झूठे मुकदमें दर्ज कराने वाली अपराधी औरतो को सज़ा मिले: कपिल

अब्दुल मुईद सिटी-रिपोर्टर (एस0एम0 न्यूज 24टाइम्स) 9936900677

बाराबंकी। भारत में एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिपोर्ट ब्यूरो ) के 1967 से 2020 तक आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष पुरुषों की आत्महत्या दर हमेशा ज्यादा रही है महिला आत्महत्या के सापेक्ष। ज्यों-ज्यों कानून सख्त हुए, महिला के सापेक्ष पुरुषों की आत्महत्या की अनुपात दर ढाई गुना से अधिक बढ़ गई है। अन्तिम प्राप्त एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2020 में 73093 विवाहित पुरुषों ने आत्महत्या की जबकि महिलाओं की आत्महत्या की संख्या 28085 थी। इस आत्महत्या की सबसे बड़ी वजह पारिवारिक कलह निकलकर आई है जिसमें विवाहित पुरुष पत्नी से तंग आकर और पुलिस की प्रताड़ना व कोर्ट की अपमानजनक प्रक्रिया में उलझ जाने के कारण प्रताड़ित होकर आत्महत्या करते है। क्या पुरुष इतना कमज़ोर है?

इस मुहिम द्वारा पुरूषों को जागरूक करने व दोषी महिलाओं को सजा दिलाने के लिए मेरा अधिकार राष्ट्रीय दल (मर्द पार्टी) जो कि पुरुषों और परिवारों के कल्याण के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रही है उस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कपिल मोहन चौधरी लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वास्तव में पुरुष कमज़ोर नहीं है। जो पुरुष देश की सीमाओ में जान की बाजी लगा दे, जो बुद्ध महावीर, मोहम्मद, ईसा मसीह बनकर धर्म की स्थापना करे वो पुरुष कमज़ोर नहीं हो सकता। आज महिला सशक्तिकरण के नाम पर एकतरफा कानून, पुरुषो पर थोपे जाते हैं। यू तो देश में लोकतंत्र है लेकिन सच यह है की देश में पुरुषो के लिए कोई आयोग नहीं, कोई मदद नहीं, कोई कानून पुरुष हित में नहीं। जब कोई अति महत्वाकांक्षी और लालची औरत पुरुष पर झूठा दहेज़ प्रथा या घरेलू हिंसा का आरोप लगाती है तब पुरुष एक तरह से फंस जाता है क्योकी दहेज़ कानून सेक्शन 498ए गैर ज़मानती है। पुरुष और उसके परिवार की महिलाओं को जेल भेजमे के नाम पर धमकाया जाता है, तो वहीं पुलिस, न्यायपालिका, वकील यह सब मिलकर पुरुष को चकरगिन्नी बना देते है। इज्जत को मीडिया नीलाम कर देता है। इस तरह चारो तरफ से जब वो फंस जाता है तब उसको अपनी बात सरकार तक पहुचाने का एक ही रास्ता दिखता है जिसमे वो खुद को बेगुनाह साबित कर सके और वो है आत्महत्या, क्योंकि केवल उसी शर्त पर सरकार पुरुष को सच मानती है कि मरने से पहले आदमी झूठ नहीं बोलता। तो क्या पुरुष को अपनी बात कहने के लिए आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प है? एक तरफ़ा असंवैधानिक कानून बनाकर आज पुरुषों को बर्बाद किया जा रहा है। एक प्रकार से उसकी अग्नि परीक्षा ली जा रही है कि वो खुद ही साबित करे की वो बेगुनाह है। बेगुनाह साबित होने पर भी पत्नी को कड़ी सज़ा नहीं मिलती। यहाँ तक कि अगर पत्नी से तलाक मिल भी जाये तब भी उस झूठी पत्नी को गुजाराभत्ता इसी पति को देना है।जबकि ऐसी पत्नियों को कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसी औरतो के लिए कोई सज़ा नहीं है इस तथाकथित पुरुष प्रधान समाज में। यही कारण है सन 2020 के एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार कुल 1,08,532 पुरूष आत्महत्या करने पर मजबूर हुए जबकि 44,498 (महिलाये) आज समय आ गया है की हम खोखले नारी सम्मान की मानसिकता से बाहर निकले और सूर्पनखा समान औरतो को दंड दिलवाने के लिए संघर्ष करें। आज देश में पुरुष आयोग क्यों नहीं है? आज पुरुष को घरेलू हिंसा से पीड़ित क्यों नहीं माना जाता? पुरुषो का सामाजिक, आर्थिक और यौन उत्पीड़न करने वाली औरतो को सज़ा क्यों नहीं? झूठे आरोप लगाने वाली औरतो को सज़ा क्यों नहीं? ये कुछ ऐसे प्रश्न है जिसका जवाब महिलावादियो के पास नहीं है, क्योकि महिलावादी खुद पुरुष विरोधी है। आज ये समय की मांग है की पुरुष खुद के हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करे और अपराधी औरतो को कड़ी से कड़ी सज़ा दिलाये।

‘गुजारा भत्ता‘ के नाम पुरूषों का हो रहा है शोषण

महिला सशक्तिकरण के नाम पर पुरुषों के आर्थिक, सामाजिक और मानसिक उत्पीड़न के विरुद्ध एक आंदोलन की शुरुआत होनी चाहिए। यह विरोध राष्ट्रव्यापी स्तर पर नीतिबद्ध व अहिंसात्मक तरीके से किया जाना चाहिए। इस लड़ाई में आपका विरोध, बाहर सरकार आदि की बजाए अपने ही लोगों से होने की प्रबल संभावना है। 2019-20 में पहली बार इसकी शुरुआत भी की गई थी। भीतर के लोगों ने ही उस आंदोलन को बिगाड़ दिया। हालाँकि बिगड़ने के बाद उन्होंने खुद भी आंदोलन आदि कुछ नहीं किया। नतीजा आपके सामने है-रजनीश बनाम नेहा के 4 नवम्बर 2020 के जजमेंट के रूप में, जहां अब डेट ऑफ अप्लीकेशन और अन्य आदेश आये, जिनसे पुरुषों पर वसूली शुरू हो गई। पत्नी को दाम्पत्य जीवन के दायित्वों से मुक्ति दिलाकर उन्हें यौन स्वच्छन्दता की कानूनी छूट दी रही है जबकि पति को एक पैसा कमाने वाली भावना व संवेदनहीन मशीन समझा जा रहा है । आज स्थिति बहुत ही बदतर हो चुकी है। दुष्ट महिलाएं मायके बैठकर मात्र आरोप के आधार पर जीवन भर मुफ्त की कमाई के लिए, फर्जी पीड़िता बनकर गुजाराभत्ता कोर्ट व पूरी न्यायपालिका का दुरुपयोग कर रही हैं। इसलिए अब भाई के बराबर संपत्ति अधिकार रखने वाली और पढ़ी लिखी होने के बाद, गुजाराभत्ता अब गुजरे जमाने की बात होनी चाहिए? मेरा अधिकार राष्ट्रीय दल (मर्द पार्टी) मैन एण्ड फैमिली के अध्यक्ष कपिल मोहन चौधरी (मेन्स राइट एक्टिविस्ट) ने कहा कि इसके लिए आन्दोलन की शुरआत की जानी चाहिए, न्याय के देवता श्री शनि देव महाराज की पूजा के बाद उन्होंने कहा कि आज मैं मेरा अधिकार राष्ट्रीय दल (मर्द पार्टी) व पुरुषार्थ सेवा ट्रस्ट, लखनऊ मिलकर इस आंदोलन की मजबूती के साथ नींव रखते है। विगत दिनों 26 जून 2022 से सोशल मीडिया के माध्यम से आंदोलन की विस्तृत रूपरेखा के साथ, आपके सुझाव और विचार विमर्श हेतु आमंत्रित करता हूं। जो लोग इस आंदोलन से जुड़ना चाहते हैं और अपने एरिया से अग्रणी भूमिका निभाना चाहते हैं वो लोग अपना नाम, शहर व प्रदेश का नाम मेरे व्हाट्सअप नम्बर पर भेज सकते हैं

अब्दुल मुईद सिटी-रिपोर्टर (एस0एम0 न्यूज 24टाइम्स) 9936900677

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