गजब!शपथ ग्रहण होते ही लटक गए लटकनाथ? समारोह में अव्वल दर्जे की बेशर्मी लिए समर्पित सहयोगियों पर कहर बरपा रहे थे लटकनाथ?

कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)

कोई हंसे तो हंसे उनका लक्ष्य था अध्यक्ष फंसे या सभासद फंसे? बोलें हमें दाम कमाना है, ऐडिया नहीं रगड़ना

बाराबंकी । नगर निकाय चुनाव में चुने गए जनप्रतिनिधियों का शपथ ग्रहण संपन्न हो गया। इस दौरान तमाम लोग सक्रिय थे ।तो वही लगभग हर कार्यक्रम में अपने फायदे के लिए कुछ भी कर जाने वाले विचित्र लटकनाथ भी महती भूमिका में नजर आए! इन होशियार कालनेमियों की स्थिति बयां कर रही थी कि हमें दाम कमाना है।हवा मे सर नहीं पटकना। ऐसे लटकनाथों का कहर देखकर चुने गए जनप्रतिनिधियों के समर्पित सहयोगी भी दंग थे।जबकि लटकनाथ की नीयत साफ थी!कोई हम पर हंसे तो हंसे। मेरे जाल में अध्यक्ष फंसे या सभासद फंसे? अपुन को तो दाम कमाना है दाम!!चुनाव परिणाम आने के बाद होने वाले शपथ ग्रहण में पक्ष व विपक्ष सभी को शामिल होना चाहिए। यही लोकतंत्र की सच्ची परिभाषा है। निकाय शपथ ग्रहण कार्यक्रमों में इस परिभाषा को जहां लोग हृदय से चरितार्थ करते हुए दिखे। वहीं इन शपथ पंडालों में ऐसे भी चेहरे दिखाई दिए! जो स्वार्थ सिद्धि के लिए बेशर्मी के समुद्र में नहा कर अपने फायदे के लिए कुछ भी करने व कुछ भी सुन लेने का माद्दा रखते हैं। ये लोग भले ही चुनाव में साथ ना हो। लेकिन सामने वाला चुनाव जीता तो यह उसके साथ चतुर प्रयासों से लग ही जाते हैं। इन्हें कोई खेदे या कोई टरकाए, कोई हड़काए? इन पर कोई असर नहीं पड़ता?यह चुने गए जनप्रतिनिधि के अगल-बगल लटकने का लक्ष्य पूरा ही कर लेते हैं! ऐसे विचित्र लटकनाथ आज शपथ ग्रहण समारोह में पंडालो से लेकर मंच तक अपनी चापलूसी फिल्म दिखाते नज़र आए।

किसी ने कुछ कहा तो इन्होंने उसे तुरंत सुना। माला से लेकर गमछा तक कोई भी सामान लेने- देने व काम की बात हुई तो राम कसम!लटकनाथ ने उसे दौड़कर लपक लिया। किसी ने पूछा भैया आप तो इनके साथ नहीं थे।बिल्कुल दार्शनिक अंदाज में बोले लटकनाथ। लोकतंत्र है, हम लोकतंत्र का पालन करते हैं। चुनाव खत्म। जो जीता वो हमारा जनप्रतिनिधि।चुनाव में दुश्मनी नहीं करनी चाहिए। बेचारा सामने वाला भी लटकनाथ की ऐसी संतवाणी सुनके चुप हो गया। हां बुद्धिमता से जब इन्हें घेरों तो यह बोल पड़ते हैं। ठेका पट्टा लेना है। खाली- पीली हारे प्रत्याशी का गम मना कर सर नहीं पटकना है? जेब में रुपया होगा तब सब कोई पूछेगा! हमारी मुहिम तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही शुरु थी। हम पर कोई हंसता है तो हंसे ।हमें कोई बेशर्म, स्वार्थी बोले तो बोलता रहे। हंसे तो हंसे ।अपना तो लक्ष्य है कि हमारी स्वार्थ सिद्धि हो। चाहे इसके लिए हमारे जाल में अध्यक्ष फंसे या सभासद फंसे? शपथ ग्रहण पंडालों में ऐसे लटकनाथों के आगे जनप्रतिनिधियों के असली सहयोगियों की सक्रियता भी पानी मांग रही थी?चुनाव में अपने प्रत्याशी के लिए दिन-रात एक कर देने वाले सहयोगी, लटकनाथों की बेशर्मी के आगे विवश थे। उधर विचित्र लटकनाथ!  अरे गजब, अध्यक्ष जी ने कुछ बोला तो उन्होंने तपाक से सुना। सभासद ने बोला तो फटाक से सुना ।मंच पर मौजूद अधिकारी कुछ बोला तो उसके पास सुनने की मशीन लेकर पहुंच गए? क्या कुछ नहीं कर रहे थे बेचारे लटकनाथ।

फोटो खींचने से लेकर फोटो खिंचवाने तक पूरा ध्यान था। मजाल नहीं था कि कोई आवश्यक फोटो छूट गई हो! जबकि दूसरी तरफ जनप्रतिनिधि के खास कार्यकर्ता दूर कुर्सी पर बैठे खुशी में ताली बजा रहे थे। जो मंच पर थे वे पूरी तरह अनुशासित व समर्पित थे। खास था कि इन पंडालों में भिन्न-भिन्न प्रकार के अवतरित लटकनाथों ने अपनी स्वार्थ पूर्ति की पटकथा को पूरा कर लिया था ।जिसके परिणाम आने वाले दिनों में सामने आएंगे। मुहिम सफल हुई तो खुशी से बोले लटकनाथ। दाम कमाना है तो कमाना है। जेब में रुपया होगा तो बड़े-बड़े चरण चूमेंगे। रहें फलाने जनप्रतिनिधि तो बाद में दाम की उनको भी जरूरत है? और दाम हमारे जैसे लटकनाथ ही कमवाएंगे? जब तक हम अगल-बगल लटकेंगे नहीं?तब तक दाम जी। अध्यक्ष हो या सभासद।उनके बगल फटकेंगे भी नहीं। क्योंकि पब्लिक में भी दामूशाह नेता का जलवा रहता है। आज की दुनिया में संत चुनाव नहीं जीतते ।आज की दुनिया में रुपया व प्रभाव चुनाव जीतने में महती भूमिका निभाता है। राजू भैया जी हम लटकनाथ उसी के संवाहक हैं। कोई हमें स्वार्थी कहे, कोई हमें बेशर्म कहे, कोई हमें लटकन कहे ?लेकिन हम वास्तव में हम हैं! बिना हमारे बिना कोई काम नहीं हो सकता? ठीक उसी प्रकार से जैसे खाने की प्रत्येक थाली में चम्मच जरूरी है और बड़े बर्तन में बड़ा चम्मचा। स्पष्ट है कि लटकनाथों ने शपथ ग्रहण होते ही अपनी व्यवस्था को संभाल लिया है। जनप्रतिनिधियों के आसपास ऐसे कई लटकनाथ आज से ही मजबूती से लटकते नजर आए? जबकि कुछ लटकनाथ अभी लगें हैं?इन्हें देखकर लोग बोल पड़े! मान गए जुगाड़ दर जुगाड़ करके सब कुछ पाने वाले उस्ताद !आप तो शपथ ग्रहण होते ही लटक गए लटकनाथ!  कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)

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