जश्ने महफ़िल में  बरसे अक़ीदत के फूल,इमाम ज़ैनुल आब्दीन अ.की विलादत पर हुई  तरही महफ़िल  ऐसा किरदार अपनाओ रसूल व आले रसूल के मानने वाले नज़र आओ – मौलाना हसनैन बाक़री

नेवाज अंसारी संवाददाता एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स)7268941211

वो अंजान हैं जो जिन्नातों से मांगने जाते है,उन्हें मालूम नहीं जिन्नात भी अह्लेबैत के दर पर मांगने आते हैं 

मदहे आले मोहम्मद निफाक़ ज़बानों ने मुमकिन नहीं  शायरे अहलेबैत के अलावा शायर क़ाबिले ऐतबार  नहीं

बाराबंकी । जश्ने महफ़िल में  बरसे अक़ीदत के फूल,इमाम ज़ैनुल आब्दीन अ.की विलादत पर मौलाना गुलाम अस्करी  हाल में हुई  तरही महफ़िल मिसरे तरह ” हमने आबिद से दुआओं का सहीफ़ा पाया “। आगाज़ तिलावते कलामे इलाही से मो0 रज़ा ने किया । शायरे अहलेबैत के अलावा शायर क़ाबिले ऐतबार नहीं ।ऐसा किरदार अपनाओ रसूल व आले रसूल के मानने वाले नज़र आओ ।यह बात आली जनाब मौलाना हसनैन बाक़री ने कही ।उन्होने यह भी कहा कि मदहे आले मोहम्मद निफाक़ ज़बानों ने मुमकिन नहीं ।वो अंजान हैं जो जिन्नातों से मांगने जाते है,उन्हें मालूम नहीं जिन्नात भी अह्लेबैत के दर पर मांगने आते हैं । इन्सान की कामयाबी का राज़ उम्मीद और यक़ीन है।दुआए सज्जाद पढ़ने वाला कभी ना उम्मीद नहीं होता । वो शायर काबिले तारीफ़ होते हैं  जो मज़लूम की तारीफ़ और ज़ालिम की मज़म्मत करते हैं।अहलेबैते रसूल की मदह में  शायरी करना इबादत है । अहलेबैते अतहार ने दुआओं का सहीफ़ा भी दिया और सलीक़ा भी बताया । बादे महफ़िल मुल्क के अम्नो अमान व कोरोना जैसी वबा से छुटकारे की दुआएं की गईं । मौलाना से पहले शायरों ने  गुलहाए अक़ीदत पेश किये । डा 0 रज़ा मौरान्वी ने अपना बेहतरीन कलाम पेश करते हुये कहा – शायरी इतनी भी आसान नहीं है भाई, हमने सदियों को निचोड़ा है तो लम्हा पाया ।  सब्र पाया कभी ईसार का जज़्बा पाया , हमने जो भी दरे सज्जाद पे मांगा पाया । डा 0 शारिब मौरान्वी ने पढ़ा – ज़ुल्म के साथ ही मक़्तल में खड़ा  था सूरज , सब्र के मोम को लेकिन कहाँ पिघला पाया ।
मौलाना रज़ा ज़ैदपुरी ने पढ़ा – क्यों रज़ा फक़्र न  तक़दीर पा मैं अपनी करूं, हमने आबिद से दुआओं का सहीफ़ा पाया ।अजमल किन्तूरी ने  अपने खास अन्दाज़ में अपना कलाम पेश किया – जिसके हाथों में रहा तेरे सहीफों का असा , उसने ज़ुल्मात के हर नील में रस्ता  पाया ।डा 0 मुहिब रिज़वी  ने अपने अलग अन्दाज़ में अपना मेयारी कलाम पेश करते हुए पढ़ा – आबे तख ईल ने जब अक़्स तुम्हारा पाया , हमने मफहूम समंदर से भी गहरा पाया । नुत्क़ ने जुरअते अक़्दस का सहारा पाया । बे सदा शहर में आवाज़ ने चेहरा पाया । आरिज़ जर्गान्वी नेअपना कलाम पेश करते हुये पढ़ा – गुलशने ज़हरा के हर फूल की अपनी है महक । जिस जगह खिल गया इस्लाम महकता पाया ।मुज़फ्फ़र इमाम ने पढ़ा – मदहे आबिद का ज़माने में ये तोहफ़ा  पाया , सर बलंदी का भी इज़्ज़त का वसीला पाया ।मोहम्मद महदी “शाज़ी”नक़वी ने अपना कलाम पेश करते हुये पढ़ा – कोई आबिद न जहां  में तेरे जैसा पाया , मैंने तुझसे ही इबादत का तरीक़ा पाया । हाजी सर वर अली रिज़वी  कर्बलाई  ने अपना कलाम पेश करते हुये  पढ़ा –  हो गये शाद मसर्रत का जो लम्हा पाया घर में शब्बीर ने एक नूर का टुकड़ा पाया ।हम दुआ कैसे करें इसके सलीके के लिए , हमने आबिद से दुआओं का सहीफ़ा पाया । हुमा क़ाज़मी का कलाम जईम क़ाज़मी  ने पढ़ा – मदहे सज्जाद में अल्फाज़ का दरिया पाया , तायरे फ़िक्र ने उड़ने का सलीक़ा पाया । फ़राज़ का कलाम दिलकश रिज़वी ने पेश करते हुये पढ़ा – सजदए  शुक्रो इबादत का तरीक़ा पाया , हमने आबिद से दुआओं का सहीफ़ा पाया ।ज़ाकिर इमाम ने पढ़ा – दरे सज्जाद से क़िस्मत का सवेरा पाया । अपनी बेनूर निगाहों में उजाला पाया ।मौलाना इब्ने अब्बास , मौलाना अली मेहदी के अलावा तमाम मोहिब्बे अहले बैत मौजूद रहे । बानिये महफिल ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।

 

नेवाज अंसारी संवाददाता एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स)7268941211

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