भारत पाकिस्तान बांग्लादेश का महासंघ बनाओ विचार संगोष्ठी

शमीम अंसारी बाराबंकी एसएम न्युज24 टाइम्स बाराबंकी

बाराबंकी। 1947 में जो बंटवारा हुआ वो अप्राकृतिक था। कभी न कभी वो वक़्त जरूर आएगा जब भारत और पाकिस्तान मिलेंगे, क्योंकि दोनों देशों का एक ही इतिहास, भूगोल और संस्कृति है। किसी ऐसी स्थिति में यदि ये दोनों देश आपस में न मिल सकें तब इसका एक महासंघ बनना चाहिए। डा लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय के इस विचार को धरातल पर लाने में तत्कालीन सरकारों ने कोई प्रयास नहीं किया। वह सिर्फ राजनीति से प्रेरित होकर भारत के मुसलमानों को भयभीत करते रहे और सत्ता में बने रहे। यही कारण रहा कि भारत आज तक पाकिस्तान से कोई भी सद्भावनापूर्ण रिश्ते नहीं बना सका।

यह बात गांधी भवन में भारत पाकिस्तान बांग्लादेश का महासंघ बनाओ विचार संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे समाजवादी चिन्तक राजनाथ शर्मा ने कही। श्री शर्मा ने बताया कि महात्मा गांधी और डा. राममनोहर लोहिया ने भारत पाकिस्तान के बंटवारे को कृत्रिम विभाजन करार दिया था। उनका मनाना था कि किसी भी तरह हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को जोड़ने का सिलसिला शुरू करना होगा। प्रख्यात पत्रकार एवं लेखक रामबहादुर राय ने ‘राजनीति और नीति‘ पुस्तक में महासंघ बनाने के प्रयास को सराहा है। उनका मानना है कि यदि दोनों देशों के बीच युद्ध भी चल रहा हो तब भी हमें महासंघ बनाने का प्रयास करना चाहिए।

श्री शर्मा ने कहा कि आज जो हालात पाकिस्तान और बांग्लादेश में बने हुए है उसका तात्कालिक निपटारा किया जा सकता है परन्तु हमें आने वाली पीढ़ी को एक ऐसा वातावरण देना है ताकि वह खुली हवा में सांस ले सकें। साल 1964 के आसपास जब पाकिस्तान के शहर कराची में अल्पसंख्यक समुदाय के मंदिरों, उनके घरों और लोगों पर हिंसा हो रही थी। उस समय डॉ. राममनोहर लोहिया और पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करके महासंघ की प्रसांगिकता पर बल दिया था। उनका कहना था कि जो सरकार अपने राज्य में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा नहीं कर सकती वह सरकार निकम्मी है और उन्हें सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।

श्री शर्मा ने कहा कि साल 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को लेकर हुई जंग में पाकिस्तान की बड़ी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा और बांग्लादेश के रूप में एक नये राष्ट्र का उदय हुआ। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था जंग के चलते कमजोर हो चुकी थी। उस वक्त भारत ने हद दर्जे बांग्लादेश की मदद की। यदि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक दूरदृष्टि राजनीतिज्ञ होती तो वह वैश्विक पटल पर अस्तित्व में आये बांग्लादेश को महासंघ में शामिल करती। उससे पाकिस्तान के भी महासंघ में शाामिल होने का रास्ता साफ होता। आज बांग्लादेश की जो स्थिति बनी है इसका जिम्मेदार अमेरिका और चीन है। वह पाकिस्तान को ग़ुमराह करके बांग्लादेश के विकास में बाधक बना हुआ है। इसी कारण बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट हुआ। भारत सरकार की तत्परता के कारण शेख हसीना की जान बचाई जा सकी।

समाजसेवी सलाउद्दीन किदवई ने कहा कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होने के लिए सबसे जरूरी है कि जंग न हो। एक राष्ट्र जितना लाभ दस वर्षो में अपनी आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ कर कमाता है। उससे कहीं ज्यादा नुकसान उसका चंद दिनों तक चलने वाली जंग में हो जाता है। भारत और पाकिस्तान दोनों देश आजादी के बाद से आज तक इसीलिए विकासशील हैं क्योंकि दोनों देशों को सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान जंग से ही हुआ। हमें दोनों देशों को एकजुट और मजबूत करने की कवायद शुरू करने होगी। आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षिक सभी मुद्दों पर समानता एवं सामन्जस्य बिठाने के लिए अभियान शुरू करना होगा।

इस मौके पर प्रमुख रूप से सपा नेता ज्ञान सिंह यादव, हुमायूं नईम खान, मोहम्मद सुहैल किदवई, अशोक जायसवाल, सत्यवान वर्मा, मृत्युंजय शर्मा, नीरज दूबे, विनोद भारती, जमील उर रहमान, रामू रावत आदि कई लोग मौजूद रहे।

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