जो दिखावे की इबादत अल्लाह को पसन्द नही : मौलाना फैज मशहदी असद नगर में निकल जुलूस, आलम ताबूत की जियारत कराई गई

नेवाज अंसारी संवाददाता एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स)7268941211

बाराबंकी। तीसवें दौर की सालाना मजलिस में कराई गई अलम ताबूत की ज़ियारत। बादे मजलिस हुई नौहा खानी व सीनाज़नी। मजालिसे मवद्दत को नाराज़गी का ज़रीया न बनाएं इश्क़े अली अ. में आपसी इत्तेहाद पैदा करें। शीया जुज़वे आइम्मा है इसके अन्दर शीयत के शरायत होना ज़रूरी है। जिनमें शीयत के शरायत नहीं होते वो शीया नहीं हो सकता। करबला में हुसैन ने दीन के साथ इंसानियत को भी बचाया। जिनमें गुस्सा पीने की सलाहियत होती है उसका ग़ुस्सा शजाअत की अलामत होता है। यह बात असद नगर के अज़ाख़ाना सरवर अली में आयोजित तीसवीं सालाना मजलिस को खि़ताब करते हुए आली जनाब मौलाना फ़ैज़ अब्बास मशहदी साहब क़िबला ने कही। मौलाना ने ये भी कहा कि पंजतन की मारेफ़त ही ख़ुदा तक पहुंचने का ज़रीया है इबादतों की क़ुबूलियत का यक़ीन है। इबादात रास्ते हैं मंज़िल नहीं ? जो इबादात को मंज़िल समझते हैं वो अस्ल मंज़िल तक कभी नहीं पहुंचते ।परवरदिगार ने इंसान को पैदा किया इबादत के लिए, इबादत कोपैदा किया तक़वे के लिये तक़वा ही कामयाबी की ज़मानत है। जो इबादते खुदा तक़वे तक नहीं पहुंचाती वो परवरदिगार की नज़र में इबादत नहीं होती। पड़ोसियों से अच्छा सुलूक व मोहब्बत का पैग़ाम शीयत की पहचान है। आखिर में करबला वालों के मसायब पेश किए जिसे सुनकर सभी रोने लगे। मजलिस से पहले डा.रज़ा मौरानवी ने पढ़ा -जब शहन्शाहे वफ़ा नहर से प्यासा निकला, कितने दरियाओं के माथे से पसीना निकला। शब की चलती हुई नब्ज़ों ने भी दम तोड़ दिया, शाम के जिस्म से जब हुर का सवेरा निकला। अजमल क़िन्तूरी ने पढ़ा-बहरे मिदहत जो तेरे इल्म से क़तरा पाया, यूं लगा तश्नए ग़ुफ़्तार ने लहजा पाया। डा. मुहिब रिज़वी, मेहदी नक़वी के अलावा कई शायरों ने अपना कलाम पेश किया। मजलिस समाप्ति के बाद हाजी सरवर अली करबलाई ने सभी मोमिनो का शुक्रिया अदा किया।

 

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