अर्दोग़ान की मोहलत समाप्त, सीरियाई सेना एक मीटर भी पीछे नहीं हटी, तुर्की को लगातार लग रहे हैं झटके पर झटके, इदलिब की लड़ाई में बड़ी भूल करने जा रही है अंकारा सरकार
समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ
यमन युद्ध में सऊदी गठबंधन को लगा एक और झटका, अल-जौफ़ प्रांत पर फिर से लहराया यमनी राष्ट्र का झंडाअल-जौफ़ प्रांत यमन के स्ट्रेटेजिक स्थानों में से एक है, इस प्रांत का यमन के पांच प्रांतों, सअदा, इमरान, सनआ, मारिब और हज़रमौत से सीधा संपर्क है, इस प्रांत की आज़ादी से यमनी सेना को उत्तर पूर्व के युद्ध में महत्वपूर्ण स्ट्रेटेजिक लाभ मिलेगा और इस प्रांत की दूसरी सबसे अहम विशेषता इसका आर्थिक महत्व है, क्योंकि अमेरिकी सूत्रों ने इस प्रांत में तेल होने की पुष्टि की है।
इदलिब में युद्ध की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है और लगातार ख़तरनाक मोड़ से आगे बढ़कर अधिक ख़तरनाक मोड़ पर पहुंच रही है।
तुर्क राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान ने सीरियाई सेना को इदलिब के इलाक़े से पीछे हटने के लिए जो मोहलत दी थी वह समाप्त हो चुकी है जबकि सीरियाई सेना ने इस चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया है और वह एक मीटर भी पीछे नहीं हटी है। सवाल यह है कि तुर्क राष्ट्रपति को सीरियाई सेना से पीछे हटने की मांग करने का क्या अधिकार है। इदलिब सीरिया का इलाक़ा है और वहां तैनात होने का सीरियाई सेना को पूरा अधिकार है।
सीरिया के पटल पर एक बड़ी घटना यह हुई है कि तुर्की ने सीरिया के दो युद्धक विमान मार गिराए हैं जबकि इससे पहले सीरियाई सेना ने तुर्की के तीन ड्रोन विमान ध्वस्त कर दिए। सीरिया और तुर्की की सेनाओं के बीच लड़ाई जारी है और हिज़्बुल्लाह के योद्धा भी मैदान में आ गए हैं।
तुर्क राष्ट्रपति अर्दोग़ान ने रविवार को कहा कि वह स्प्रिंग ढाल नाम का आप्रेशन शुरू कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने 15 हज़ार सैनिक तैनात कर दिए हैं जबकि सीरियाई विद्रोही संगठनों को उन्होंने एंटी एयरक्राफ़्ट मिसाइल भी दे दिए हैं। यह मिसाइल केवल सीरियाई सेना के युद्धक विमानों ही नहीं बल्कि रूसी युद्धक विमानों के लिए भी ख़तरनाक हैं। इसका मतलब यह है कि तुर्की ने सारी रेड लाइनें पार कर ली हैं।
अर्दोग़ान सीरिया की धरती पर रूस से मुक़ाबला तो नहीं चाहते क्योंकि उनको पता है कि इस प्रकार के मुक़ाबले में उन्हें पराजय के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।
अर्दोग़ान ने कहा कि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतीन से मांग की कि वह अपनी सेना बीच से हटा लें तो हम सीरियाई सेना को देख लेंगे मगर इसका जवाब क्रेमलिन हाउस की ओर से आ गया है कि रूसी सेना सीरियाई सरकार के अनुरोध पर सीरिया गई है और वहां आतंकवाद से लड़ रही है जबकि तुर्की और अन्य देशों की सीरिया में उपस्थिति ग़ैर क़ानूनी है।
यह बात भी विचार योग्य है कि हालिया लड़ाई में अपने दर्जनों सैनिकों की मौत के मामले में तुर्की ने रूस के खिलाफ़ कोई बयान नहीं दिया जबकि कहा जाता है कि इस हवाई हमले में रूस शामिल था। इसका कारण शायद यह है कि अर्दोग़ान रूस के साथ कोई समझौता चाहते हैं।
अर्दोग़ान ने अमरीका से पैट्रियट मिसाइल मांगे हैं, वही मिसाइल जिन्हें सऊदी अरब के भीतर यमन की सेना और स्वयंसेवी बलों ने पूरी तरह नाकारा कर दिया है। पैट्रियट मिसाइल मांगने का मतलब यह है कि तुर्की इस लड़ाई में रूस से मिलने वाले एस-400 मिसाइल डिफ़ेन्स सिस्टम इस्तेमाल नहीं कर पाएगा।
इदलिब में तुर्की के सैनिक आप्रेशन को देखकर इराक़ के ख़िलाफ़ अमरीका का युद्ध याद आता है। अर्दोग़ान एक बात भूल रहे हैं कि सीरियाई सेना इराक़ की 2003 की सेना से बहुत ज़्यादा ताक़तवर है और उसे रूस, ईरान और हिज़्बुल्लाह का समर्थन हासिल है। इराक़ युद्ध में अमरीका के 3500 सैनिकों की जान गवांनी पड़ी थी और उसके 30 हज़ार से अधिक सैनिक घायल हुए थे जबकि छह ट्रिलियन डालर की रक़म स्वाहा हो गई थी।
रूस ने दो युद्धक जहाज़ भेजे हैं जो क्रूज़ मिसाइलों से लैस हैं। यह तुर्क राष्ट्रपति के लिए पुतीन की वार्निंग है। नैटो ने तुर्की की मदद करने से इंकार कर दिया है जो अपनी जगह अर्दोग़ान के लिए एक बड़ा संदेश है। तुर्की ने शरणार्थियों का कार्ड भी प्रयोग करना चाहा लेकिन यूरोप ने अपनी समाएं बंद करके अर्दोग़ान को एक और संदेश भी दे दिया। पता नहीं अर्दोग़ान के लिए अगले संदेश क्या होंगे।
इदलिब के सुराक़िब इलाक़े में हिज़्बुल्लाह और शायद इराक़ी हश्दुश्शअबी के लड़ाकों और ईरानी विशेषज्ञों का पहुंच जाना बहुत बड़ी घटना है। यह वह ताक़ते हैं कि जब भी किसी युद्ध में उतरी हैं तो युद्ध जीतकर ही वापस आई हैं।
इस बीच ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने तेहरान या मास्को में ईरान, तुर्की, सीरिया की शिखर बैठक का प्रस्ताव दिया जो अर्दोग़ान के सामने संकट से बाहर निकलने का बेहतरीन उपाय हो सकता है मगर अर्दोग़ान ने अब तक इसका जवाब नहीं दिया है।
अगर अर्दोग़ान यह सोच रहे हैं कि पिछले नौ साल में सीरिया के पटल पर जो लक्ष्य वह पूरे नहीं कर सके हैं उन्हें वह इदलिब में पूरा कर लेंगे तो वह बहु बड़ी भूल कर रहे हैं। पहले तो सीरियाई विद्रोही दमिश्क के दरवाज़े पर पहुंच गए थे और उन्हें दुनिया के 65 देशों का समर्थन हासिल था।
रूस और ईरान अब सीरिया का साथ छोड़ने वाले नहीं हैं और राष्ट्रपति असद की पोज़ीशन भी काफ़ी मज़बूत हो चुकी है बल्कि यह कहना ग़लत नहीं होगा कि असद की स्थिति इस समय अर्दोग़ान से ज़्यादा मज़बूत हैं जो अपने सारे घटकों को गवां चुके हैं।
अब्दुल बारी अतवान अरब जगत के मशहूर टीकाकार