गायत्री परिवार द्वारा सात दिवसीय श्रीराम कथा का किया गया आयोजन
अब्दुल जब्बार एड्वोकेट व् डॉ0 मो0 शब्बीर के साथ अनिल कुमार मिश्रा की रिपोर्ट
भेलसर(अयोध्या)जीवन का स्वर तो प्रत्येक व्यक्ति को प्यारा लगता है पर मृत्यु का स्वर डरावना लगता है।लेकिन जीवन के स्वर की अपेक्षा मृत्यु का स्वर व्यक्ति के लिए सत्य का साक्षात्कार कराने में अधिक सहायक है।
गायत्री परिवार रुदौली द्वारा आयोजित सात दिवसीय श्रीराम कथा के चतुर्थ दिवस पर मानस दीदी माँ मंदाकिनी राम किंकर ने रामलीला मैदान में कही।कहा कि भौतिक पदार्थ से भरा हुआ शरीर है।उस शरीर का ही एक अंग नेत्र है,तो एसी परिस्थिति में नेत्र के द्वारा वही तो दिखाई देगा जो भौतिक होगा।ईश्वर को आँखे मूंद कर खोजे। इसका तात्पर्य हुआ कि फिर वही देह की प्रमुखता,इन्द्रियों की प्रमुखता का परित्याग करके जब हम अन्तर्मुख हो शान्तिस्वरूपा,भक्तिस्वरुपा,शक्तिस्वरूपा ईश्वर को खोजने की चेष्टा करेगें तभी हम उनका साक्षात्कार कर सकेगें।केवल स्थूल नेत्रॉ से,शरीर के माध्यम से केवल बाहर ही हम शान्ति पाना चाहें,केवल बाहर ही हम भक्ति पाना चाहें,बाहर ही महाशक्ति की कृपा पाना चाहें तो हम वंचित रहेगें।
नयन मून्दि पुनि देखहिँ बीरा हम विचार करें कि जो कर्म हम दिनचर्या में करते हैं उससे किसका भला होने वाला है।उस कर्म से किसी व्यक्ति का,समाज का नुकसान तो नहीं हो रहा है।इस अवसर पर गायत्री परिवार के सुरेश यज्ञसैनी,कमलेश मिश्रा,राजेश सोनी,नानक चौरसिया सहित काफी लोग मौजूद रहे।