अपमिश्रित खाद्य सामग्री खाने को मजबूर हैं नगरवासी

सुहैल अहमद अंसारी-नगर संवाददाता

विभाग की शिथिलता का फायदा उठा रहे हैं मिलावटखोर, शहर में कई जगह बिक रही मिलावटी सामग्री व मिठाई

सुहैल अहमद अंसारी-नगर संवाददाता
बाराबंकी। त्यौहारों के अवसर पर मिलावटखोरों की चांदी हो जाती है, वहीं विभाग द्वारा खाद्य सामग्री की नियमित जांच न होने से मिलावटखोरों के हौसले बुलंद हैं। शहर में काफी मिलावटी खाद्य सामग्री खुलेआम बिक रही है, शहर में मिलावटखोरों के हौसले इतने बुलंद है कि खुलेआम मिलावटी पनीर, दूध, मिठाईयाँ व कई तरह के प्रतिबंधित पदार्थों को इस्तेमाल करके खोये के दाम लेकर शक्कर व मैदें व बेसन की मिलावटी मिठाईया बेंची जा रही हैं लेकिन विभाग आंख बंदकर बैठा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार शहर के छाया चौराहा, घण्टाघर, धनोखर चौराहा, दर्पण टाकीज के पास, नाका सतरिख, बस स्टाप, नाका पैसार, विशाल मेगा मार्ट के सामने, पल्हरी चौराहा, नबीगंज, सट्टी बाजार, रेलवे स्टेशन पर जगह मिलावट ही मिलावट है हद तो यहा तक हो गई कि डी0एम0 आवास से लेकर छाया चौराहे, घण्टाघर, रेलवे स्टेशन, बस स्टाप तक कई-कई दिनों पुरानी मिटाईया खुलेआम बिक रहीं हैं। किचन की सब्जी में हल्दी रंग नहीं पकड़ रही तो मिर्ची तीखापन नहीं दिखा रही। अधिकांश हरी सब्जियां बाजारों में रंगी जाती है और तब जाकर लोगों के किचेन तक पहुंचती है। तेल में मिलावट, मसालों में मिलावट तो जैसे बाजारों में आम हो चली है। मिठाईयों के खोवा व छेना पर भी संशय की ही स्थिति है। यानि बाजार में संबंधित विभागों का नकेल नहीं दिख रही और मिलावट का खेल खुलेआम धड़ल्ले से चल रहा है। न तो कभी आपूर्ति विभाग इस ओर झांकने की जहमत उठाता है और न ही स्वास्थ्य व फूड विभाग को इससे कोई लेना देना रहता है। नतीजा है कि उपभोक्ताओं की जेब ही नहीं कट रही बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी हो रहा। ऐसा सुनने तक को नहीं मिलता है कि कभी किसी किराने की दुकान पर आपूर्ति विभाग ने या फिर स्वीट कार्नर पर स्वास्थ्य व फुड विभाग ने छापेमारी की हो। एक ओर दिखाते के लिए टीवी चैनल व समाचार पत्रों के माध्यम से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए प्रचार-प्रसार किया जाता है और प्रचार प्रसार के नाम पर करोड़ों रूपया डकार लिया जाता है।
बावजूद विभागीय लापरवाही से उपभोक्ताओं की हकमारी तो हो ही जा रही। सब्जी बाजार की ही स्थिति देखें तो सब्जी को ताजा दिखाने के लिए रंगों का प्रयोग कर उसे रंगा जाता है। खासकर हरी सब्जियां तो धड़ल्ले से रंग कर बेची जाती है। वहीं सब्जियां मजबूरन लोगों को खरीद कर घर ले जानी पड़ती है। इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। किराने मंडी की स्थिति पर गौर करें तो तेल से लेकर अन्य खाद्य पदार्थो में मिलावट का खेल धड़ल्ले से चलता है। खासकर मसाले आइटम में तो मिलावट ही मिलावट है। पिसे हुए मसाले में तो मिलावट बेहिसाब है। अब देखिये किचेन में सब्जी में हल्दी रंग नहीं पकड़ती है तो मिर्ची अपना तीखापन नहीं दिखा पाती। आखिर यह सब क्या है। मिठाई दुकान व स्वीट कार्नरों की स्थिति और भी खराब है। आपके सामने परोसा जाने वाली मिठाई शुद्ध खोवा छेना का है या फिर सिथेटिक कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना ही नहीं 15-15 दिन पुरानी मिठाई बाजारों में धड़ल्ले से बेची जाती है। आखिर ऐसे में स्वास्थ्य की क्या स्थिति होती होगी अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे बड़ी विडंबना है कि इस ओर कभी न तो आपूर्ति विभाग सजग होता है और न तो स्वास्थ्य और फूड विभाग ही। लोग इन्हीं मिलावटी खेल के बीच अपने दिन गुहार रहे हैं। इस सम्बंध में कई दुकानदारों से बात की गई तो उन्होंने से बताया कि जांच हो या न हो लेकिन त्यौहारों में काजू कतली मुफ्त में देनी पड़ती है और पैसा हमको प्रतिमाह के हिसाब से देना पड़ता है इसलिए हम विभाग की शह पर ही खुलेआम मिलावट करते है और जो पैसा माहवार देते हैं उसको हम लोग मिलावट करके ही वसूलते हैं।
अब देखना है कि क्या विभाग इसी तरह हाथ पर हाथ थरे बैठा रहेगा और गुपचुप वसूली करता रहेगा या आम जनता के जीवन के साथ हो रहे खिलवाड़ को बंद करेगा।

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