आपके काम की है यह खबर… जानिए क्या होता है FIR और NCR में अंतर?
शमीम अंसारी अब्दुल मुईद सिटी-अपराध ब्यूरो। (एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स) 9936900677
कानून के मुताबिक हर अपराधिक वारदात के बाद पुलिस जांच करने से ठीक पहले FIR दर्ज करती है। जो किसी भी मामले में इंसाफ पाने के लिए यह पहला कदम होता है। क्योंकि कानून के आधार पर FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस किसी भी तरह के मामले में जांच करती है। लेकिन कभी-कभी देखा गया है कि कई मामलों में पुलिस पीड़ित की एफआईआर दर्ज ही नहीं करती या किसी व्यक्ती द्वारा ही ज्यादा जानकारी ना होने के कारण एफआईआर दर्ज ही नहीं कराई जाती। जिससे उसे इंसाफ पाने में काफी परेशानियों का सामना करता पड़ता है। ऐसे में सबसे पहले एफआईआर के बारे में जानना बेहद ही जरूरी है।
किस किस्म के मामलों में दर्ज होती है एफआईआर
कानून के मुताबिक संज्ञीन किस्म के अपराध यानी ”कॉगनीजेबल ऑफेंस” यह उस किसम के अपराध होते हैं जिसपर पुलिस सज्ञान लेकर उसे कोर्ट में पेश करती है। इस किस्म के अपराध बेहद ही गंभीर क्षेणी में आते हैं जिसका समाज पर भी बेहद बुरा असर पड़ता है। इसमें बलात्कार,मर्डर,अपहरण,डकैती,चोरी और दहेज के लिये उत्पीड़न जैसे संज्ञीन मामले आते हैं। इस गंभीर मामलो में पुलिस के पास किसी शख्स को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है। जिसके बाद वह तुरंत ही जांच शुरू कर सकते है। ऐसे में पुलिस को कोर्ट से अनुमति लेने की भी जरूरत नहीं होती है।
इन अपराधों में पहले शिकायत दर्ज होती है फिर एफआईआर
गैर संज्ञिन मामलों में पुलिस के पास ना तो किसी शख्स को गिरफ्तार करने का अधिकार होता और ना ही मामले में जांच करने का अधिकार होता है। ऐसे में पुलिस आरोपियों को कोर्ट में भी पेश नहीं कर सकती। कोर्ट चाहे तो उसे न्यायिक हिरासत में भी भेज सकता हैं या फिर उससे जमानत पर छोड़ सकता हैं। ऐसे में पुलिस को आरोपी की गिरफ्तारी के लिए पहले शिकायत दर्ज करनी पड़ती है फिर FIR दर्ज होती है। इसके बाद जांच शुरू होती है, फिर चार्जशीट और चार्जशीट को कोर्ट में पेश करना होता है। जिसके बाद ट्राइल चलना और फिर कहीं जाकर आरोपी को गिरफ्तार करने का वारंट जारी होता है। ये ज़मानती अपराध है, क्योंकि इसके तहत मिलने वाली सजा 2 साल की है।
सरल शब्दों में बताते हैं कानूनी प्रक्रिया
किसी भी आम नागरिक को अपने मौलिक अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कानूनी रूप से एआईआर दर्ज कराने के प्रोसेस की जानकारी होना बेहद जरूरी है। यहां हम आपको जानकारी देते हुए बताते हैं कि एफआईआर दर्ज करने का आखिर क्या प्रोसेज है? किन बातों को ध्यान रखा जरूरी है? इसे लेकर आपके क्या अधिकार हैं ?और अगर पुलिस FIR दर्ज करने से मना कर दे, तो आपको क्या करना चाहिए?
FIR क्या है?
FIR यानी फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट होती है. दण्ड प्रक्रिया संहिता CRPC 1973 के सेक्शन 154 में FIR का जिक्र है। हिंदी में इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है। भारत के किसी भी कोने में हुए संज्ञीन अपराधिक मामलों में पुलिस में रिपोर्ट करने की व्यवस्था की गई है जिसके बाद ही कोई कार्रवाई की जाती है। पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR की रिपोर्ट तत्काल मजिस्ट्रेट के पास भेजी जाती है। सीआरपीसी की धारा 157(1) में है कि पुलिस द्वारा मामला दर्ज कर फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट तक जल्द से जल्द भेज दी जानी चाहिए।
NCR “नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट” क्या होता है?
गैर-संज्ञिन अपराधिक मामलों में सुचित किया जाता है कि इन मामलों में किसी के साथ हुए मामूली झगड़े, गाली-गलौच या किसी डॉक्युमेंट के खो जाने की शिकायत होती है। शांति भंग करने के मामले भी इस तरह के मामलों में शामिल किए जाते हैं। इस प्रकार के अपराध होने पर पीड़ित शख्स पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने पर ऐसे मामले को एफआईआर में दर्ज नहीं करके एनसीआर (NCR) में दर्ज किया जाता है। ऐसा करने की एक बड़ी वजह यह भी होती है कि किसी के साथ मामूली झगड़े या शांति भंग करने के मामले में पुलिस के संज्ञान में आ जाए। ऐसे मामलों में यदि आरोपी दोबारा उसी तरह से मारपीट या लड़ाई करते हैं तो पुलिस एनसीआर के बजाय एफआईआर दर्ज कर जेल भी भेज देती है।
FIR और NCR में क्या होता है अंतर ?
किसी बड़े अपराधिक मामले में पुलिस सीधे तौर पर FIR दर्ज करती है उसे कोर्ट में पेश किया जाता है, जबकि NCR सिर्फ और सिर्फ पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड तक ही सीमित रह जाती है। पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने के बाद उसे कानूनी शक्तियां मिलती है। जिससे पुलिस आरोपी को बगैर किसी वॉरंट के ही गिरफ्तार कर सकती है। जबकि NCR दर्ज करने के बाद पुलिस को गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
शमीम अंसारी अब्दुल मुईद सिटी-अपराध ब्यूरो। (एस0एम0 न्यूज 24 टाइम्स) 9936900677