सच्चे सन्त आला फकीर दरिया, फलदार वृक्ष की तरह से होते हैं, उनके दर पर कोई भी आये, सबको फायदा होता है गुरु भक्ति करने वाले से खुश हो कर गुरु मददगार हो जाते हैं नहीं तो काल करे रगड़ाई

शमीम अंसारी बाराबंकी एसएम न्युज24 टाइम्स बाराबंकी

बाराबंकी उत्तर प्रदेश। आध्यात्मिक द्रष्टिकोण से सबको अपना बच्चा मानते हुए बिना भेदभाव के सबकी मंगल कामना करने वाले, सबको सही दिशा देने वाले, गुरु आदेश पालन करने वाले के लिए हर मुसीबत में मददगार, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि हमारे गुरु महाराज ने बहुत से लोगों को प्रभु के दर्शन का मार्ग बताया। हर जाति-मजहब, छोटे-बड़े, गरीब-अमीर, पढ़े-अनपढ़ सब लोग इनके पास आए। गुरु महाराज के पास अधिकारी, कर्मचारी, नेता, किसान, व्यापारी सब आते थे और सबको फायदा होता था क्योंकि फकीरों को दरिया, फलता हुआ वृक्ष कहा गया है, कोई भी नहाये, कोई भी फल खाए। उनके लिए कोई भेदभाव नहीं होता है। जिनको जानकारी नहीं होती है, वही भेद भाव करते हैं, वही जातिवाद, भाई-भतीजावाद, कौमवाद चलाते हैं। लेकिन जिनको जानकारी हो जाती है वो सारे वाद को खत्म करके मानववाद चलाते हैं, इंसानी मजहब चलाते, इंसानियत ला देते हैं। भगवान ने क्या किसी हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, ब्राह्मण को बनाया? इनको तो आदमी ने बनाया। भगवान तो इंसान बनाता है।

समरथ गुरु कैसे मददगार हो जाते हैं ?

गुरु माथे पर राखिए, चलिए आज्ञा माहि, कह कबीर ता दास का, तीन लोक भय नाहीं। तो जब गुरु को हाजिर नाजिर समझ लेते हैं तो गुरु वहां हाजिर हो जाते हैं। जैसे जिसको साथी बना लोगे, आपके साथ 24 घंटे रहेगा और मुसीबत तकलीफ में पड़ोगे तो मदद करेगा। ऐसे गुरु मददगार हो जाते हैं। और जीवात्मा को काम के सुन्न में से शील के सुन्न में प्रवेश कर देते हैं और ये आगे बढ़ जाती है तो काम वासना खत्म सी, बहुत ढीली हो जाती है, शील आ जाता है। फिर उसके बाद में क्रोध का सुन्न है तो जब जीवात्मा उसमें प्रवेश करके आगे बढ़ती है तो समझो आदमी क्रोधी हो जाता है। कुछ नहीं समझता, मर जाओ, मार दो, काट दो, बहुत क्रोधी हो जाता है। दुर्वासा वगैरा देखो, ये लोग कितने क्रोधी थे। साधना का असर आ जाता था, श्राप दे देते थे। लेकिन जब गुरु को याद करते रहते हैं, भूलते नहीं है तब वह क्षमा के सुन्न में प्रवेश कर देते हैं। तो इसी तरह से जब लोभ आता है तब वह संतोष वाले सुन्न में प्रवेश कर देते हैं। गुरु जब साथ देते हैं, ऐसे निकाल ले जाते हैं, ऐसे जीवात्मा आगे बढ़ जाती, आगे चली जाती है। तो कहने का मतलब है कि गुरु कर्मों को जलाते, बंधन को काटते हैं। गुरु बिन मैलो मन को धोई, मन के मैल को गुरु के अलावा कौन धो सकता है? गुरु ही धोते हैं। गुरु ही बंधन को काटते हैं। लेकिन जब गुरु से गठबंधन कर लिया जाए, इसी जीवात्मा को गुरु के पावर से जोड़ दिया जाए, गुरु जो नाम देते हैं, मन तू भजो गुरु का नाम, जो गुरु नाम बताते हैं, उस नाम को याद किया जाए, उस नाम से जोड़ा जाए, ध्वन्यात्मक नाम से जोड़ा जाए, बताया गया सुमिरन, ध्यान, भजन किया जाए। अगर किया जाए, आप सीख जाओ और सीख करके करने लग जाओ, तो कर्मों की होली जल जाएगी और नहीं तो (इन बाहरी क्रियाओं) होली, रंग-गुलाल खेलो, कपड़ा गंदा करो, एक-दूसरे को गाली-गलौज करो, मटर-गश्ती करो, दारू पियो, घूमो, भांग पियो, पगलाओ, इससे कोई काम बनने वाला नहीं है। इससे तो अधिक-अधिक उरझाई, कर्मों को काटने के बजाय और कर्म लदते जाते हैं। व्यक्ति उलझता चला जाता है। तो समझो कर्मों को काटने के लिए गुरु भक्ति करनी है। गुरु भक्ति पहले करे, पीछे और उपाय। बिन गुरु भक्ति, कभी न छूटो जाए। यानी गुरु भक्ति करनी है।

गुरु को माथे से उतार देने पर गुरु निर्मोही हो जाते और जीव काल के हवाले हो जाता है

दो तरह की भक्ति है- बाह्य भक्ति और आंतरिक भक्ति। बाह्य भक्ति में- जो गुरु मुंह से बोलते हैं, उस काम को किया जाता है। जैसे गुरु महाराज शरीर से सेवा के लिए आदेश देकर के गए थे कि प्रेमियो! लोगों को शाकाहारी, नशामुक्त, ईश्वरवादी बनाओ, भगवान, आत्मा, मनुष्य शरीर, नाम के बारे में बताओ, उनको नामदान दिलाओ। तुम्हारा काम यह है कि उनको गुरुमुख बनाओ। मनमुखता उनकी खत्म करो। यह सब काम करो। यह सब आदेश दे कर के गए। तो यह है बाह्य भक्ति। अब यह बाह्य भक्ति तन से, मन से और धन से जब किया जाएगा तब समझो गुरु भक्त, गुरुमुख बन पाएंगे। आंतरिक भक्ति किसको कहते हैं? वही जोड़ो री कोई सुरत शब्द से। शब्द से सुरत यानी अपनी जीवात्मा को जोड़ने का प्रयास करेंगे। नाम जो उतर रहा है, नाम के धार और शब्द जो जुड़ रहा है उससे जोड़ने की कोशिश करेंगे यानि ध्यान लगाएंगे और वो जो अनहद वेदवाणी आकाशवाणी हो रही है, उसको सुनने का काम करेंगे तो वह होगी आंतरिक भक्ति। इससे गुरु खुश होंगे कि देखो हमारे आदेश का पालन कर रहा है। तो गुरु मदद भी करेंगे। और अगर इन चीजों से अलग हो जाओगे तो गुरु भी एक तरह से निर्मोही हो जाएंगे। निर्मोही किसको कहते हैं? जैसे कोई बच्चा नालायक निकल गया तो बच्चा तो उसी का है लेकिन कोई (उस बच्चे का) नाम लेता है तो कहता है अरे उसका क्या नाम लो। मोह तो है लेकिन निर्मोही हो गया। मोह नहीं रहता है। जेल में बंद हो गया तो कहता है, पड़ा रहने दो कुछ दिन अब। अब उसकी आदत, नशा तो छूट जाए, वो सही तो हो जाए, उसका नाम न लो, उसको (जेल से अभी) नहीं छुड़ाना है। ऐसे ही गुरु माथे से उतरे, गुरु को जब माथे से उतार दिया जाता है तब वह जीव काल के हवाले हो जाता है तो फिर उसकी रगड़ाई काल करता है।

शमीम अंसारी बाराबंकी एसएम न्युज24 टाइम्स बाराबंकी

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