के मायने हैं “सचल प्राथमिक चिकित्सीय रोगी वाहन”।

सायरन व बत्तियों के विधिक प्राविधान के कारण आवागमन में प्राथमिकता प्राप्त है। इसकारण रोगी वाहन यानी एम्बुलेंस अपेक्षाकृत कम समय में दूरी तय कर लेते हैं। एक विशेष प्राविधान ये है कि समान्य क्रम में शंका के आधार पर अन्य वाहन की तरह एम्बुलेंस/रोगी वाहन की रोककर जाँच न की जाए ताकि रोगी को अस्पताल पहुँचने में विलम्ब न हो।उपरोक्त प्राविधानों के कारण शातिर दिमाग के लोगों ने एम्बुलेंस की इन विशेष सुविधाओं का लाभ अन्यत्र प्राप्त करने के उद्देश्य से दुरूपयोग आरम्भ कर दिया। जिनमें तस्करी के लिए तथा पुलिस की पकड़ से बच निकलने के लिए अपराधियों की नजर सबसे पहले इस विशेष अधिकार और सुविधाओं से युक्त रोगी वाहन यानी एम्बुलेंस पर गयी। कई बार एम्बुलेंस में तस्करी का अवैध माल पकड़ा भी गया है। इधर हाल में मुख्तार की एम्बुलेंस खुद एक बड़ा उदाहरण है।

यही समय है जब एम्बुलेंस के पंजीकरण व खरीद फरोख्त पर विशेष प्राविधान बनाये जाने की कवायद शुरू हो जाए तो बेहतर रहेगा। जब इस वाहन की संरचना और विधिक सुविधाएं विशेष हैं तो पंजीकरण व मॉनिटरिंग भी विशेष होनी ही चाहिए। किन्तु अन्य वाहनों की तरह ही इस विशेष वाहन का भी पंजीकरण होता है जबकि एम्बुलेंस के पंजीकरण की अलग नियमावली बनाई जानी चाहिए।किसी जनपद में एम्बुलेंस की गणना अलग से नहीं की जाती है न ही कोई अलग से अभिलेख तैयार होते हैं। अन्यान्य वाहनों की तरह ही एम्बुलेंस के पंजीकरण भी हो रहे हैं। जबकि समय और परिस्थितियों की माँग है कि एम्बुलेंस की अलग से नीति बने और पंजीकरण से लेकर मॉनिटरिंग तक अलग से प्राविधान बनाये जाएं। पंजीकरण से पूर्व स्वास्थ्य विभाग की संस्तुति को भी शामिल किया जाए। जिससे स्वास्थ्य विभाग के पास एम्बुलेंस की गणना और मॉनिटरिंग हेतु अभिलेख तैयार हो सकें।
एम्बुलेंस नियमावली बनाने पर गम्भीर विचार इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि एम्बुलेंस नामक वाहन में घायल, रोगी, बीमार ले जाये जाते हैं जिन्हें समय से अस्पताल पहुँचना और पहुँचाना होता है। (सरकार और समाज का न सिर्फ ध्यानाकर्षण बल्कि बतौर सबक, कुछ सवालों से लेकर समाधान तक की यात्रा कराता है लेखक का यह आलेख)

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