ईद मिलन के मौक़े पर बज़्म अज़ीज़ का ग़ैर तरही मुशायरा

मुकीम अहमद अंसारी

बाराबंकी।()ईद मिलन के मौक़े पर शहर के मोहल्ला नबीगंज स्थित अलहाज नसीर अंसारी के आवास पर ग़ैर तरही मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता ज़मीर फ़ैज़ी रामनगरी ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर लखनऊ के इरफ़ान बाराबंकवी उपस्थिति रहे। जबकि विशिष्ट अतिथि के रुप में डॉक्टर एस.एम. हैदर तथा अदील मंसूरी शामिल थे।

मुशायरे में शायरों ने एक से बढ़कर एक कलाम पेश किए।
अलहाज नसीर अंसारी- ठीक उसी सूरत से टकराती हैं आंखें,जिस तरह। इत्तिसाले जाम-ओ-मीना देर पा होता नहीं।।
ज़मीर फ़ैज़ी- वो अश्क ढूंढ रहा है हमारी आंखों में। उसे बताओ की आंखों से हम नहीं रोते।।
इरफ़ान बाराबंकवी (लखनऊ) हमने वीराना-ए दिल इस तरह आबाद किया। जिसने तोड़ा कभी दिल हमने उसे याद किया।।
सग़ीर नूरी- वो बदगुमां है अभी ख़ुश ख़्याल हो तो चलूं। तअल्लुक़ात का मौसम बहाल हो तो चलूं।।
हुज़ैल लालपुरी- बढ़ी ये आग तो गुलशन जला के रख देगी। अभी तो ज़द पे फ़क़्त मेरा आशियाना है।।
डॉक्टर रेहान अलवी – चांद सितारे अपने घर ले आता हूं। बच्चों का जब दिल बहलाना होता है।।
क़ारी अब्दुल सत्तार बिलाली फ़तेहपुरी- औरों के दुख से दिल भी दुखता है बस उसी का। होती है आदमीयत कुछ भी जिस आदमी में।।
इरशाद बाराबंकवी- बड़ी मुश्किल से उसने बात मानी। बड़ी मुश्किल से समझौता हुआ है।।
मास्टर इरफ़ान बाराबंकवी – हमसे मिलने जो तुम आ गए ईद में। मिल गए हमको सारे मज़े ईद में।। मुजीब रुदौलवी- क़त्ल जिसने किया वो बरी हो गया। उसके इल्ज़ाम सब सर मेरे आ गए। हस्सान साहिर फ़तेहपुरी- कई महीनों से आया नहीं तेरा क़ासिद। ये सिलसिला है रुका क्यों ख़त-ओ किताबत का।। शम्स ज़िकरयावी – वो जब मिले तो बोले कि जी भर के देख लो। रुख़ से नक़ाब आज उठाए हुए हैं हम।।
सरवर किन्तूरी – मोहब्बत करने वालों का अजब अंदाज होता है। सितम महबूब के सहते हैं ओर शिकवा नहीं करते।।
तुफ़ैल अहमद ज़ैदपुरी – हमारी जान के लाले पड़े हैं। तुम्हारे मुंह पे क्यों ताले पड़े हैं।।
मिस्टर अमेठवी- मोहब्बत में उलझा तो निकला ज़ुबां से। बहुत बन रहे थे ना होशियार मिस्टर।। इनके अलावा अदील मंसूरी, सबा जहांगीराबादी, बशर मसौलवी, नज़र मसौलवी ने भी अपने कलाम पेश किए। मुशायरे के आख़िर में बज़्म के जनरल सेक्रेटरी हुज़ैल लालपुरी ने सभी शायरों और श्रोताओं का शुक्रिया अदा किया। तथा ऐलान किया कि अगले माह की नशिस्त (क्यों इस क़दर उदास हो आख़िर हुआ है क्या)” हुआ क़ाफ़िया और है क्या रदीफ़” पर होगी।

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