सावन में साधना शिविर लगाओ, लोक-परलोक दोनों बनाओ – सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज

फ़िल्मी गाने के बजाय प्रार्थना, जयगुरुदेव नाम ध्वनि बोलते हुए बच्चे जब उठेंगे तो नाम रट जायेगा, मुसीबत में मुंह से निकलेगा और मदद हो जाएगी

जयपुर (राजस्थान)जीवों पर आध्यात्मिक दौलत लुटाने के नये-नये तरीके खोजने वाले, उसमें भी दिन दुनी रात चौगुनी बरकत, तरक्की के लिए समय-समय पर सुनहरे उपाय निकालने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने गुरु पूर्णिमा के पावन दिवस पर गुलाबी नगरी जयपुर में अपने प्रात: कालीन सतसंग में बताया कि हर पूर्णिमा पर आपको कोई न कोई आदेश दिया जाता है। कुछ नया नहीं तो पुराने आदेश के पालन (बढ़ाने) का बताया जाता है। आज यह आदेश दिया जा रहा है कि आप लोग सावन के महीने में साधना शिविर लगाओ। जहां जैसा संभव हो, शहर में, गांव में जहां जैसी जगह मिल जाए। घर पर किसी के नहीं, घर से बाहर जगह मिल जाए। सुबह-शाम का रहेगा। जैसे कोई प्राइवेट स्कूल अगर दे दे 2- 3 घंटे के लिए। सुबह 4 से 6-7 तक, शाम को दे दे तो वहां भी लगा सकते हो। नहीं तो अपने आश्रम बहुत बन गए हैं। आश्रमों पर तो सब जगह साधना शिविर लगाने की जरूरत है। नए लोग उसमें आएंगे, सुमिरन ध्यान भजन करना सीख जाएंगे, करने लगेंगे, अभ्यास इनका बढ़ जाएगा, आपका भी अभ्यास बढ़ जाएगा। दौड़ लगाने वाले आपके मन पर भी रोक पड़ेगी, दुनिया की तरफ से हटेगा और प्रभु की याद में जब मन लगेगा तो परलोक भी बनेगा नहीं तो लोक बनाने में (इस दुनिया से) सट से चले जाओगे, यह धौकनी चल रही है, बंद हुई तहां गए। इंतजार होता है? जहां पूरा हो जाएगा, वही शरीर छूट जाएगा, फिर कुछ नहीं कर पाओगे।

साधना शिविर लगाने का सही तरीका

आप जगह-जगह साधना शिविर लगाओ। अपने समय परिस्थिति के अनुसार समय सेट कर लो लेकिन 2 घंटे से कम कहीं नहीं क्योंकि आधा-पौन घंटा तक तो यह मन भगता ही रहता है। इसके रोकने का जब टाइम आता है तब तो आप उठ जाते हो। आश्रमों पर कम से कम 3 घंटा सुबह और 2 घंटा शाम का। इसकी रूपरेखा आप लोगों को मालूम है, जैसे ध्यान भजन होता है, प्रार्थना होती है। प्रार्थनाएं भी याद हो जाएँगी। प्रार्थना बहुत फायदा करता है। प्रार्थना से वह मालिक रीझता है। जब प्रार्थना करते हो, उसकी पुकार करते, ध्यान लगाते हो तब वह ऊपर से देखता है कि हमको कोई याद कर रहा है, दीनता से पुकार रहा है, दीनबंधु दीनानाथ करुणानिधि कह रहा है कि हम दुखी हैं, हमारे ऊपर दया कर दो तब वह दया करता है। प्रवृत्ति उधर बढ़ती है। मन दुनिया की तरफ से हटता है, प्रभु की तरफ जाता है। उससे प्रेम बढ़ता तब उसकी दया ज्यादा जारी हो जाती है। जैसे जो बेटा बराबर पापा-पापा कहता रहता है, मम्मी-मम्मी कहता रहता, मां उससे ज्यादा प्रेम करती है, पिता गोदी में उठा लेता है। तो प्रार्थना भी सीख जाएंगे बच्चे। बजाय फिल्मी गाना गाते हुए बिस्तर छोड़ने के, फिर आदत बनने पर प्रार्थना करते हुए, नाम ध्वनि बोलते हुए बिस्तर छोड़ेंगे। जब बराबर नाम (मुख पर) आता रहेगा तो जब मुसीबत आएगी तब यह नहीं होगा कि- कोटि-कोटि मुनि जतन कराही। अंत नाम मुख आवत नाही।। आखिरी वक्त पर नाम मुंह से नहीं निकलता है। लेकिन मरते समय अगर नाम निकल जाए तो नामी आकर खड़ा हो जाए और यमराज के दूत हट जाते हैं।

आगे रक्षाबंधन कार्यक्रम में पहुंचना रहेगा

बराबर शुरुआत करो। जो भी जिलों प्रांतों के जिम्मेदार आप आयो हो, गोष्टी करके योजना बना लो। यहां से जाने के बाद आप लागू करो। रक्षाबंधन के 5-7 दिन पहले समाप्त कर दो क्योंकि आपको फिर रक्षाबंधन में भी आना रहेगा। इस जीवात्मा की बंधन से मुक्ति कैसे होगी, कैसे रक्षा होगी, यह भी सुनने-जानने के लिए, इसकी रक्षा करने के लिए फिर रक्षाबंधन कार्यक्रम में आपको पहुंचना रहेगा।

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