मधुलिमये ने समाजवादी आंदोलन में अपनी अलग पहचान बनाई: राजनाथ गांधी भवन में 25वीं पुण्यतिथि पर स्व. मधुलिमये को गई श्रद्धांजलि

सगीर अमान उल्लाह जिला ब्यूरो बाराबंकी

बाराबंकी। मधुलिमये लोकतांत्रिक सिद्धान्तों के साधक थे। वे भारतीय राजनीति में स्वच्छ, सादगी, ईमानदारी और वैचारिक प्रतिबद्धता के प्रबल पक्षधर रहे है। मधुलिमये ने समाजवादी आंदोलन में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्हें गोवा मुक्ति आन्दोलन का प्रणेता भी कहा जाता है। वे संविधान और राजनीति के जीते-जागते ज्ञानकोश थे। मधुलिमये के विचारों को अपना कर ही राजनीति से सामाजिक मूल्यों के क्षरण को रोका जा सकता है। आज राजनीति अवसरवादी होती जा रही है और मूल्य कहीं खो गए हैं। इस स्थिति से बाहर निकलने की जरूरत है। यह विचार गांधी जयन्ती समारोह ट्रस्ट द्वारा गांधी भवन में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं संसदीय परम्पराओं के मर्मज्ञ स्व. मधुलिमये की 25वीं पुण्य तिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा ने व्यक्त किए। इस मौके पर स्व. मधुलिमये के चित्र पर माल्र्यापण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ चिकित्सक डा. सी.एम मिश्र ने की। तथा संचालन पाटेश्वरी प्रसाद ने किया। श्री शर्मा ने कहा कि मधुजी जाने माने संसदविद थे। मधुलिमये किसी भी प्रकार के पाखंड से कोसों दूर थे। वे संसद में पैदल अथवा रिक्शे से आते थे। उनकी जेब खाली रहती थी। उन्होनें अजीवन स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल होने की पेंशन या अन्य सुविधाएं नहीं ली। मधु जी ने लोकसभा के सदस्यों के वेतन बढाने का भी विरोध किया और बढे वेतन को भी लेने से नकारा। मधु लिमये अब नहीं है। राजनीति से वे काफी पहले विरक्त हो गए थे, परन्तु विचारों की दुनिया में वे पहले से ज्यादा शिद्दत से उपस्थित दिखाई देते है। वे एक निर्भक कलमकार भी थे। निर्भीकता के अलावा उनमें नैतिक मूल्यों के प्रति एक कठोर प्रतिबद्धता थी। अभिव्यक्ति की यह निर्ममता उन्हें कहीं सीधे महात्मा गांधी या डा राममनोहर लोहिया से जोड़ती है। आल इण्डिया मुस्लिम वारसी समाज के अध्यक्ष हाजी वासिक वारसी ने कहा कि समाजवादी चिन्तक एवं क्रान्तिकारी नेता मधुलिमये स्वतंत्रता आन्दोलन के योद्धा ही नहीं, गोवा मुक्ति आन्दोलन के प्रणेता भी थे। स्व. मधुलिमये तीसरी, चैथी, पांचवीं तथा छठी लोकसभा के सदस्य चुने गए। वह स्वतंत्रता आन्दोलन, गोवा मुक्ति आन्दोलन, समाजवादी आन्दोलन में शामिल हुए और कई बार जेल गए। लेकिन उन्होनें अन्याय, शोषण और अत्याचार के विरूद्ध अपनी आवाज को कभी दबाया नहीं, बल्कि सड़क से संसद तक इस संघर्ष को जारी रखा। सभा में प्रमुख रूप से सत्यवान वर्मा, विनय कुमार सिंह, मृत्युंजय शर्मा, मनीष सिंह, नीरज दूबे, राहुल कुमार, शिवा शर्मा, अशोक शुक्ला, हुमायूं नईम खान, सरदार राजा सिंह, रवि प्रताप सिंह, अशोक जायसवाल, पी.के सिंह, उदय प्रताप सिंह, संजय सिंह, मो0 असलम बबलू, विजय कुमार सिंह, रंजय शर्मा, विनोद भारती, ज्ञान शंकर तिवारी सहित कई लोग मौजदू रहे।सगीर अमान उल्लाह जिला ब्यूरो बाराबंकी 

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