जो  शक्ति व पराक्रम से परिपूर्ण होता है वह अपने बल का बखान नही करता

अवधेश कुमार वर्मा

मसौली बाराबंकी। कस्बा मसौली मोहल्ला कटरा भवानी नीम चबूतरा कस्बा में आयोजित पांच दिवसीय संगीतमयी श्री राम कथा के तीसरे दिन कथा व्यास श्री महेन्द्र “मृदुल”जी ने धनुष महोत्सव की कथा को सुनाते हुए कहा कि जो  शक्ति व पराक्रम से परिपूर्ण होता है वह अपने बल का बखान नही करता है।
जिस धनुष को बड़े बड़े बलशाली राजाओं ने अभिमान बस बलपूर्वक उठाना चाहा लेकिन उठा न पाए उस धनुष को श्री राघव ने गुरु कृपा से क्षण मात्र में उठा लिया और उसका भंजन कर दिया।
धनुष उठाने के बाद श्री राघव को कोई हर्ष या अहंकार न हुआ बल्कि उनको दुख हुआ क्योंकि धनुष श्री दधीच जी की अस्थियों से निर्मीत था जो संबंध में राम जी के बाबा थे।
*लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥*
मृदुल जी ने कहा कि राम जी की विनम्रता उनके विजय का प्रमुख अंग है।
जो विनम्रता से कार्य सिद्ध होता है वह कार्य अधिक क्रोध व आवेश में नही हो सकता।
मृदुल जी ने कहा कि परशुराम जी के क्रोध करने पर राम जी बड़ी विनम्रता से वार्ता करते है जबकि लक्ष्मण जी उग्र स्वभाव से वार्ता करते है , जिससे परशुराम जी का क्रोध बढ़ता जाता है। उस बढ़े हुए क्रोध को राम जी ने अपनी विनम्रता से ही जीता और अपने अवतारी होने का जब बोध कराया तो जिन परशुराम जी ने अधिक क्रोध दिखाया वे ही अपने अपराध की क्षमा याचना करके और राघव तथा माता जानकी को आशीर्वाद देकर पुनः अपने गंतव्य को चले गए।
*जय सीता जय लखन,जय राघव सुखकंद।*
*परशुराम वन को गए हुआ पूर्ण आनन्द।।*
मृदुल जी ने बताया कि महाराज जनक जी ने अयोध्या के चक्रवर्ती महाराज दशरथ जी को बारात के लिए आमंत्रित किया तो अयोध्या से बारात जनक पुरी पहुंची ।
महराज जनक जी ने बारातियों का बहुत भव्य स्वागत किया और हर बाराती को आपने हांथो से भोजन कराया।
मृदुल जी ने कहा कि महाराज जनक जिनका वास्तविक नाम सीरजध्वज था उन्होंने अपने भाई कुशध्वज की कन्याओं का विवाह भी श्री राघव के भाइयों के साथ करवा दिया।
जनक जी के विषय मे बताया कि
*दस भाई थे जनक जी तीन मातु विख्यात।*
*प्रजापाल अति प्रेम से रहत जनक पुर भ्रात।।*
जनक जी के पिता जी श्री हरस्वरोमा जी थे तथा इनकी माताएं तीन थी *जाज्या ,सदा और सर्वदा*।
मृदुल जी ने कहा कि जनक जी का एक नाम *विदेह* भी था जिसके कारण श्री जानकी जी को बैदेही कहा गया।
जनक जी का विदेह नाम भगवान की घोर साधना व चिन्तन के प्रतिफल में इन्हें प्राप्त हुआ ।
*रहत ब्रम्ह में ध्यान लगाएं।*
*ताते जनक बिदेह कहाए।।*
मृदुल जी ने कहा कि जनक पुरी में बारात
*चौहत्तर दिन टिकी बराता।*
*आनंद प्रेम न जनक समाता।।*
शुक्र अस्त होने के कारण बारात इतने दिन रुकी जब शुक्रोदय हुआ तो महराज दशरथ जी ने बार बार विदा मांगी तब जनक जी ने बारात की बिदाई की ।

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