जा़लिम के ख़िलाफ आवाज़ उठाना सुन्नते फा़तिमा है -मौ.इब्ने अब्बास

सगीर अमान उल्लाह जिला ब्यूरो बाराबंकी

मार्फत ए फातिमा को जानिए उनकी अजमत को पहचानिए अपने किरदार  में परतवे फातिमा  पैदा करें

बाराबंकी । जा़लिम के ख़िलाफ आवाज़ उठाना सुन्नते फा़तिमा है ।मार्फत ए फातिमा को जानिए उनकी अजमत को पहचानिए अपने किरदार  में परतवे फातिमा  पैदा करें । यह बात कर्बला सिविल लाइन में महफिल को खिताब करते हुए आली जनाब मौलाना इब्ने अब्बास साहब ने कहीं । उन्होंने यह भी कहा कि जालिमों के खिलाफ आवाज उठाना इंसानों का काम है नतीजों की फिक्र ना करें क्योंकि नतीजा देना खुदा का काम है । महफिल में नस्र के बाद नज़्म का सिलसिला चला डॉ रज़ा मौरांवी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढा़- वह जिस पर आकर यह पत्थर कलाम करते हैं , वह हाथ फातिमा तुम को सलाम करते हैं ।  मुसव्विर जैदपुरी ने पढ़ा . जो रिदा नुबूवत को बक्श दे तवानाई , उस रिदा के मालिक की आने की खबर आई । वक़ार सुल्तानपुरी ने पढ़ा –  दुश्मन नहीं सजदों पा इतना मुतमइन ,अश्कों पा मुझको  जितना भरोसा है फा़तिमा ।इफ़हाम उतरौलवी ने पढ़ा – इसी से समझ लो नसब फा़तिमा का , है उम्मे अबीहा लकब फा़तिमा का ।अजमल किन्तूरी ने पढ़ा – बरसरे किरतास जहरा का क़सीदा चाहिए ,जब कलम को सर झुकाना है तो क़ाबा चाहिए। मुहिब रिज़वी ने पढ़ा- ज़बानों लब में नहीं जुरअते नफ़स में नहीं , तेरा ख़याल ख़यालों की दस्तरस में नहीं ।आरिज़ जरगावीं ने पढ़ा –  आमद जनाबे फ़ातिमा ज़हरा हुयी की बस ,हर दुश्मने नबी का जनाज़ा निकल गया ।कलीम आज़र ने पढ़ा – रिश्ता है दीने हक का कुछ ऐसा बतूल से , हक शुर्ख़रू रहा है हमेशा बतूल से ।मुज़फ्फर इमाम ने पढ़ा – जो मुश्किलों में लिया मैंने नाम ज़हरा का , करम हुआ है नबी और इमाम जहरा का। हाजी सरवर अली करबलाई ने पढ़ा -जनाबे फ़ातिमा ज़हरा तुम्हारे आने से ,अमीरखा़ना हुआ दिल ग़रीबखा़ने से । कली चटकने लगी गुल खिले  हवा  महकी ,बहारें  शाद  हुईं  फ़ातिमा  के आने से ।इसके अलावा आसिफ अख़्तर बाराबंकवी,अदनान, ज़मानत जैदपुरी, अयान का़ज़मी वरज़ा मेहदी ने भी नज़रानये अकी़दत पेश की ।अयान ने तिलावत व मौलाना मुसव्विर ज़ैदपुरी ने हदीस ए क़िसा से महफि़ल का आग़ाज़ किया । निज़ामत  के फ़रायज़ अपने बेहतरीन अन्दाज़ में आली जनाब मौलाना हाजी अदीब हसन साहब क़िबला ने अंजाम दिये।

सगीर अमान उल्लाह जिला ब्यूरो बाराबंकी

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