मुख्यमंत्री जी! मैं सार्वजनिक इंटर कॉलेज हूं? मुझे बचा लीजिए…

Abdul mueed

*कृष्ण कुमार द्विवेदी(राजू भैया)*

बाराबंकी। बदइंतजामी का कहर, सिसकती शिक्षा व्यवस्था, दरारों की मार से ग्रस्त भवन, जिम्मेदारों की स्वार्थपरक क्रूरता! ऐसे कई भयावह रोग है जिससे हैदरगढ़ नगर का प्राचीन शिक्षा मंदिर कराह रहा है! जी हां इस लाचार शिक्षा संस्थान का जर्रा- जर्रा बस यही गुहार उवाच करता प्रतीत होता है। मुख्यमंत्री जी! मैं सार्वजनिक इंटर कॉलेज हूं? मुझे बचा लीजिए… मुझे….?

हैदरगढ़ नगर का अति प्राचीनतम शिक्षा संस्थान सार्वजनिक इंटर कॉलेज। जी हां जिसके आंगन में अध्ययन करके तमाम लोग कई बड़े-बड़े पदों तक पहुंचे हैं। जिसकी एक जमाने में शिक्षा के क्षेत्र में एक धाक हुआ करती थी। आज यह शिक्षा मंदिर बदइंतजामी का शिकार है! अभी हाल ही में यहां प्रबंधन कमेटी का चुनाव होना था। उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद यह टल गया है। लेकिन जनचर्चा एवं सूत्रों के मुताबिक सार्वजनिक इंटर कॉलेज की दयनीय स्थिति आज यहां के जिम्मेदारों को सवालों के घेरे में खड़ा करती नजर आती है? एक समय हैदरगढ़ की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए स्थापित किए गए सार्वजनिक इंटर कॉलेज में इस समय शिक्षा व्यवस्था सिसकती नजर आती है ?हालात यह हो गए हैं कि कभी यह इंटर कॉलेज नगर सहित क्षेत्र के अभिभावकों के लिए अपने बच्चों को पढ़ाने की पहली पसंद हुआ करता था। आज आम लोगों से यह भावना गायब हो चुकी है? हैदरगढ़ नगर व क्षेत्र के कई पुराने वरिष्ठ नागरिकों से जब इस संबंध में वार्ता की गई तो उनका स्पष्ट कहना था कि जिन कंधों पर सार्वजनिक इंटर कॉलेज के विकास की जिम्मेदारी डाली गई वही कंधे इस शिक्षा मंदिर की जड़ों में बर्बादी का मट्ठा डालने में जुट गए! यहां यदि कुछेक प्रबंधकों एवं प्रधानाचार्यो को छोड़ दिया जाए तो बीच में ऐसे लोगों ने इसकी कमान संभाली कि इस कॉलेज की दुर्दशा दर दुर्दशा बढ़ती चली गई?

वर्तमान हालात बद से बदतर हैं ।यहां शिक्षा व्यवस्था पटरी से नीचे उतर चुकी है! यहां बच्चों के लिए पढ़ने को बनाए गए कई कमरे दरारों का शिकार है? छात्र- छात्राओं के खेलने की व्यवस्था को अव्यवस्था का संक्रमण संक्रमित कर चुका है? नागरिकों का कहना है कि क्या करें! सार्वजनिक इंटर कॉलेज की शिक्षा व्यवस्था की दयनीय स्थिति को देखते हुए यहां पर हम बच्चों को कैसे पढ़ाएं? यह तो बच्चों के साथ खिलवाड़ ही होगा?

जाहिर है कि ऐसी स्थिति में जब से जागरूक अभिभावकों ने यहां अपने बच्चों को पढ़ाना बंद किया तबसे इस कालेज की स्थिति और भी बिगड़ती चली गई? सार्वजनिक इंटर कॉलेज में आम आदमी अथवा गरीब तबके या फिर मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चे पढ़ने आते हैं। लेकिन उनके भविष्य के साथ यहां के जिम्मेदार कैसा खिलवाड़ करते हैं! इसके दर्शन स्कूल टाइम में किसी भी समय कोई सुयोग्य अधिकारी आकर प्रत्यक्ष रूप से कर सकता है? यहां पर शिक्षकों का टोटा नहीं है। यहां प्रधानाचार्य भी हैं। प्रबंध तंत्र भी है? लेकिन अगर कुछ नहीं है तो वह है सुव्यवस्थित शिक्षा व्यवस्था!

प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं ।लेकिन शायद मुख्यमंत्री एवं उनकी सरकार की दृष्टि सार्वजनिक इंटर कॉलेज पर पड़ी नहीं है। काश मुख्यमंत्री की दृष्टि इस प्राचीन इंटर कॉलेज की दुर्दशा पर पड़ जाती तो शायद यहां का कुछ कल्याण हो जाता । इंटर कॉलेज में मनमाना साम्राज्य स्थापित है। यदि कुछेक गुरुजनों को छोड़ दिया जाए तो कई ऐसे भी है जो लापरवाही का बैग लेकर यहां पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के भविष्य से भद्दा मजाक करते नजर आते हैं? कुछ गुरुजन ऐसे भी हैं जो छात्र-छात्राओं को पढ़ाना चाहते हैं लेकिन यहां की अव्यवस्था के चलते वह इसमें विवश है! इंटर कॉलेज की प्रशासनिक व्यवस्था के नैतिक मूल्यों को यदि मूल्यांकित किया जाए तो यहां भी सवालिया निशान खड़े होते नजर आएंगे? नागरिकों के मुताबिक सार्वजनिक इंटर कॉलेज की दुर्दशा इधर बीते कुछ वर्षों से कुछ ज्यादा हो गई है ।एक समय था जब प्रिंसिपल अथवा प्रबंधक के पद को लेकर रार होती थी ।लेकिन स्कूल की शिक्षा व्यवस्था पर इसका कोई असर नहीं पड़ता था। अब तो मामला एकदम उल्टा है। विद्यालय के जिम्मेदार बातें बड़ी-बड़ी करते हैं। परन्तु कटु सत्य है कि बीते 8-9 वर्षों में होने वाली परीक्षाओं में यहां के छात्र एवं छात्राएं कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सके? ऐसा भी नहीं है कि कॉलेज के पास शिक्षा संसाधनों की कोई कमी है। यहां सब कुछ है ।बस जिम्मेदारों में छात्र- छात्राओं के भविष्य को सुधारने की इच्छा शक्ति नहीं है?वैसे यहां प्रबंधक बनने के लिए कई लोग लालायित हैं। अभी चुनाव होते होते रह गया। आगे होगा इसकी संभावना भी है। जनसवाल है कि कॉलेज के जिम्मेदारों के रहते हुए धीरे-धीरे यहां की व्यवस्था अव्यवस्था में बदल गई। आखिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? कुल मिलाकर हैदरगढ़ नगर का यह प्राचीन शिक्षा संस्थान कराह रहा है। यहां का जर्रा जर्रा बर्बादी के रोग से पीड़ित है! बाराबंकी एवं प्रदेश के शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ना जाने क्यों इससे अनजान है? जबकि इंटर कॉलेज की सिसकती शिक्षा व्यवस्था त्राहि-त्राहि कर रही है? बस यह शिक्षा मंदिर यही गुहार उवाच करता नजर आता है। मुख्यमंत्री जी! मैं सार्वजनिक इंटर कॉलेज हूं? मुझे बचा लीजिए …मुझे बचा लीजिए..??

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