राजनीति में राजनीति बनाम नेताओं की निष्ठा

प्रदीप सारंग 9919007190

बाराबंकी लोकसभा 2024

जो कहा जाए, जरूरी नहीं कि वही किया जाए। जो करना है उसे कभी कहा ही न जाए। सच की शक्ल में झूठ बोलना तथा बाएं बाजू बकरी और दाएं बाजू शेर एक साथ लेकर चलना ही शायद राजनीति की जरूरी योग्यता बन गयी है। मेरे मुक्तक की एक पंक्ति ही है- “कुर्ते के दाग जामुनी जो ढक ले नील से, नेता वही सफल है भारत महान में।”
दरअसल मौजूदा राजनीति में दो योग्यताओं की ही परख होती है, एक पैसा और दूसरी जाति। बहुत मायने रखता है कि आप किस जाति से हैं और कितना पैसा खर्च कर सकते हैं। आपका बैकग्राउंड क्या है, राजनीति में इसका कोई लेना देना नहीं है। लेना देना है तो सिर्फ इस बात से कि आप बेशर्म कितने हैं और गालियां खाकर तुंरन्त मुस्करा सकते हैं कि नहीं। अगर एक और योग्यता की बात की जाए तो वो हो सकती है कि कितने खूबसूरत ढंग से आप सामने वाले को मूर्ख बना सकते हैं कि अगले को एहसास तक न हो।
ऐसी ही खूबियों से लबरेज चुनावी योद्धाओं से निष्ठा की अपेक्षा करना पूर्णतया बेमानी होगी। आज आम हो चला है कि- रहेंगे किसी और दल में, करेंगे किसी और दल की। खाएंगे कहीं और बजायेंगे कहीं और। दिन के उजाले में कुछ और रात के अँधियारे में कुछ और। जिस पत्तल में खाएंगे उसीमें छेद करने में कोई गुरेज नहीं। जिसने उँगली पकड़कर चलना सिखाया हो उसी के सिर पर पैर रखकर निकल जाना, सर्वश्रेष्ठ योग्यता का मापदंड है। कुछ ऐसे ही अजब-गजब के नजारे बाराबंकी के लोकसभा चुनाव 2024 के दरम्यान उपस्थित हैं। राजनीति का चश्मा उतार कर कोई भी ऐसे अद्भुत कारगुजारियों का दर्शन और रसास्वादन कर सकता है।
किस प्रत्याशी को बूथवार कितना वोट मिलेगा इसका आँकलन सभी राजनैतिक मास्टर पोलिंग के तुंरन्त बाद बूथ प्रभारियों की गणना के आधार पर करते हैं, किन्तु वोटिंग से पहले आंकलन का सिर्फ एक ही मॉडल प्रचलित है और वह है बिरादरी-वार प्राप्त होने वाले मतों का अनुमान। किस बिरादरी के कितने मतदाता चुनाव क्षेत्र में हैं और किस बिरादरी का कितने प्रतिशत वोट मिलने की उम्मीद है। ऐसी उम्मीद का आधार होता है किसी बिरादरी के नेताओं को अपनी बिरादरी में मिल रही प्रतिक्रियाएं और आश्वासन। लेकिन बहुत महत्वपूर्ण होता है कि जिस बिरादरी के नेता के आधार पर संभावित प्राप्त होने वाले मतों का आंकलन किया जा रहा है उसकी निष्ठा का प्रतिशत कितना है ?
बाराबंकी लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। सभी प्रत्याशी अनुसूचित जाति के हैं। अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि किस बिरादरी के कितने नेता किस प्रत्याशी के लिए कितनी निष्ठा से कार्य कर रहे हैं ? आइए एक दृष्टि डालते हैं कि दोनों प्रमुख प्रत्याशी राजरानी रावत एवं तनुज पुनिया के पक्ष में अनुसूचित जाति के जनपद स्तरीय कौन कौन से नेता चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। बाराबंकी में अनुसूचित बिरादरी की दो बिरादरियाँ रावत और गौतम बहुसंख्यक हैं। रावत बिरादरी की भाजपा प्रत्याशी के पाले में सांसद उपेन्द्र सिंह रावत, पूर्व मंत्री बैजनाथ रावत विधायक दिनेश रावत तो इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के पाले में पूर्व सांसद राम सागर रावत, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष राम गोपाल रावत, विधायक गौरव रावत खड़े नजर आ रहे हैं। यह सच है कि इन्ही नेताओं के प्रभाव में रावत वोटों का बटवारा होना है। ये सभी नेता अपने-अपने प्रत्याशी के पक्ष में जितनी मुस्तैदी से जुटे होंगे उतनी अधिक मात्रा में वोट दिलाने में सफल रहेंगे।
इस चुनाव में भितरघात की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। स्वयं सांसद बनने के पल रहे मंसूबों के कारण किसी और की विजय गँवारा नहीं। कोई नेता इसलिए दुखी और असंतुष्ट है कि प्रत्याशी उनसे मिलने नहीं गया और कोई इसलिए कि नामांकन के दिन हुई जनसभा में मंच पर जगह नहीं मिली या तरजीह नहीं दी गयी। रणनीतिकारों एवं प्रत्याशियों की ऐसी चूक का खामियाजा भी उनके चुनाव को भुगतना होता है। ये तो रही नेताओं की डगमगाती निष्ठा की बात। अब अगर समर्थकों की बात की जाए तो भी देखने को मिलता है कि किसी को गाड़ी नहीं दी गयी इसलिए नाराज, किसी किसी को कार्यालय या आयोजन में अपेक्षित सम्मान नहीं मिला इसलिए नाराज। ऐसे नाराज लोग प्रायः अपनी नाराजगी व्यक्त नहीं करते। जो व्यक्त करते हैं उन्हें मना लिया जाता है। लेकिन जिन समर्थकों की नाराजगी की सूचना प्रत्याशी या रणनीतिकार तक नहीं पहुँच पाती है ऐसे लोग या तो ऊर्जाहीन होकर घर बैठ जाया करते हैं बिना दल बदले भितरघाती बन जाया करते हैं।

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