महंगाई अब डायन नहीं, डार्लिंग बनकर जनता को नचा रही है

अब्दुल मुईद/सुहैल अहमद अंसारी की खास रिपोर्ट

विस्फोटक महंगाई की मार से जनता लाचार!

बाराबंकी। वर्तमान समय में चल रही महंगाई अब डायन नहीं रह गई है, डार्लिंग बनकर गरीब जनता को महंगे सामान खरीदने पर मजबूर कर नचा रही है। आम इंसान महंगाई का विरोध करें या शाम तक अपने परिवार के भरण पोषण का इंतजाम। दो वक्त की रोटी के लिए मजदूर पेशा व्यक्ति अब महंगाई से लड़ते हुए देखे जा रहे हैं, ऐसे गरीब लोगों को किसी तरह की कोई मदद नहीं मिल रही है। मिल रहा है तो सिर्फ बड़े-बड़े नेताओं का भाषण। आने वाले चुनाव में जनता किस पार्टी को वोट देगी यह अभी खुलकर सामने नहीं आ रहा है। वहीं कुछ लोगों की राय है कि वर्तमान सरकार बहुत अच्छा कार्य कर रही है इसको सत्ता में दोबारा आना बहुत जरूरी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस, खाद्य सामग्री सहित अन्य वस्तुएं हुईं महंगी, बिगड़ा रसोई का बजट, किसान, व्यापारी, गृहिणी सब परेशान कोरोना संकटकाल में आर्थिक तंगी से जूझने के बाद अब आम जनता महंगाई की मार झेल रही है। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम में बेतहाशा वृद्धि से सभी चिंतित हैं। डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस के दाम में हो रही वृद्धि से किसान, व्यापारी, गृहिणी सहित हर वर्ग के लोग परेशान हैं। इसके अलावा घी, सरसों के तेल, दाल व चाय आदि खाद्य पदार्थों के भी दाम काफी बढ़ चुके हैं। लगातार बढ़ रही महंगाई से रसोई का बजट बिगड़ चुका है। घर-घर में लोग परेशान हैं। हर माह 2000 रुपये का आने वाला राशन अब ढाई हजार रुपये में पड़ रहा है। वहीं गैस सिलिंडर की कीमत बढ़ने से लोग सोचने पर मजबूर हो गए हैं। पेट्रोल के दाम बढ़ने से नौकरीपेशा लोगों की जेब ढीली हो रही है। डीजल के दाम में वृद्धि होने के कारण माल भाड़ा भी बढ़ गया है। किसान खेतों की जुताई और फसलों की सिंचाई में खर्च बढ़ने से चिंतित हैं।
महिलाएं बोलीं-अच्छे दिन अभी नहीं आए जबरदस्ती की खुशियां दिखाई जा रही हैं। कोरोना के कारण लोगों को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है। लोगों के पास रुपये नहीं हैं। बच्चों एवं परिवार के लिए पौष्टिक भोजन जुटाना मुश्किल हो गया है। रसोई गैस की कीमत बढ़ती जा रही है। अब तो गैस सिलिंडर 842 रुपये तक पहुंच गया है। लोगों पर पड़ रही महंगाई की मार, खाने-पीने से लेकर जरूरत के सभी सामान पहुंच से दूर होते जा रहे हैं। पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ने से इसका असर चौतरफा पड़ रहा है। खेत की जुताई और सिंचाई के लिए किसानों को जेब और ढीली करनी पड़ेगी। खेत से चीनी मिल तक का भाड़ा पहले 30 रुपये प्रति क्विंटल था, वह अब 40 रूपये प्रति क्विंटल हो गया है। खेती की जुताई एक कट्ठा की 40 रुपये से बढ़कर 50 रुपये हो गई है। 170 रुपये प्रति घंटे के हिसाब से पंपिंग सेट से सिंचाई होती थी, वह अब 230 रुपये प्रति घंटे देना पड़ रहा है। डीजल महंगा होने से अन्य वस्तुओं के मूल्यों में बढ़ोतरी की मार झेलनी पड़ रही है। महंगाई पर रोक लगनी चाहिए। पेट्रोल-डीजल के दाम 60 रुपये प्रति लीटर से अधिक नहीं होने चाहिए।
जीएसटी में शामिल हो पेट्रोल-डीजल-व्यापारियों ने कहा कि बेलगाम महंगाई पर रोक लगाने में सरकार विफल है। इसकी वजह से जनता की परेशानी बढ़ती जा रही है। सबसे अधिक दिक्कत गरीब लोगों को हो रही है। वास्तविक मूल्य से अधिक टैक्स वसूला जा रहा है। इसकी वजह से पेट्रोल एवं डीजल के मूल्य बढ़ते जा रहे हैं। असर पूरे बाजार पर होता है, मार जनता पर पड़ती है। सरकार को पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस को भी जीएसटी में शामिल करना चाहिए। तभी इसके दाम में नियंत्रण किया जा सकेगा। अधिकांश कर्मचारी अपने निजी वाहनों से दफ्तर जाते हैं। डीजल और पेट्रोल के दाम में हो रही लगातार बढ़ोतरी से नौकरी पेशा वाले लोगों को दफ्तर आने-जाने में जेब ढीली करनी पड़ रही है। बजट आने के बाद लोगों को महंगाई पर नियंत्रण की उम्मीद थी, लेकिन महंगाई को रोकने में विफल रही सरकार से लोग नाराज हैं। सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य नियंत्रित करने के लिए ठोस उपाय करने चाहिए। ट्रांसपोर्टर्स ने नहीं बढ़ाया मालभाड़ा, सरकार की ओर से लगातार ईंधन के दाम में वृद्धि की जा रही है। ट्रांसपोर्ट कारोबारियों की कोई सुन नहीं रहा है। फिलहाल तो मालभाड़े में थोड़ी वृद्धि की गई है, लेकिन पेट्रोल और डीजल के दाम इसी तरह बढ़ते रहे तो कुछ दिन में ही मालभाड़ा दोगुना हो जायेगा।
अब देखना यह है कि क्या बढ़ती महंगाई पर जनता किसी पार्टी की सरकार चुनेगी यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।

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