अजमेर के दिनेश गर्ग ने अकेले ही कर दिया अपने पिता का अंतिम संस्कार। उठावना भी नहीं।

समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ

कोरोना संक्रमण के दौर में यदि अपनों को बचाना है तो ऐसे सख्त निर्णय लेने ही होंगे।सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग। अब इस मानसिकता से बाहर निकलना होगा।

अजमेर के नया बाजार स्थित सुप्रसिद्ध सर्राफा प्रतिष्ठान मैसर्स जीडी सर्राफ के मालिक और सामज प्ररेक दिनेश गर्ग के पिता 75 वर्षीय गोविंद प्रसाद अग्रवाल का गत 13 नवम्बर को धनतेरस पर्व पर जयपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में निधन हो गया। अग्रवाल का निधन प्रात: 8 बजे हुआ और दोपहर दो बजे जयपुर के आदर्श नगर स्थित श्मशान स्थल पर ही अंतिम संस्कार कर दिया गया। अंतिम संस्कार के समय स्वर्गीय अग्रवाल के पुत्र दिनेश पुत्रवधु शिल्पा और दोनों पोते मौजूद थे। सभी ने पीपीई किट पहन कर अंतिम संस्कार की रस्में पूरी की। दिनेश चाहते तो अपने पिता का शव अजमेर ले आते और अनेक परिजन की उपस्थिति में अंतिम संस्कार करते। लेकिन अपनों को बचाने के लिए दिनेश गर्ग को सख्त निर्णय लेना पड़ा। अंतिम संस्कार के समय दिनेश के भाई अहमदाबाद निवासी डॉक्टर प्रवीण गर्ग भी शामिल नहीं हुए। डॉ. प्रवीण भी अहमदाबाद में अपने अस्पताल में कोविड के मरीजों का ही इलाज कर रहे हैं। डॉ. प्रवीण का भी मानना रहा कि जो मरीज जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं उन्हें बचाना जरूरी है। अपने चिकित्सीय धर्म को निभाते हुए डॉ. प्रवीण भी अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए। समाज प्रेरक दिनेश गर्ग ने बताया कि इन दिनों कोरोना संक्रमण का प्रकोप जबर्दस्त है। ऐसे में यदि वे अपने पिता के अंतिम संस्कार की सूचना देते तो अनेक लोग घर और श्मशान स्थल पर आ जाते। कोरोना के प्रकोप में लोगों को एकत्रित करना जोखिम भारा था, इसलिए उन्होंने निधन के तीसरे दिन उठावने की सूचना भी किसी को नहीं दी। आज लोगों ने उठावने की रस्म को भी परिवार के प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। कोरोना काल में भी उठावे की रस्म में सैकड़ों लोग एकत्रित हो रहे हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब उठावने की रस्म में भाग लेने के बाद अनेक लोग संक्रमित हो गए। कई बार तो कोरोना संक्रमण जानलेवा साबित हो रहा है। ऐसा नहीं कि उनका अपने पिता के प्रति सम्मान नहीं है। जिन पिता ने जन्म देने के साथ सब कुछ दिया उनके प्रति असम्मन का तो सवाल ही नहीं उठता। पहले बीमारी और फिर अस्पताल में जितनी सेवा की जा सकती थी, उतनी परिवार के द्वारा की गई है, लेकिन कोरोना में अपने लोगों को बचाने के लिए सख्त निर्णय लिए गए। दिनेश गर्ग ने बताया कि मैंने श्मशान स्थल पर अपने पिता की जलती चिता के समक्ष संकल्प लिया है कि तीन ज़रूरतमंद बच्चियों के विवाह का खर्च वहन करुंगा। ऐसी बच्चियों का कन्या दान भी मैं स्वयं करुंगा। दिनेश गर्ग ने समाज के समक्ष जो उदाहरण पेश किया है उसके लिए मोबाइल नम्बर 9414004630 पर हौंसला अफजाई की जा सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि दिनेश गर्ग ने वाकई हिम्मत वाला काम किया है। अनेक लोग सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग के चक्कर में ही उलझे रहते हैं, किसी को बात का बतंगड़ बनाने का मौका नहीं मिले, इसलिए निधन पर परिजन अंतिम संस्कार से लेकर बारहवें तक की रस्में करते हें। इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो जिंदा रहते समय तो माता पिता को एक गिलास पानी भी नहीं पिलाते। अजमेर के अनेक लोग जानते हैं कि दिनेश ने अपने पिता की सेवा करने में कोई असर नहीं छोड़ी। दिनेश जैसे पितृभक्त युवा ही पिता के निधन पर ऐसे सख्त निर्णय ले सकते हैं। लोगों को दिनेश से प्रेरणा लेनी चाहिए।

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