केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने कई साल के अध्ययन में पता लगाया है कि जिस क्षेत्र में आम के ज्यादा बाग हैं, वहां पर कीटों को नियंत्रित करना मुश्किल है, जबकि उन क्षेत्रों में प्रबंधन आसानी से कर सकते हैं, जहां पर कम पेड़ हैं।

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आम की खेती करने वाले किसानों की शिकायतें आ रहीं हैं कि कीटनाशकों के छिड़काव के बाद कीटों का नियंत्रण नहीं हो पा रहा है। जबकि इसके पीछे कई दूसरे कारण हैं।कीटनाशकों में मिलावट, गलत रसायनों का प्रयोग, कीटों के नियंत्रण करने वाले मित्र कीटों की संख्या में अत्याधिक कमी और कीड़ों में कीटनाशक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता ऐसे कई कारण हैं।जिन क्षेत्रों पर आम की ज्यादा क्षेत्रफल (90 प्रतिशत) में खेती की जा रही है वहां कुछ कीटों पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो गया है। ऐसे क्षेत्र जहां पर लगभग 50 प्रतिशत क्षेत्रफल पर आम के बाग हैं, कीटनाशकों के प्रयोग से अच्छी सफलता प्राप्त की जा रही है।

ऐसे क्षेत्र जहां लगभग 10 प्रतिशत क्षेत्र में आम के बाग हैं वहां पर कीटों से समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के मलिहाबाद के मुकाबले बाराबंकी में कीट नियंत्रण आसान है और केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर किसान सफलतापूर्वक कीटों का नियंत्रण कर रहे हैं।संस्थान के वैज्ञानिकों ने कई वर्षों के अध्ययन में यह पाया की आम की खेती विस्तृत क्षेत्र में (90 प्रतिशत से अधिक) होने पर एक बाग में कीट का नियंत्रण दूसरे बाग से कीटों के आ जाने के कारण बेकार हो जाता है।

कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण कीटों का रोकथाम न हो पाने के साथ ही परागण की भी समस्याएं आ रही हैं, जिसके कारण बहुत अधिक संख्या में बौर आने के बाद भी झुमका के कारण फल कम लग रहे हैं। आम के अधिक क्षेत्रफल वाले स्थानों में कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण परागणकर्ता की संख्या बहुत कम हो गई है। उन क्षेत्रों में जहां पर आम के कम बाग हैं, परागणकर्ता अधिक संख्या में उपलब्ध हैं और काफी मात्रा में फल उत्पादन हो रहा है। इस समय उत्तर प्रदेश के मुख्य आम उत्पादक क्षेत्रों में भुनगा, थ्रिप्स (रूजी) और सेमीलूपर के आक्रमण के कारण आम की फसल पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। भुनगा के वयस्क और बच्चों के आक्रमण के कारण आम के फूल और छोटे-छोटे फल गिर जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण इनके द्वारा रस चूसना है। भुनगा के कारण लासी का उत्पादन एक आम बात है और यह चिपचिपा पदार्थ पत्तियों और अन्य भागों में कालापन आने का प्रमुख कारण है। आम की थ्रिप्स जिसे किसान रुजी भी कहते हैं नए पत्तों और बौर निकलने के साथ ही आक्रमण शुरू कर देती है। इसकी अवयस्क और वयस्क दोनों ही अवस्थाएं आम की फसल को हानि पहुंचाती हैं। इनके द्वारा नई पत्तियों, विकसित होने वाली कलिका और फूलों और नन्हें फलों पर रस चूसने के कारण कुप्रभाव पड़ता है। परिणाम स्वरूप पत्तियां मुड़ने लगती हैं और फलों पर सिल्वर या भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इन धब्बों का मुख्य कारण रूजी के द्वारा रस चूसने के परिणाम स्वरूप कोशिकाओं का मरना है। अधिक प्रकोप होने पर यह कीट नई निकल रही वृद्धि को पूरी तरह से खत्म कर देते हैं। सेमीलूपर नई वृद्धि और छोटे फलों को प्रभावित करते हैं। इसके कारण नई वृद्धि और फल दोनों ही प्रभावित होते हैं। संस्थान के वैज्ञानिकों ने रुजी को नियंत्रित करने के लिए लगभग 20 कीटनाशकों के प्रयोग में यह पाया कि अधिकतर कीटनाशक इस को समाप्त नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में नियंत्रण के लिए कारगर उपाय विकसित करने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है। यह कीट बागों में बहुत कम समय के लिए ही मिलता है। उस दौरान नियंत्रण संबंधित प्रयोगों को करने के लिए अधिक समय नहीं मिल पाता है। वैज्ञानिक इस कीट को दूसरे पौधों पर साल पर जीवित रखकर प्रभावी नियंत्रण के उपाय विकसित करने के लिए प्रयत्नशील हैं। इसके अतिरिक्त यह भी प्रयास है कि थ्रिप्स में किन रसायनों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता आ गई है। इसके लिए विशुद्ध कीटनाशक (टेक्निकल ग्रेड) का प्रयोग करके रसायनों के अप्रभावी होने के कारण को समझने का प्रयास किया जा रहा है।
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