ट्रम्प कितने ही अज्ञानी क्यों न हों मगर यह ज़रूर जानते हैं कि इराक़ में उन्हें क्या ख़मियाज़ा भुगतना पड़ सकता है!

https://www.smnews24.com/?p=4182&preview=true

इस समय इराक़ और अमरीका के बीच इस मुद्दे पर विवाद बढ़ रहा है कि इराक़ से अमरीकी सैनिकों को बाहर निकाला जाए या नहीं।
इराक़ की संसद ने तो प्रस्ताव पारित करके साफ़ कर दिया है कि इराक़ में विदेशी सैनिकों की कोई ज़रूरत है न गुंजाइश इसलिए इन सैनिकों को तत्काल इराक़ से निकल जाना चाहिए। मगर अमरीका की ज़िद है कि अभी इराक़ के लोगों को अमरीकी सैनिकों की मदद की ज़रूरत है और अमरीकी सैनिकों इस देश से निकलने वाले नहीं हैं।

डोनल्ड ट्रम्प ने तो अपने स्वभाव के अनुसार बयान दिया कि अगर इराक़ चाहता है कि अमरीकी सैनिक वहां से निकल जाएं तो वह 32 अरब डालर दे। यह वास्तव में इराक़ की वह रक़म है जो अमरीका के भीतर मौजूद है। तो ट्रम्प के बारे में एक बात यह कही जा रही है कि उन्हें शायद यह नहीं मालूम है कि चीन कहां है और भारत के साथ चीन की सीमा मिलती है या न हीं इसी तरह वह शायद यह भी नहीं जानते कि पर्ल हार्बर की घटना क्या थी? मगर ट्रम्प को यह अच्छी तरह पता है कि किन देशों के पैसे अमरीका के भीतर हैं और इन पैसों को कैसे हड़पा जा सकता है।
ट्रम्प सऊदी अरब, और इमारात को कई बार दूध देने वाली गाय कह चुके हैं। वह शायद इराक़ के बारे में भी यही सोच रखते हैं लेकिन एक बुनियादी अंतर यह है कि इराक़ एक लोकतांत्रिक देश है जहां जनता द्वारा चुनी हुई सरकार देश का संचालन करती है। इराक़ वह देश है जिसने दाइश के ख़िलाफ़ जंग में बड़ी सफलता अर्जित की है और साथ ही अपनी रक्षा शक्ति काफ़ी मज़बूत कर ली है। इराक़ वह देश है जहां के संगठनों ने प्रतिरोध करके अमरीकियों को 5000 सैनिकों की लाशें ढोने पर मजबूर कर दिया था और आख़िरकर इराक़ से अमरीका को निकलना पड़ा था।
पेंटागोन के प्रवक्ता जोनाथन हूफ़मैन ने कहा है कि पेंटागोन के पास इराक़ से अमरीकी सैनिकों को निकालने का अभी कोई कार्यक्रम नहीं है और अमरीकी अधिकारी इराक़ी अधिकारियों से लगातार संपर्क कर रहे हैं कि इराक़ में अमरीकी सेना का मिशन फिर से शुरू हो जाए।
इराक़ के कार्यवाहक प्रधानमंत्री आदिल अब्दुल महदी कह चुके है कि वह इराक़ी संसद के प्रस्ताव के अनुसार देश से विदेशी सैनिकों को बाहर निकालने का संकल्प रखते हैं। उन्होंने कहा कि हम इस समय विदेशी सैनिकों को देश से निकालने का टाइमटेबल निर्धारित करने पर काम कर रहे हैं।
2003 में जब अमरीकी सैनिक इराक़ में तैनात हुए थे तो उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि इस देश से जाएंगे। उनका इरादा यही था कि इराक़ में रहेंगे और अमरीकी हितों की रक्षा करेंगे। मगर फिर अमरीकी सैनिकों को वहां से निकलना पड़ा था।

छह साल पहले जब दाइश का संकट शुरू हुआ तो इराक़ में अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति केवल नाम भर की थी। दाइश से युद्ध के नाम पर अमरीकी सैनिकों की उपस्थिति बढ़ी लेकिन सच्चाई यह है कि अमरीकी सेना ने दाइश की मदद की।
अब अमरीकी सैनिकों को इराक़ से निकालने के बाद संसद के प्रस्ताव के साथ ही आने वाले शुक्रवार को इराक़ में बहुत बड़े पैमाने पर मिलियन मार्च निकालने का एलान किया गया है जिसका इराक़ के प्रभावशाली संगठनों ने समर्थन किया है।
संसद के प्रस्ताव और प्रदर्शनों से अमरीका को यह संदेश मिल जाना चाहिए कि इराक़ की जनता अमरीकी सैनिकों को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है। अब अगर इसके बाद भी अमरीकी सैनिक इराक़ से नहीं निकलते हैं तो वही प्रतिरोध शुरू हो जाने की संभावना है जिसने अमरीकियों को अपने 5000 सैनिकों की लाशें उठाने पर मजबूर किया था और अमरीका को अपने सैनिक इराक़ से बाहर निकालने पड़े थे।

ट्रम्प चाहे जितने अज्ञानी हों लेकिन उन्हें यह तो पता है कि इराक़ युद्ध से अमरीका को क्या ख़मियाज़ा भुगतना पड़ा है और आगे क्या नुक़सान उठाना पड़ सकता है। इसलिए इराक़ी जनता का रुजहान देखते हुए यही लगता है कि ट्रम्प को आख़िरकार इराक़ से अपने सैनिक निकालने पड़ेंगे।

Don`t copy text!