चल ना उस गाँव से आतीं सोंधी
मिट्टी की खुशबू की ओर चलें ।।
चल ना मेरे हिन्दुस्तान, अपनी
भारतीय संस्कृति की ओर चलें ।।
फिर से माँ के हाथों से बने चूल्हे
की रोटी, का स्वाद चखे ।।
चल ना मेरे हिन्दुस्तान, एक बार
फिर से भारतीय संस्कृति की ओर
चलें ।।
चलें वहाँ जहाँ अब भी गाँव की
गोरियाँ भरती हैं पनघट से पानी।।
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