मुसलमानो! हक पहचानो आओ अब दीन पर चलें

मुसलमानो! हक पहचानो आओ अब दीन पर चलें

मुसलमानो जो गलतियाँ अभी तक हो चुकी हैं उन्हसे तोबा कर के अब आगे की सोचो और इस्लाम में पूरे के पूरे दाखिल हो जाओ क्योंकि इस्लाम एक सच्चा सीधा रास्ता है। इस रास्ते पर चलकर तुम कामयाबी की मंजिल को पा सकते हो। इस सीधे सच्चे रास्ते पर चलने के लिए इल्म की जरूरत पड़ती है इसलिए सुन्नी मुसलमान भाइयो आओ इल्म हासिल करें इल्म एक रोशनी है जिसके बगैर दुनिया भी अंधेरी रहती है और आखिरत भी। नकल से या थर्ड या सेकेण्ड डिवीज़न में डिग्री हासिल कर लेने को इल्म हासिल करना नही कहते। यह कम्पटीशन का दौर है इसलिए इल्म हासिल करने में सबसे आगे निकलना बहुत ज़रूरी है। इस दौर के मुसलमान दुनिया और आखिरत दोनो मैदानों में पीछे नजर आते हैं क्योंकि मुसलमानों ने अपने आका नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस फरमाने आलीशान को भुला दिया- “इल्मेदीन का सीखना हर मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज है।

आजकल लोग दीनी बातों जैसे नमाज, रोजा, पाकी-नापाकी, हज, जकात के मसाइल नहीं जानते और सीखने की कोशिश भी नहीं करते और मज़हबे इस्लाम के खिलाफ चलते हैं और रोकने पर कहेंगे कि हम जानते ही नहीं हैं लिहाजा हम से कोई सवाल न होगा और बरोजे हश हम छोड़ दिये जाऐंगे। यह उन लोगो की गलतफहमी है। सच्चाई तो ये है कि ऐसे लोगों को डबल सज़ा मिलेगी। पहला इल्म हासिल न करने और आलिम से ना पूछने की दूसरा गलत काम करने की।

आओ अब दीन पर चलें:- कोई भी आम इन्सान दीनी इल्म डायरेक्ट अपनी माँ के पेट से सीख कर नहीं आता। दीनी बातों को कोई बचपन में तो कोई जवानी में तो कोई बुढ़ापे में सीखता है, इसलिए शर्माइए नहीं, अभी भी वक्त है इल्मे दीन सीखने के लिए। ईमान दुरूस्त करने के बाद हर मुसलमान की ये ज़िम्मेदारी है कि वो अल्लाह की इबादत और बन्दगी करे। अल्लाह की इबादत करने के लिए हम नमाज़ पढ़ते हैं, रोज़ा रखते हैं, माल की ज़कात देते हैं, हज करते हैं। इन कामों को अदा करने का एक खास तरीका है जो हर मुसलमान को मालूम होना बहुत ज़रूरी है। आइये अब हम एक-एक करके इन इबादतों के बारे में जानें समझें और अमल करें।

माज़ का बयान:- हर आकिल बालिग मुसलमान मर्द और औरत पर पाँच वक्त की नमाज़ फर्ज है। जो इसकी फर्जियत को ना माने वह काफिर है और जानबूझकर छोड़ने वाला सख्त गुनहगार है।

नमाज़ ज़रूरी क्यों?:- क्योंकी महशर के दिन सबसे पहले नमाज़ का सवाल होगा। हदीस शरीफ में है कि जो शख्स नमाज़ की हिफाज़त करेगा उस के लिए नमाज़ कयामत के दिन नूर, दलील और नजात होगी।

हदीस:- जब बच्चे कि उम्र सात बरस (साल) की हो तो उसे नमाज़ पढ़ना सिखाया जाए और जब दस बरस का हो जाए तो मार कर पढ़वाना चाहिए।

(अबूदाऊद शरीफ)

नमाज़ कैसे पढ़ें?:- नमाज़ पढ़ने के लिए आपको सबसे पहले गुस्ल का तरीका, वजू का तरीका फिर नमाज़ में कब, क्या और किस तरह पढ़ा जाए? नमाज़ में किस तरह उठा बैठा जाए? इन सब चीजों का तरीका मालूम होना चाहिए। अगर आप ये चीजें जानते हैं तो आप दूसरो को बताएँ। अगर नहीं जानते तो नीचे दिये गये दो तरीकों को अपनाएँ… पहला तरीका:- आप अपने नज़दीकी मस्जिद या मदरसे के आलिम या हाफिज से मिलकर इन चीज़ो का तरीका पूछे या अपने किसी दोस्त या जान पहचान वाले से पूछ। शर्माएँ नहीं। ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप पूछने जाएँ तो वो आपको ना बताएँ बल्कि आपके दीनी जज्बे को देखकर सब खुश होगें।

दूसरा तरीका:- किताबों का सहारा लीजिए। जी हाँ किताबों के ज़रिये आप अपनी दिक्कत दूर कर सकते हैं। मैं चाह रहा था कि नमाज़ पढ़ने का तरीका इसी किताब में दूं लेकिन जगह की किल्लत सामने आई इसलिए आप अपने नज़दीकी दीनी दुकान पर जाकर रज़वी पब्लिकेशन की छपी ‘सच्ची नमाज़’ नाम की किताब खरीदिए। इसकी कीमत लगभग 10 रूपए है। किताब खरीदते वक्त इस बात का ध्यान रखें की किताब रज़वी पब्लिकेशन की ही छपी हो क्योंकि “सच्ची नमाज़’ के नाम से बदअकीदा वहाबियों देवबंदियों की किताबें भी मार्केट में मौजूद हैं। इस किताब मे आपको नमाज़ के साथ-साथ वजू गुस्ल, तयम्मुम, कलमा, अज़ान, दुआयें, नमाजे जनाज़ा पढ़ने का तरीका जैसी ढेरों जानकारियाँ हिन्दी और अरबी में एक साथ मिलेंगी। इस किताब में अगर कोई चीज़ ना समझ में आए तो किसी से पूछ लें। जब आप नमाज़ पढ़ना सीख जाएँ तब आप अपनी पिछली छूटी नमाज़ों को अदा करें।

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