प्राकृतिक खेती में गोमूत्र की अहम भूमिका। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने प्रधानमंत्री मोदी सहित देश के 8 करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के तरीके और महत्व के बारे में समझाया।
समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ 9889789714
प्राकृतिक खेती से किसान, जमीन, पशु, उपभोक्ता आदि सभी को फायदा। गौ माता को कत्लखाने में जाने से भी बचाया जा सकता है। पुष्कर के विधायक सुरेश रावत ने भी सैकड़ों किसानों के साथ शिखर सम्मेलन में वर्चुअल तकनीक से भाग लिया।
भारत की सनातन संस्कृति में गाय को गौ माता मानकर पूजा जाता है। गाय का महत्त्व दूध देने तक ही माना गया है, कृषि के ऋषि और गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत के विचारों को समझा जाए तो दूध नहीं देने के बाद भी प्राकृतिक खेती में गाय का विशेष महत्त्व है। 16 दिसंबर को गुजरात के आणंद में प्राकृतिक खेती के राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन समारोह में आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती पर अपने अनुभवों को साझा किया। वर्चुअल तकनीक से इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के 8 करोड़ किसान शामिल हुए। इस सम्मेलन से जुड़ने के लिए पीएम मोदी ने किसानों से विशेष अपील की थी। यही वजह रही कि 16 दिसंबर को देशभर के आठ करोड़ किसान जुड़ सके। सम्मेलन में आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती के बारे में किसी किताब में लिखी बातों को नहीं बता रहा। बल्कि हरियाणा के हिसार में अपने गुरुकुल की सैकड़ों बीघा भूमि पर प्राकृतिक खेती कर जो अनुभव प्राप्त किया है उसे ही बता रहा हंू। आज मैं दावे से कह सकता हंू कि जहां रासायनिक खेती पर पांच हजार रुपए का खर्च होता है, वहां प्राकृतिक खेती पर मात्र पांच सौ रुपए ही खर्च होंगे। प्राकृतिक खेती से जहां जमीन की उर्वरक हमेशा बनी रहती है वहीं किसान को फसल के बहुत कम राशि खर्च करनी पड़ती है। उपभोक्ता को ऑर्गेनिक अनाज, फल, दाल आदि खाद्यान्न मिल जाता है। आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती के लिए जो रसायन तैयार किए जाते हैं उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण पदार्थ देशी गाय का गोबर और मूत्र है। पानी की घोल में गौमाता का गोबर, मूत्र, गुड़, बेसन आदि मिला जाता है। इससे जो रसायन तैयार होता है वह खेती के लिए बहुत उपयोगी है। सम्मेलन में आचार्य ने रासायनिक और प्राकृतिक खेती के बारे में विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव से फसलें जहरीली होती है। जब इन्हीं खाद्यान्नों को लोग खाते हैं तो अनेक बीमारियां भी होती है। जबकि प्राकृतिक खेती में कीटनाशक दवाइयों का कोई उपयोग नहीं होता। देशी गाय के मूत्र और गोबर में इतनी ताकत है कि फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जीवाणुओं को मार देते हैं। इतना ही नहीं भूमि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए जिन जीवाणुओं की जरुरत होती है, उन्हें गाय के गोबर और मूत्र से तैयार किया जा सकता है। आचार्य देवव्रत ने कृषि अनुसंधानों के हिसाब से बताया कि जो तत्व भारत की देशी गाय में है, वैसे तत्व विदेश की किसी भी गाय में नहीं है। गाय का महत्व सिर्फ दूध देने तक नहीं है, बल्कि प्राकृतिक खेती में गोबर और मूत्र का सबसे ज्यादा महत्व है। कहा जा सकता है कि दूध से कहीं ज्यादा कीमती गाय के गोबर गौमूत्र की है। आज हम गाय को इधर उधर घूमते देखते हैं, यदि इन देसी गायों का उपयोग खेत पर किया जाए तो प्राकृतिक खेती से किसान मालामाल हो सकता है। जब खेत पर गाय का संरक्षण होगा तो फिर गाय कत्लखाने में नहीं जाएंगी। आचार्य देवव्रत ने जिन सरल शब्दों में प्राकृतिक खेती और गौ माता के महत्व के बारे में बताया उसकी प्रशंसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की। मोदी ने कहा कि आचार्य देवव्रत के सुझावों पर देश में यदि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलता है तो यह किसानों की समृद्धि भी बढ़ाएगी। मोदी ने कहा कि प्राकृतिक खेती को बढावा देने के लिए सरकार हर संभव मदद करेगी।