न काम का न काज का
नशा है दुश्मन जान का ।।
वतन मेरा डूब रहा नशे के
अंधकार में ।।
तरक्की के साथ-साथ ये कैसी
उन्नति कर रहीं, अल्प आयु
मे ही क्यो हो रहें युवा नशेड़ी ।।
जहाँ देखो वहाँ नशा का धुआं
छाया, क्या नहीं देख पा रहे इस धुएं में अपना अंधकार मय भविष्य ।।
क्यो वतन मेरा जल रहा है
इन जलती शराबो में ।।
क्यो बच्चो की खुशी, माँ-बाप
के आँखो की रोशनी है वहीं
समझ नहीं पाते आजकल के युवा
पीढ़ी।।
नशे की बिमारी जिसे लगी
नहीं रहा उसका घर संसार
कभी सुख-चैन से ।।
आज की युवा पीढ़ी को क्यो
इतनी सी बात समझ नहीं आती।।
कि नशे को छोड़ अपना देश बचाऐ, समाज में जागृता लाए
और नशे को दूर भगाए ।।
नशा जब भी आता है, बर्बादी
साथ लाता हैं, चलो ये बात हम
सबको बताए ।।
चलो सबको जागृत करें, जो
होगा नशे का आदि,उसके जीवन
का होगा बर्बादी ।।
नशा करता है हमें बर्बाद,
चलो मिलकर करें, हम सब
इसका बहिष्कार ।।
स्वरचित मौलिक रचना निर्मला सिन्हा ग्राम जामरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ से एक सोशल वर्कर