पुनिया को पकड़ना मुश्किल ही नहीं! नामुमकिन है?

कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)

तनुज पुनिया को बाराबंकी का सांसद बनाकर माने सियासत के महारथी पुनिया!

टिकट से लेकर गठबंधन की जीत तक पुनिया ने सधे अंदाज में चलाये सियासी तीर

सपा सुप्रीमों से जुगलबंदी एवं कांग्रेस नेतृत्व के विश्वास के सहारे राष्ट्रीय स्तर पर बाराबंकी के राजनैतिक सिरमौर बने डॉ0पुनिया

बाराबंकी। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता एवं पूर्व सांसद डॉ0 पी0एल0 पुनिया ने सियासत के चतुर महायोद्धा के रूप में लोकसभा चुनाव में ऐसा राजनैतिक जौहर दिखाया कि भाजपा ही नहीं बल्कि गठबंधन के साथी भी दंग रह गये? चुनावी प्रबंधन एवं राजनीति की चौसर में सफल पांसे फेंककर जहां पुनिया अपने पुत्र तनुज पुनिया को बाराबंकी का सांसद बनाने में कामयाब हो गये। वहीं दूसरी ओर उन्होंने यह दर्शा दिया कि जिले में राष्ट्रीय फलक पर बाराबंकी की धमक कायम रखने वाले बस एकमात्र डॉ0 पी एल पुनिया ही हैं। डॉक्टर साहब का चरखा दांव देखिए! सपा से टिकट मांगने वाले कांग्रेस का प्रचार करते नजर आये! और पुनिया को पानी पी-पीकर कोसने वाले उनके मददगार बन गये? स्पष्ट है कि पुनिया ने अपने राजनीतिक अस्त्रो से ऐतिहासिक सफलता अर्जित कर यह दिखा दिया कि सियासी लहजे से राजनीति के सर्वगुण संपन्न कूटनीतिज्ञ “पुनिया को पकड़ना मुश्किल ही नहीं! ना- मुमकिन है”?

लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो चुका है। बाराबंकी से गठबंधन प्रत्याशी तनुज पुनिया सांसद बन चुके हैं। भाजपा कार्यकर्ता हार से दुखी हैं तो भाजपा के बड़बोले नेता लगभग चुप्पी साधे हुए हैं। लेकिन इस सम्पन्न लोकसभा चुनाव में यदि पूरे परिदृश्य पर नजर डाली जाये तो कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ0 पी0एल0 पुनिया राजनीति के सफल सुपर स्टार खिलाड़ी साबित हुए हैं। डॉ0 पुनिया ने जो सोचा उसे सफल बनाया। सनद हो कि बाराबंकी सपा के लोग यह मान रहे थे कि इस बार यहां से सपा का प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा। लेकिन जब गठबंधन हुआ तो यह सीट कांग्रेस के खाते में जा गिरी। अर्थात लोकसभा चुनाव में सपा टिकट के मामले में कांग्रेस के सामने ढेर हो गयी। जहां टिकट मांगने वाले सपाई दल छोड़ गये! वहीं कई ऐसे सपाई साइकिल को हाथ के पंजों की मजबूत पकड़ से चलाकर तनुज पुनिया के लिए वोट मांगने लगे। सपाइयों ने गठबंधन प्रत्याशी तनुज के लिए जमकर मेहनत की। सूत्रों के मुताबिक राजनीति में प्रवीन पुनिया ने संभवता बाराबंकी की सियासी पटकथा पहले ही लिख डाली थी। गौरतलब है कि सपा नेतृत्व से उनके सम्बन्ध व्यवहारिक रूप से पहले ही अच्छे थे। वे जब राज्यसभा सांसद बने थे। तो उस समय भी सपा के संरक्षक नेता मुलायम सिंह यादव डॉ0 पी0एल0 पुनिया के नाम पर ही उस चुनाव में कांग्रेस को समर्थन देने के लिए तैयार हुए थे। जाहिर है कि राजनीति के माहिर खिलाड़ी ने समाजवादी पार्टी को, टिकट अपने बेटे को दिलवाकर पीछे चलने के लिए मजबूर कर दिया! चर्चा है कि पुनिया सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव से पूरे चुनाव भर लगातार जुड़े रहे। शायद यही वजह रही कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाराबंकी के सपाइयों को साफ संदेश दे दिया था कि गठबंधन प्रत्याशी का चुनाव जीतना आवश्यक है। तनुज पुनिया के टिकट को लेकर डॉ0 पी0एल0 पुनिया व कांग्रेसी इतना मुतमईन थे कि उन्होंने चुनाव घोषणा से पहले ही तनुज को प्रत्याशी घोषित कर रखा था? खैर चुनाव प्रारम्भ हुआ तो पी0एल0 पुनिया ने बेटे तनुज पुनिया को सांसद बनाने के लिए अपने सभी सियासी शस्त्रों का प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। सपा के बड़े नेताओं के साथ बैठकें दर बैठकें! सपा पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं से मुलाकाते यह सब युद्ध स्तर पर हुआ। सपा के राष्ट्रीय सचिव अरविन्द सिंह गोप, सदर विधायक धर्मराज यादव, गौरव रावत, हाजी फरीद महफूज किदवई, पूर्व सांसद रामसागर रावत जैसे तमाम नेताओं का भी उन्हें खूब साथ मिला। पूर्व मंत्री राकेश वर्मा की पुत्री श्रेया वर्मा गोण्डा से सपा की प्रत्याशी थी! लेकिन इसके बावजूद भी राकेश वर्मा ने सपा अथवा गठबंधन के लिए ईमानदारी से काम किया। संकेत साफ थे कि बाराबंकी में डॉ0 पी0एल0 पुनिया, सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव के प्रतिबिम्ब बने नजर आ रहे थे?

बीते कई चुनाव में पराजय के बाद पुनिया इस बार मट्ठा भी फूंक-फूंककर पी रहे थे। पूरे लोकसभा बाराबंकी में उनके अपने निजी लोग माहौल बनाने में जुटे हुए थे। चाहे बड़े पुनिया डॉ0 पी0एल0 पुनिया हों या छोटे पुनिया तनुज पुनिया। दोनों पिता-पुत्र की जोड़ी ने हर राजनैतिक मंच पर चुनावी दृष्टिकोण से सपा के नेताओं को ही आगे रखा। पुनिया ने जहां भाजपा पर हमलावर होने की जरूरत थी वहां उन्होंने खूब हमले किये और जहां स्थानीय मुद्दों को धार देने की जरूरत थी वहां उन्होंने जनसमस्याओं को जनता में जमकर उठाया। कड़ी धूप, भीषण गर्मी में भी उम्र के बड़े पड़ाव पर अग्रसर पुनिया ने दवा खाते हुए भी प्रचार अभियान में तेजी बनाये रखी। जिसे देखकर गठबंधन सेना के सैनिकों का जोश भी चुनाव जीतने तक कम नहीं हुआ। यही नहीं तनुज पुनिया के कई बार चुनाव हारने पर जब भाजपा ने कटाक्ष करते हुए उनकी हंसी उड़ाई !तब डॉ0 पी0एल0 पुनिया ने भाजपाइयों के इसी कटाक्ष को तनुज के लिए सहानुभूति बनाकर भाजपा के हर दांव को चुनावी रण में काट कर ध्वस्त कर दिया।

सूत्रों के मुताबिक टिकट से लेकर चुनाव प्रचार तक डॉ0 पुनिया सक्रिय तो रहे ही! अलबत्ता उन्होंने बूथ स्तर पर सपा एवं कांग्रेस के बूथ अध्यक्षों को भी जमकर सम्मान दिया ! जब मदारपुर कोठी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी का कार्यक्रम रद्द हुआ तो पुनिया ने सधी रणनीति के तहत इसका ठीकरा भी भाजपा व जिला प्रशासन पर फोड़ जनता की सहानुभूति हासिल कर डाली।चुनावी घमासान में जब डॉ0 पीएल पुनिया के एक कथित वीडियो जो विकास पुरूष बेनी प्रसाद वर्मा जी को ले करके वायरल किया गया! उस स्थिति मे भी अपनो के सहयोग से पुनिया पार पा गये। अखिलेश यादव ने बाराबंकी की जनसभा में तनुज का हाथ पकड़कर जब सपाइयों से कहा कि आपको हाथ के पंजे पर वोट देना है। तो यह देख करके भी पुनिया मंच पर बैठे मंद-मंद मुस्कुराते नजर आये ।अर्थात पूरे चुनावी अभियान में डॉ0 पी0एल0 पुनिया आगे भी थे और गठबंधन साथियों के पीछे भी!
पुनिया ने इस बार जमकर मेहनत की। चर्चा है कि खासकर पूरे जनपद में नाराज भाजपाइयों पर उन्होंने सफल डोरे डाले! शायद यही वजह रही कि इस बार कई भाजपाई तनुज पुनिया की दुनिया बसाते नजर आये? यही नहीं उन्होंने रणनीति के तहत पुराने कांग्रेसियों में भी कांग्रेस जगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी? पूरे चुनाव पर पुनिया की सटीक नजर थी! कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री श्रीमती मोहसिना किदवई जी की कोठी पर कांग्रेस का चुनाव कार्यालय बना! तो वहीं सपा, आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस के कई पुराने नेताओं के साथ उन्होंने मतदाता भगवान को साध कर प्रसन्न कर दिया। परिणाम सामने है! तनुज पुनिया दो लाख से ज्यादा मतों से बाराबंकी में भाजपा का दुर्ग ढहा चुके हैं ।पुनिया का बेटे को सांसद बनाने का वर्षों पहले देखा गया सपना पूरा हो चुका है। साफ है कि एक पिता ने अपने बेटे को उसके कदमों पर खड़ा कर दिया। अब आगे बारी है तनुज पुनिया की? वह भविष्य में जो बोयेंगे वही काटेंगे? कुल मिलाकर पुनिया ने जो सधा अभियान चलाया वह उन्हें राजनीति का सफल खिलाड़ी घोषित कर गया। एक पत्रकार के रूप में मैं कृष्ण कुमार द्विवेदी राजू भैया यह मानता हूं कि इसी चाणक्य चातुर्य से पुनिया राष्ट्रीय फलक पर बाराबंकी की सियासी दुनिया का झण्डा फहराते नजर आ रहे हैं। स्पष्ट है कि सियासी लहज़े से राजनीति के सर्वगुण संपन्न कूटनीतिज्ञ “पुनिया को पकड़ना मुश्किल ही नहीं! ना- मुमकिन है?

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