महिला जनप्रतिनिधि के पदों पर हावी हैं उनके प्रतिनिधि

बाराबंकी: रिपोर्ट शमीम अंसारी: एसएम न्यूज24टाइम्स 9415526500

नगर पालिका अध्यक्ष, नगर पंचायत चेयरमैन से लेकर प्रधान पद तक प्रतिनिधि रबर स्टाम्प की भांति कर रहे हैं पद इस्तेमाल!

बाराबंकी। सरकार एक तरफ महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रही हैं वही जनपद के कई पदों पर महिलाएं निर्वाचित हुई हैं लेकिन वर्तमान वह मात्र रबर स्टाम्प की भांति रह गई। लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई पंचायती राज के गठन के बाद भले ही राज्य सरकार महिलाओं को सता में हिस्सेदारी के लिए पंचायती राज के पदों में आरक्षण लागू कर इसे सबल बनाने का ढिढ़ोरा पिट रही है। लेकिन, जमीनी सच्चाई इससे बहुत इतर है। महिला पद पर निर्वाचित नगर पंचायत चेयरमैन, नगर पालिका अध्यक्ष, प्रमुख, प्रधान, और जिला परिषद के सदस्यों के अधिकतर जिम्मेदारी इनके प्रतिनिधि महोदय यानी पतिदेव व पुत्र, देवर ही संभाल रहे हैं।

महिलाएं आज हर क्षेत्र में पुरूषों के समान कदमताल करती दिख रही है। देश में महिलाओं की स्थिति में बदलाव की बात कही जा रही है। विशेषकर, जनपद में जिस तरह से महिलाओं को अधिकार मिला है, उससे उनकी प्रगति का ग्राफ बढ़ा है। हालांकि, सामाजिक रूप से उनकी स्थिति जस की तस है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उनका हाल बेहाल है। 70 फीसदी महिलाओं की भूमिका खाने पकाने और घर संभालने तक ही सीमित है। महिला सशक्तिकरण-मिथक साबित हो रहा है। आज की महिलाओं के पास अधिकार हैं, पर स्वतंत्रता नहीं। महिला अधिकार की बदौलत जनप्रतिनिधि तो बन गई पर उनकी स्थित रबर स्टांम्प जैसी है। स्कूल-कॉलेजों में लड़कियां पढ़ रही हैं, पर उच्च शिक्षा तक पहुंचते-पहुंचते उनकी तादाद कम जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि पढ़ी-लिखी महिलाओं को भी घरेलू मामलों तक ही सीमित रखा जाता है। महिला सशक्तिकरण का नारा एक खास दायरे में सिमट गया है। वैसे कुछेक मामले में महिला अपने अधिकार का बेजा फायदा भी उठाती हैं, जिसका खामियाजा दूसरी महिलाओं को भुगतना पड़ता है। पुरूष और स्त्री की समानता के लिए प्रयासरत है। पर, मानवीय समाज में अभी तक महिलाओं को समानता रूपी अधिकार नहीं मिला है। स्त्री को महिला संबोधन ही इसलिए दिया गया है, क्योंकि वो पुरूषों से श्रेष्ठ है। महिलाओं ने वेद की ऋचाओं को लिखने से लेकर आदि गुरू शंकराचार्य को भी पराजित किया है। महिला के अधिकार हैं, तो पुरूषों का अधिकार गौण नहीं हो जाता। सभ्य समाज का निर्माण महिला और पुरूष के सकारात्मक सहयोग से ही संभव है।

निर्वाचन के बाद हुए पंचायतों में आमसभा की बैठकों में कई ऐसे पंचायतें रही। जहां, निर्वाचित मुखिया सभा में शामिल होना भी मुनासिब नहीं समझीं। ऐसे में कैसे महिला सशक्तिकरण के नारे को बल मिल सकता है। यह सोचने वाली बात है। ऐसा नहीं है कि इससे प्रशासन के आला हुक्मरान वाकिफ नहीं है। लेकिन, कोई भी कुछ खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। ऐसे में महिला आरक्षण के औचित्य पर ही सवालिया निशान उठना लाजिमी है। जानकार सूत्रों की माने तो एक दो हो तो नाम गिनाया जा सकता है। लेकिन, यहां तो अधिकतर जनप्रतिनिधियों के पदों की एक सी स्थिति है। कई पंचायतों में तो मुखिया अपने चहेते लोगों के साथ बैठक कर कार्यकारणी गठन कर कागज पर ही योजनाओं की मंजूरी देने में सफल हो गए हैं। अगर आगे भी इसी तरह का रवैया जारी रहा तो पंचायत प्रतिनिधियों के साथ ही प्रशासनिक पदाधिकारियों की गलत कार्यप्रणली इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होगी। इसके साथ ही आगे भी महिला जनप्रतिनिधि केवल रबर स्टाम्प बन कर रह जाएंगी। जरुरत है तो इस कार्यप्रणाली पर रोक लगाने की, ताकि, जनपद में हो रहे विकास कार्य में महिलाओं के सत्ता में सीधे भागीदारी का सपना साकार हो सके।

बाराबंकी: रिपोर्ट शमीम अंसारी: एसएम न्यूज24टाइम्स 9415526500

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