शाह की सियासी शतरंज में फिर फंसा व बिखरा विपक्ष नेहरू लियाकत समझौते पर बेजुबान विपक्ष का मुस्लिम हाहाकार? क्या विपक्ष के लिए अल्पसंख्यक पूरी दुनिया में मुसलमान ही है?
कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)
?? आखिरकार राज्यसभा में भी तीखी बहस के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक पास हो गया। इस पूरे महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार व विपक्ष के अपने-अपने तर्क थे। लेकिन एक तथ्य यह भी था कि चर्चा के दौरान पूरा विपक्ष नेहरू – लियाकत समझौते पर बेजुबान नजर आया? जो इस बात का संकेत हैं कि विपक्ष के लिए शायद पूरी दुनिया में अल्पसंख्यक केवल मुसलमान ही है ?
मोदी सरकार-टू में यदि गृह मंत्री अमित शाह को इस सरकार का हीरो कहा जाए तो अति अतिशयोक्ति न होगी! इधर बीते कई दिनों से जबसे नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया तभी से देश का सियासी तापमान उच्च पर था। सरकार के अपने पक्ष और विपक्ष का अपना पक्ष था। लोकसभा में यह विधेयक पास हुआ और फिर राज्यसभा में भी तगड़ी बहस के बाद यह पास हो गया। विपक्ष इस विधेयक को मुसलमानों के विरुद्ध बता रहा था तो वहीं सरकार का दावा था कि मुस्लिम इस देश के भारतीय नागरिक हैं उनका इससे कोई लेना-देना नहीं है।स्पष्ट है कि सरकार इस विधेयक के पास हो जाने पर उत्सव के मूड में है तो वहीं विपक्ष ने इसे भारतीय इतिहास का काला दिन बताया है। इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान एक बात स्पष्ट दिखी। जहां भाजपा को हिंदुत्व की राजनीति को धार देने का मौका विपक्ष ने खूब दिया वहीं विपक्ष ने भी मुस्लिमों को अपने पाले में करने के लिए अपनी कोई जुगत नहीं छोड़ी?
नागरिकता संशोधन विधेयक हमलावर रहा विपक्ष लगातार यह कहता रहा कि यह मुसलमानों के खिलाफ है। लेकिन वह यह बताने में नाकाम रहा कि हिंदुस्तान की मिट्टी में जन्मे हिंदुस्तानी मुस्लिमों के विरुद्ध यह विधेयक कैसे हैं? मोदी सरकार का कहना है कि यह विधेयक पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों जो कि धर्म प्रताड़ना से प्रताड़ित किए गए उनके लिए लाया गया है।
जाहिर है कि उपरोक्त तीनों देशों में हिंदू, सिख ,पारसी ,बौद्ध सहित गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ जमकर अत्याचार किए गए हैं। इन देशों में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या काफी कम हो गई है? पाकिस्तान व अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में हिंदू तथा सिखों ईसाइयों जो कि अल्पसंख्यक हैं उनके परिजनों के साथ राक्षसी कृत्य किया गए?उनकी घर की बेटियों को जबरदस्ती अगवा किया गया !उनके साथ निकाह किया गया! उनका धर्मांतरण किया गया! वह चिल्लाते रहे लेकिन उपरोक्त तीनों देशों की सरकारों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। अलबत्ता काफी शोर के बाद बांग्लादेश की सरकार ने जरूर इस पर नकेल कसने का काम किया है। आज भी पाक एवं अफगान तथा बांग्लादेश से आए हुए यदि हिंदू सिख ईसाई बौद्ध परिवारों से वार्ता करें तो उनका दर्द सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे? ऐसे अत्याचार आज भी उपरोक्त देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों पर जारी हैं। जो दुर्भाग्यवश देश के विपक्ष को दिखाई नहीं देते?
विपक्ष ने देश के मुसलमानों को इस विधेयक से खूब डराया! यह वैसे ही था जैसे विपक्ष भाजपा से देश के मुसलमानों को डरा कर अपने राजनीतिक स्वार्थों की सिद्धि करता रहा है! कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष इसी होड़ में रहा कि वह विदेशी मुसलमानों के नाम पर हिंदुस्तान के मुसलमानों के दिलों में कैसे अपनी वोट पाने की स्थिति को बरकरार रखें? विपक्ष 1950 में भारत व पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच हुए नेहरू- लियाकत समझौते के मुद्दे पर पर भी चुप्पी साधे रहा? उक्त समझौते में यह साफ था कि सभी अपने-अपने देशों में अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा देंगे। अल्पसंख्यकों को अपने मूल देश जा कर अपनी संपत्ति को बेचने का अधिकार होगा। अपहरण की गई महिला एवं लूटे गए सामान को वापस दिया जाएगा। जबरन धर्म परिवर्तन मान्य नहीं होगा। इसके अलावा अल्पसंख्यकों को बराबरी के अधिकार दिए जाएंगे। क्या पाकिस्तान या बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को उपरोक्त अधिकार मिले? हां हिंदुस्तान में जरूर मिले। यहां राष्ट्रपति के पद तक अल्पसंख्यक वर्ग से आने वाले कई सम्मानीय जन पहुंचे हैं।
विपक्ष के पास शायद इसका तर्कपूर्ण जवाब नहीं होगा।
1970 में राज्यसभा में तत्कालीन विदेश मंत्री दिनेश सिंह ने भी इस समझौते पर उस समय की सरकार को असहाय बताया था। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का वादा पूरा नहीं किया जा रहा है। जबकि इससे पहले 1966 में भी जनसंघ के सांसद निरंजन ने सरकार से पूछा था कि नेहरू -लियाकत समझौता की स्थिति क्या है। जिसके जवाब में तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने उत्तर दिया था कि पाकिस्तान लगातार अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर रहा है।
विपक्ष नेहरू- लियाकत समझौते पर चुप्पी क्यों साधे रहा? इसके भी सियासी कारण है? जिसे अधिसंख्य भारतीय जनमानस समझ रहा होगा। भले ही विपक्ष अनुच्छेद 14 ,15 व 21 का विधेयक को उल्लंघन बताता हो। उसके पास इस बात का शायद जवाब नहीं है क्या उसे पूरी दुनिया में केवल मुसलमान ही अल्पसंख्यक दिखाई देते हैं? क्या विपक्ष को पाक ,अफगान तथा बांग्लादेश में अत्याचार भोगने वाले सिख, हिंदू, बौद्ध, ईसाई, पारसी जैसे गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं दिखाई देते? क्या विपक्ष ने कभी गैर मुस्लिम अल्पसंख्यको की भी आवाज़ उठाई है?अगर नहीं उठाई तो क्यों नहीं उठाई? विपक्ष ने नेहरू – लियाकत समझौते पर अपनी जुबान बंद रखी क्यों बंद रखी? उपरोक्त समझौते के तहत अगर पाकिस्तान अफगानिस्तान एवं बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार हो रहे हैं तो विपक्ष क्यों चुप रहा?
विधेयक के पास होने के बाद देश की राजनीति में देश के गृहमंत्री अमित शाह एक बार फिर हीरो बने नजर आए। अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक हुई चर्चाओ में उठे सवालों का हमलावर अंदाज में जवाब दिया। तो विपक्ष उनके शतरंजी चौसर में फंस कर रह गया। शाह ने देश के बहुसंख्यक समाज को एक बार फिर यह संदेश दे दिया कि हिंदुओं की असली शुभचिंतक भाजपा ही है? जबकि विपक्ष सरकार के विरोध में संविधान की दुहाई देते हुए एक बड़े वर्ग की नजर में फिर खलनायक बना नजर आया? अमित शाह ने विपक्ष के हर एक सवाल का मजबूती से जवाब दिया। उन्होंने साफ कहा कि आप लोग हिंदुस्तान के मुसलमान भाइयों की चिंता बिल्कुल ना करें क्योंकि इस विधेयक का उनसे कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि जो गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक धर्म के आधार पर प्रताड़ित किए गए हैं उन्हें इस्लाम धर्म मानने वाले देशों में यह प्रताड़ना मिली है। तो फिर विदेशी मुसलमानों को इस में क्यों शामिल करें! स्पष्ट था कि अमित शाह जम्मू कश्मीर में धारा 370 के मुद्दे के बाद एक बार फिर पूरी मोदी सरकार टू के प्रणेता बने नजर आए।
विधेयक के पास होने के बाद 21 लाख से ज्यादा धार्मिक अल्पसंख्यकों का भारतीय नागरिकता का इंतजार अब खत्म हो गया हैं । जबकि बीते 3 साल में 1984 शरणार्थियों को नागरिकता दी गई है इनमें गैर मुस्लिमों के साथ मुसलमान शरणार्थी भी शामिल हैं। विपक्ष विधेयक को संविधान की मूल प्रस्तावना के खिलाफ मुस्लिमों से भेदभाव बता रहा है जबकि सरकार विधेयक को हिंदुस्तानी मुसलमानों से बिल्कुल अलग बता रही है। सरकार का कहना है कि यह विधेयक नागरिकता देने का है नागरिकता लेने का नहीं है। विपक्ष की पंथनिरपेक्षता सिर्फ मुस्लिमों पर आधारित है जबकि हमारी पंथनिरपेक्षता किसी एक धर्म पर आधारित नहीं है। कुल मिलाकर स्पष्ट है कि यदि पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में नेहरू- लियाकत समझौते का ईमानदारी से अनुसरण किया जाता तो आज उपरोक्त देशों के अल्पसंख्यक अपने मूल भारत की ओर आने को विवश ना होते! पाकिस्तान से आए हिंदू व सिख परिवारों की आपबीती सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं! स्पष्ट है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के राज्यसभा में भी पास हो जाने के बाद मोदी सरकार टू में एक बार फिर दिखाया है कि वह कड़े एवं बड़े फैसले लेने में माहिर है ।यह जरूर है की इसे लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों में खासकर असम और त्रिपुरा, मिजोरम , मणिपुर मेघालय, नागालैंड में विरोध के स्वर हैं। जिन्हें दूर करना सरकार का काम है। सरकार को इन स्वरों को विश्वास में लाना ही होगा। जबकि इस पूरे मामले में विपक्ष नेहरू -लियाकत समझौते पर बेजुबान बना रहा? विपक्ष की यह स्थिति उसका दोहरा चरित्र जाहिर करती है तो भाजपा की कूटनीतिक पेशबंदी के सामने उसे कमजोर भी??कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)