शायद भुलाया न जा सके वह दिन, पुलवामा हमले को याद कर भावुक हुए पंकज, सीआरपीएफ में थे हेडकांस्टेबल

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अलीगढ़ में वह दिन न भूलने वाला है। तीन साल भले हो गए, पर पुलवामा हमले की घटना कल जैसी लगती है। कई जगह तैनात रहा, पर यहां जो हुआ वह कहीं नहीं। साथियों को खोने का गम सदैव रहेगा। कहते हुए पिसावा क्षेत्र के गांव बसेरा के पंकज बाल्यान भावुक हो गए। वे सीआरपीएफ से 6 मई 2021 को सेवानिवृत्त हुए हैं। पुलवामा में जिस बलालियन पर हमला हुआ, उसमें यह भी शामिल थे। हमले में घायल होने के बाद भी पंकज हिम्मत नहीं हारे थे। ड्यूटी पर जाने के लिए अस्पताल से जिदकर छुट्टी कराई और सीमा पर पहुंच गए थे। आतंकवादियों को मुंह तोड़ जवाब देने पर उन्हें गर्व है।वे सीआरपीएफ में हेडकांस्टेबल थे। हमला 14 फरवरी 2019 में हुआ था। उस दिन का याद करते हुए पंकज बताते हैं कि 21 साल 2 माह की नौकरी में ऐसा दिल दहलाने वाला हादसा नहीं देखा। फौजियों की जिस गाड़ी से आतंकियों की आरडीएक्स लदी गाड़ी टकराई तो वहां जमीन में कई फुट गहरा गड्ढा हो गया। 40 जवान शहीद हो गए और आसपास 50 मीटर दूरी पर चल रही गाड़ियों के शीशे टूट गए। कुछ शीशे के टुकड़े उन्हें भी लगे और वह जख्मी हो गए। साथियों को याद करते हुए वे कुछ देर उदास हुए। फिर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हुए बोले, भगवान शहीद साथियों के परिवार को यह दुख सहन करने की शक्ति दे।उन्होंने बताया कि छह मई 2021 को वह सेना की 92 बटालियन से रिटायर होकर घर आ गए। कई प्रदेशों में नौकरी के दौरान काफी हादसे होते हुए देखे। बम ब्लास्ट के केस भी उन्होंने देखे। जवानों का अधिकतर पाला गोलियों से पड़ता है। पुलवामा हमले में उनकी बटालियन के भी पांच जवान शहीद हुए थे। जिन जवानों की गाड़ी के साथ यह हादसा हुआ, वह उनकी गाड़ी के पीछे ही थी। ब्लास्ट की आवाज सुन जब उन्होंने पीछे देखा तो काफी धुंध छाई हुई थी। गाड़ी कई फुट ऊंची उड़ गई थी। जिंदगी का सबसे खतरनाक सीन सामने था। पंकज सिंह सेवानिवृत्त होने के बाद अपने परिवार के साथ गांव में ही रहते हैं। यहां खेती करते हैं। परिवार में उनकी पत्नी अनीता देवी के अलावा बेटा विशाल व बेटी प्रतिज्ञा है।

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