भगवान शनि देव न्याय के देवता: शनि केवल दंड ही नहीं देते बल्कि शुद्ध कर्म करने वालों को आशीर्वाद भी देते

पंकज पाराशर छतरपुर

.शनि देव व्यक्ति के कर्मों का फल, न्याय या दंड देते, भगवान शिव ने भगवान सूर्य व माता छाया के पुत्र शनि महाराज को नवग्रहों का माना न्यायाधीश.!!

भगवान शनि केवल दंड ही नहीं देते बल्कि शुद्ध कर्म करने वालों को आशीर्वाद भी देते हैं। शनि देव न्याय के देवता हैं और वह व्यक्ति को उसके कर्मों का ही फल अथवा दंड देते हैं। इसी कारण भगवान शिव ने शनि महाराज को नवग्रहों में न्यायाधीश का काम सौंपा है। शनि, भगवान सूर्य तथा छाया के पुत्र हैं। इनकी दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मपुराण के अनुसार, बचपन से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। बड़े होने पर इनका विवाह चित्ररथ की कन्या से किया गया। इनकी पत्नि सती साध्वी और परम तेजस्विनी थीं। एक बार पुत्र प्राप्ति की इच्छा से वे इनके पास पहुचीं पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में मग्न थे। इन्हें बाह्य जगत की कोई सुधि ही नहीं थी पत्नि प्रतिक्षा कर थक गयीं तब क्रोधित हो उसने इन्हें शाप दे दिया कि आज से तुम जिसे देखोगे वह नष्ट हो जाएगा। ध्यान टूटने पर जब शनि देव ने उसे मनाया और समझाया तो पत्नि को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किन्तु शाप के प्रतिकार की शक्ति उसमें ना थी। तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा किसीका अनिष्ट हो। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण इन्द्रनीलमणी के समान है। वाहन गीध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। ये अपने हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। यह एक एक राशि में तीस तीस महीने रहते हैं। शनि देव की आराधना करनी चाहिए, पीपल पर जल अर्पित कर पूजा पाठ भी करनी चाहिए l शनि की अत्यन्त सूक्ष्म दृष्टि है। शनि अच्छे कर्मो के फलदाता भी है। शनि बुर कर्मो का दंड भी देते है। जीवन के अच्छे समय में शनिदेव का गुणगान करो l आपतकाल में शनिदेव के दर्शन करो। मुश्किल पीड़ादायक समय में शनिदेव की पूजा करो। दुखद प्रसंग में भी शनिदेव पर विश्वास करो। जीवन के हर पल शनिदेव की प्रति कृतज्ञता प्रकट करो।

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