गाँवों का आपसी सौहार्द निगल रही हैं विभाग की दोषपूर्ण नीतियाँ तथा कर्मचारियों की खोटपूर्ण नियति

प्रदीप सारंग 9919007190

चकबंदी कर्मियों की जालसाज-कार्यशैली से आपस में

 लड़ती रहती हैं कई पीढ़ियाँ 

 

सरकार के किसी विभाग की सफलता का प्रतिशत तय होता है उत्कृष्ट नीतियों से, नीतियों को लागू करने वाले सशक्त तंत्र से और तंत्र में काम करने वाले कर्मचारी और इन कर्मचारियों की कुशलता तथा उनकी नियति से। आजादी के सत्तर साल बाद सरकार के हर विभाग की आलोचना-समालोचना की जा सकती है। बल्कि यूँ कहें कि समालोचना की ही जानी चाहिए बहुत अच्छा हो कि प्रत्येक विभाग स्वयं अपनी समालोचना करे कि जिन उद्देश्यों को लेकर विभाग का गठन किया गया था उन लक्ष्यों की प्राप्ति में कितनी तत्परता और निष्ठा से काम हुआ है तथा कैसे और अधिक तत्परता एवं निष्ठा से काम हो सकता है। अगर मुझे समालोचना करनी हो तो बहुत जोरदारी से एक बात कहना चाहूँगा कि सभी विभागों पर एक आरोप बनता है कि इनके कर्मचारियों में निष्ठा की कमी तथा नियति में खोट उपस्थित है। सभी विभाग के कर्मचारियों में कामचोरी भरपूर भरी पड़ी है लेकिन दो विभाग ऐसे हैं जिनके कर्मचारियों में कामचोरी तो है ही नहीं, ये दो विभाग हैं पुलिस और चकबंदी। लेकिन इन दोनों विभाग के कर्मचारियों की नियति में खोट का प्रतिशत अन्य विभाग की तुलना में बहुत अधिक है।

चकबंदी का एक उद्देश्य यह भी है कि चकबंदी के बाद उस गाँव के आपसी विवाद समाप्त हो जाते हैं जबकि चकबन्दी समाप्ति के बाद  चकबंदी कर्मियों के जालसाज-कारनामों का परिणाम होता है कि कई पीढ़ियाँ आपस में लड़ती रहती हैं। 

इन सबका एक ही कारण होता है कि चकबंदी विभाग द्वारा  धारा 52 के प्रकाशन यानी चकबन्दी समाप्ति से पूर्व यानी अभिलेख राजस्व विभाग को सौंपने से पहले नए भूचित्र के अनुसार मौके पर प्रत्येक किसान को नापकर कब्जा करा दिया जाए। जबकि चकबंदी अधिनियम की धारा-27 के तहत रिकॉर्ड (बंदोबस्त) तैयार किया जाता है, जिसमें आकार पत्र-41 और 45 बनाया जाता है। नए भूचित्र का निर्माण किया जाता है, जिसमें पुराने गाटों के स्थान पर नये गाटे बना दिए जाते हैं। और सबसे अंत में नए भूचित्र के अनुसार मौके पर कब्जा परिवर्तन कराते हुए मेड़बन्दी कराई जाती है। इसके बाद चकबंदी समापन की घोषणा की जानी होती है। किन्तु प्रायः नए भूचित्र अनुसार बिना कब्जा परिवर्तन कराए ही, कब्जा परिवर्तन करा दिए जाने की फर्जी आख्या के आधार पर चकबन्दी का समापन कर दिया जाता है।

कहने को इस सम्पूर्ण चकबन्दी प्रक्रिया की हर स्तर पर गहन जाँच की जाती है किन्तु अधिकारी कर्मचारी इस मामले में पूरी पूरी खुली बेईमानी करते हैं बेशर्मी पूर्वक झूठ बोलते हैं न सिर्फ मौखिक बल्कि लिखित झूठ बोलते हैं कि कब्जा परिवर्तन करा दिया गया है। नए भूचित्र के अनुसार किसानों के चकों की मेड़बन्दी न कराया जाना हर उस गांव के लिए  अभिशाप बन जाता है जहाँ जहाँ चकबंदी सम्पन्न होती है। चकबन्दी विभाग के कर्मचारियों की नियति में खोट सर्वाधिक इसलिए भी हम कह रहे हैं क्योंकि अधिकांश ग्रामों में चकबन्दी समिति के सदस्यों पदाधिकारियों से पहले ही सादे कागजों पर हस्ताक्षर करा लिए जाते हैं। यदि कोई सदस्य सादे कागजों पर हस्ताक्षर मना करता है तो उसके चकों का आकार बढ़ा देने , खेत के निकट परती भूमि छोड़ने जैसे अनेक लालच देकर राजी कर लिया जाता है। यानी दो चार को अन्यथा  लाभ देकर पूरे ग्रामवासियों के हितों को नजरअंदाज कर चकबन्दी अधिकारी कर्मचारी अपना उल्लू सीधा कर लिया करते हैं। चकबन्दी अधिकारियों द्वारा योजनापूर्वक रचे गए चक्रव्यूह के प्रभाव में आकर ग्राम चकबन्दी समिति के सभी सदस्य सहित अध्यक्ष भी सिर्फ इन खोट-नियति वाले अधिकारियों की कठपुतली बनकर रह जाते हैं।

चकबंदी का मुख्य उद्देश्य तय किया गया था कि किसान को खेती लायक उसकी जमीन एक ही जगह उपलब्ध कराना, क्योंकि देश की बढ़ती जनसंख्या और परिवार में होते बँटवारे से खेती की जमीन भी बँट जाती है, जिससे खेतों के आकार घट जाते हैं। जगह-जगह बिखरे हुए जोतों को एक स्थान पर करके बड़ा चक बना दिया जाय। जिससे चकों की संख्या कम हो जाय और किसानों को खेती करने में आसानी हो। बड़ी जोत में ही किसान अपने संसाधन का समुचित उपयोग कर पाते हैं, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है। 

चकबंदी होने से गाँवों में जमीन को लेकर जो झगड़े हैं, वह कम होने के साथ ही गाँव की सार्वजनिक भूमि पर जो लोग अवैध रूप से काबिज हैं, उनसे उस भूमि को मुक्त करा लिया जाय। चकबंदी के दौरान खेतों की सिंचाई के लिए प्रत्येक चक को नाली और आवागमन की सुविधा के लिए चकमार्ग यानि चकरोड से जोड़ दिया जाय। पर्यावरण सुधार हेतु गाँवों में वृक्षारोपण के लिए भी जमीन आरक्षित कर दी जाय। इसके अलावा कूड़ा निस्तारण के लिए, खेलकूद के लिए, स्कूल, अस्पताल इत्यादि के लिए यथावश्यक भूमि आरक्षित कर दी जाय। यथासंभव किसान के सभी खेत एक ही जगह पर ला दिए जाएं ताकि वो उनकी देख भाल भी अच्छे से कर सकें।

चकबन्दी विभाग के बड़े-बड़े दावों यानी घोषणाओं और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान जैसा अंतर है। जनपद बाराबंकी के विकास खण्ड बंकी अंतर्गत ग्राम कमरावाँ निवासी किसान जगतपाल ने जिलाधिकारी बाराबंकी को भेजे गए प्रार्थना पत्र दिनांकित में जो आरोप चकबंदी विभाग पर लगाये हैं वे ही सिर्फ चकबन्दी विभाग को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। यह कहानी सिर्फ कमरावाँ ग्राम वासियों की नहीं है, यह कहानी हर उस ग्राम की है जहाँ चकबन्दी हुई है।

किसान जगतपाल लिखते है कि चकबन्दी अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा बिना कब्जा परिवर्तन कराए ही कमरावाँ ग्राम की चकबन्दी समाप्त कर दी गई जबकि जालसाज आख्या लिख दी कि कब्जा परिवर्तन करा दिया गया है क्योंकि बिना कब्जा परिवर्तन कार्य पूर्ण हुए चकबन्दी समाप्त नहीं की जा सकती थी। इस कारनामे के परिणाम स्वरूप कमरावाँ वासियों का आपसी सौहार्द समाप्त हो गया है आये दिन खेत मेड़ को लेकर लड़ाई झगड़े होते हैं। ग्राम वासियों की आय का बड़ा हिस्सा थाना पुलिस से लेकर न्यायालय और वकीलों पर खर्च हो रहा है। शांति और सुकून समाप्त हो गए हैं। जगतपाल माँग करते हैं कि किसी राजपत्रित अधिकारी के नेतृत्व में राजस्व कर्मियों की टीम बनाकर ग्राम के समस्त चकदारों के चकों की मेड़बन्दी करा दी जाए तथा दोषी कर्मचारियों को दण्डित किया जाए।

यद्यपि चकबन्दी आयुक्त ने हाल ही में एक आदेश दिया है कि चकबन्दी प्रक्रिया की निरंतर निगरानी राजस्व अधकारियों और चकबन्दी अधिकारियों की संयुक्त टीम करेगी। निश्चित ही इससे सुधार संभावित है किंतु कमरावाँ जैसे ग्राम जहाँ काफी पहले चकबन्दी समाप्त हो चुकी है वहाँ के लिए तो अलग से प्रयास करने ही होंगे।

  बड़ा मुद्दा है कि चकबंदी होने के बाद बरसों बरस पीढ़ी दर पीढ़ी खेत-मेड़ के मुकदमों में उलझे रहते हैं। आये दिन गाँव में झगड़े होते रहते हैं। गाँव का शांतिपूर्ण माहौल भंग होता है और आपसी सौहार्द भी नष्ट हो जाता है। आखिर इन परिस्थितियों की जिम्मेदारी किस पर निर्धारित की जाएगी? इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि क्या चकबन्दी विभाग अपना पुनर्मूल्यांकन करेगा अथवा किसी बाहरी शक्ति जैसे मुख्यमंत्री राजस्व मंत्री अथवा जिलाधिकारी व आयुक्त जैसे बड़े सक्षम अधिकारी को आगे बढ़कर गाँव की इन समस्याओं के समाधान खोजने होंगे। 

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