श्रीराम मंदिर न्यास गठन पर उठे सवाल, धर्माचार्यों की अनदेखी का आरोप

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा मंदिर में आरक्षण कहाँ तक सही, जायेंगे कोर्ट…

वरणासी/भदैनी मिरर। अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाये नए न्यास गठन पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सवाल खड़ा करते हुए केंद्र सरकार के मंशा पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होने इसके साथ ही न्यास गठन में चयनित स्वामी वासुदेवानन्द जी के नामित होने पर भी गम्भीर आरोप लगाएं। साथ ही उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्माचार्यों के विरुद्ध षड्यंत्र करने का संशय जाहिर किया। उन्होंने कहा कि इसके विरुद्ध वह कोर्ट जाएंगे, जिस नए न्यास का गठन हुआ है उससे साफ प्रतीत होता है कि धर्मस्थानों पर आरएसएस अपने लोगों को बैठा रही है, इससे धर्मगुरुओं का अपमान होना लाजमी है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने श्री विद्यामठ में आयोजित एक पत्रकारवार्ता के दौरान केंद्र सरकार के मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि जब सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीरामजन्मभूमि विषयक विवाद में फैसला दिया तो हर सनातनी हिन्दू अपने विचारों को अलग रख उसका स्वागत किया था। मगर केंद्र सरकार ने एक अलग ही न्यास का गठन कर अपने ‘कार्यकर्ता’ सदस्यों की घोषणा कर यह जता दिया कि केन्द्र की भाजपा सरकार को हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्माचार्यों पर तनिक भी भरोसा नहीं है। रोष व्यक्त करते हुए स्वामी श्री ने सनातन धर्म में गुरु का स्थान सर्वोपर्री है, जो आम आदमी के जीवन में भव्यता-दिव्यता भरता है। गुरुओं को भी मार्गदर्शन मिले इसके लिये परमज्ञानी गुरुओं को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। धर्म के सम्बन्ध में सनातनी हिन्दुओं के लिये उन पूज्य आचार्यों के वचन ही प्रमाण हैं । उन आचार्यों की ही यदि उपेक्षा कर दी जायेगी तो फिर सनातन हिन्दू धर्म की रक्षा कैसे हो पायेगी?

स्वामी वासुदेवानन्द पर लगाया गम्भीर आरोप

न्यास गठन में धर्माचार्यों को स्थान न देने से भड़के स्वामी श्री ने कहा कि केंद्र सरकार धर्माचार्यों को परे धकेलकर हिन्दू जनता को पूरी तरह अपने वर्चस्व में लेने की नेताओं और उनके पीछे खड़ी तथाकथित  संस्थाओं की योजना तो नहीं? जिन स्वामी वासुदेवानन्द जी को केन्द्र सरकार ने न्यास में न्यास संस्थापक के बाद पहला स्थान दिया है वे ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य तो क्या सन्यासी भी नहीं हैं। न्यायालय के निर्णय को आधार बनाकर उन्होंने कहा कि कोर्ट ने उन्हें अयोग्य सन्यासी कहते हुये ज्योतिष्पीठाधीश्वर कहने से निषिद्ध कर दिया और इस निर्णय के विरुद्ध स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती द्वारा की गई अपील में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी फैसले को सही मानते हुए उनके विरुद्ध निषेधाज्ञा बरकरार रखी। इतना ही नहीं स्वामी वासुदेवानन्द जी प्रयाग के एक लूट मार के आपराधिक मामले में जमानत पर हैं। जो व्यक्ति सन्यासी ही नहीं सिद्ध हो सका उसे केन्द्र सरकार ने ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य के रूप में प्रस्तुत कर न केवल देश की उच्चतम न्यायालय की अवमानना है बल्कि सनातनी हिन्दुओं का अपमान भी है। इसके लिये हम अवमानना का केस भी डालेंगे और जनता में भी जायेंगे ।

ट्रस्टी होने के लिए आरएसएस का होना जरूरी ?

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आगे कहा कि ट्रस्ट में संघ कार्यकर्ताओं की ही नियुक्ति से ऐसा प्रतीत होता है कि संघ हमारे धर्मस्थानों पर कब्जे की तैयारी कर रहा है। यह वही मानसिकता है कि सब कुछ हम ही करेंगे । इसके लिये किसी को भी परे धकेलने के लिए भी वे तत्पर दिखाई दे रहे हैं। इसीलिए अपने प्रचारकों को उन्होंने ट्रस्ट में सम्मिलित कराया है। उन्होंने कहा कि किसी भी पद या दायित्व के निर्वहन के लिये कोई क्राइटेरिया यानी मानदंड होता है। तो फिर अयोध्या की श्रीरामजन्मभूमि में मन्दिर निर्माण के लिये अस्तित्व में आ रहे ट्रस्ट का ट्रस्टी होने के लिये भी तो कोई मानदंड होगा? ट्रस्ट की सूची देखकर तो यही लगता है कि संघी होना ही एकमात्र मानदंड है । जिसे किसी भी स्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता ।

मन्दिर में आरक्षण कहाँ तक उचित?

आरक्षण के विषय पर स्वामीश्री ने कहा कि आज जब पूरे देश में आरक्षण को रखने और हटाने पर चर्चा हो रही है तो फिर भविष्य के मन्दिर में आरक्षण क्यों? कम से कम रामजी के दरबार में तो सब बराबर होने चाहिए ? हम तो यह मानते हैं कि रामजी के दरबार में दर्शन के लिये हम सब हिन्दू एक रहें। पर यदि आरक्षण देना ही है तो केवल दलित को क्यों ओबीसी को भी क्यों नहीं? यह भेदभाव क्यों? जबकि दिये जा रहे आरक्षण में दलितों के 22 प्रतिशत की अपेक्षा ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देकर अग्रता हासिल है ।

कोर्ट जायेगा रामालय न्यास

रामालय न्यास का यह मानना है कि केन्द्र सरकार ने उच्चतमन्यायालय के निर्देशों का अनुपालन करने में पारदर्शिता नहीं अपनाई है। ट्रस्टियों की नियुक्ति में स्वेच्छाचारिता की है और दलित आदि शब्दों का उल्लेख कर हिन्दू समाज में भेदभाव किया है। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अपने पक्ष में अनुचित उपयोग किया है और हमारे फण्डामेण्टल और लीगल अधिकारों का हनन किया है। वासुदेवानन्द जी को न्यायालय द्वारा ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य कहे जाने से रोके जाने के बावजूद उस रूप में उद्घोषित कर न्यायालय की अवमानना की है और करोडों हिन्दुओं के दिल को दुखाया और गलत प्रचार किया है। अतः इसके विरुद्ध न्यायालय में जायेंगे। इसके लिये वरिष्ठ अधिवक्ताओं से सम्पर्क किया जा रहा है ।

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