जैदपुर में 10 मोहर्रम का प्राचीन जुलूस को कोरोना गाइडलाईन का पालन करते हुए नहीं निकला।

नेवाज अंसारी संवाददाता एसएम न्यूज़24टाइमस

जैदपुर बाराबंकी। जैदपुर के मोहल्ला बडापुरा। अलि अकबार कटरा। मोलवी कटरा बड़ी बाजार। जेल महेल।महमूद पुर कासीराम कालोनी।बंजारों का पुरवा। आदि मोहल्ले के इमाम बाडो से निकल कर कर्बला जाने वाला 10 मोहर्रम का जुलूस इस वर्ष नही निकला । जुलूस जाने वाले स्थानों पर रहेगा पुलिस का कड़ा पहरा रहा । 10 मोहर्रम को लेकर पुलिस रात से ही सक्रिय हो गई है जुलूस शिया मुसलमानों के बाहुल्य इलाकों में पुलिस का कड़ा पहरा रहा ।मुहर्रम के दसवें दिन यौम-ए-आशुरा होता है, जिसे 10 मुहर्रम को मनाया जा रहा है। हालांकि वैश्विक कोरोना महामारी की वजह से जैदपुर कस्बा सहित आसपास के क्षेत्रों के कई गांव में 20 अगस्त को दस मुहर्रम का जुलूस नहीं निकाला। लोगों ने घरों में ही फातिहा किया और गमे हुसैन मनाया मातम मजलिस किया । वैसे नौ मुहर्रम को इमामबाड़ों में भीड़ उमड़ी। लोगों ने फातिहा कर इमाम ए हुसैन और उनके जानिसारों के खिराज ए अकीदत पेश की। नौ मुहर्रम को लेकर मुहल्लों में चहल-पहल रही।

*कुर्बानी-ए-हुसैन की बदौलत दीन इस्लाम बचा है नेता रियाज :*

जैदपुर बाराबंकी। जैदपुर नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि नेता रियाज ने दसवी मुहर्रम के अवसर पर पत्रकार वार्ता में शहीदान-ए-कर्बला का जिक्र किया। और कर्बला के इतिहास पर रोशनी डालते हुए रियाज ने कहा कि मैदान कर्बला हक की आवाज़ बुलंद करने का नाम है। नवासे रसूल हजरत इमाम हुसैन के मुकाबले में पूरी दुनिया का पहला दहशतगर्द यजीद उठा और उसने हजरत इमाम हुसैन से कहा कि हम बादशाह हैं, हम जो कहते हैं वह मान लो। हजऱत इमाम हुसैन ने जवाब देते हुए कहा कि सच्चाई कभी भी झूठ की पैरवी नहीं कर सकती। हक़ परस्त कभी बातिल (झूठ) की बैय्यत नहीं कर सकता। हजऱत इमाम हुसैन ने 70 हजार दुश्मन फौज के मुक़ाबले में सिर्फ 72 का लश्कर लेकर मैदान कर्बला में उतरे। अपने 72 जांनिसारो की कुर्बानी देकर दीन इस्लाम को बचा लिया। यज़ीद को पराजय का सामना करना पड़ा। इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद। इस वाकये से पता चलता है कि हक़ परस्ती को अल्लाह ज़िन्दगी बख्शता है।

मनाही के बाद भी इमाम ए हुसैन निकल पड़े*

इमाम ए हुसैन ने हज को उमरा में तब्दील कर अपने अजिजों व दोस्तों को चलने का इसरार किया। उनके साथ ख्वातीन और बच्चे भी थे। कुछ लोगों ने उन्हें मशवरा दिया कि सफर में ख्वातीनों को साथ नहीं ले जाएं। हजरत जैनब (इमाम ए हुसैन की छोटी बहन) और हजरत इमाम हुसैन के दोस्तों ने उन्हें जाने से काफी मना भी किया। वह जानते थे कि हजरत हुसैन जिस सफर में जा रहे हैं वह कोई आसान नहीं है। *

शहादत की खबर मिली फिर भी नहीं रुके

इमाम हुसैन के साथ उनकी बीवी हजरत अबुल बनीन ने अपने चारों बेटों को भी भेजा। मदीना और कुफे के सफर के दौरान इमाम हुसैन को अपने चचाजाद भाई मुसलिम बिन अकिल और उनके दो शाहजादों की शहादत की खबर मिली। यह भी खबर मिली कि कुफा के लोगों की आवाज जुल्म व जबर से इमाम हुसैन की हिमायत में दबा दी गयी है। मगर इमाम हुसैन ने अपना सफर जारी रखा।

*सातवीं मुहर्रम को बंद किया पानी*

कुफा से पहले करबला के पास इमाम हुसैन को रोक दिया गया। वहां पहले से ही यजीद की फौज मौजूद थी। सातवीं मुहर्रम से इमाम हुसैन और उनके खानदान को पानी बंद कर दिया गया। नहर फरात पर कड़ा पहरा लगा दिया गया। मुहर्रम की नौ तारिख को जंग का ऐलान हो गय दस मुहर्रम को यादगार जंग हुई दस मुहर्रम को यादगार लड़ाई हुई। जंग करते हुए असर के वक्त इमाम हुसैन शहीद हो गये। इमाम हुसैन की शहादत के बाद बाकी लड़ाई की कमान ख्वातिनों ने संभाली। जंग की सिपहसलार हजरत जैनब थीं। वाकिया करबला से हमें हक परस्त सच्चे मुसलमान मर्दों की मिसाल मिलती है तो वहीं दूसरी तरफ उन ख्वातिनों की जिन्होंने उनकी हिमायत की।

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