भारतीय संस्कृति

स्वरचित मौलिक रचना निर्मला सिन्हा ग्राम जामरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ से एक सोशल वर्कर

चल ना उस गाँव से आतीं सोंधी
मिट्टी की खुशबू की ओर चलें ।।

चल ना मेरे हिन्दुस्तान, अपनी
भारतीय संस्कृति की ओर चलें ।।

फिर से माँ के हाथों से बने चूल्हे
की रोटी, का स्वाद चखे ।।

चल ना मेरे हिन्दुस्तान, एक बार
फिर से भारतीय संस्कृति की ओर
चलें ।।

चलें वहाँ जहाँ अब भी गाँव की
गोरियाँ भरती हैं पनघट से पानी।।

बस ज्यादा दूर नहीं, दो चार क़दम
और मेरे हिन्दुस्तान नहीं दूर अपने भारतीय संस्कृति से बस दो क़दम
और अगर साथ चलें तो पहुँच जायें जल्दी अपनी मंजिल में ।।

चल ना मेरे हिन्दुस्तान,फिर से उस भारतीय संस्कृति की ओर जहाँ, अभी भी मैय्या यशोदा
दौड़ती कान्हा के पीछे हैं ।।

जहाँ अब भी नारियाँ वहाँ सीता है
और पुरुष मे बसते राम हैं ।।

चल ना मेरे हिन्दुस्तान एक बार फिर उस भारतीय संस्कृति की ओर ।।
जहाँ संस्कृति ही हमारी पहचान हैं
जहाँ नहीं किसी से कोई बैर है ।।
चल मेरे हिन्दुस्तान एक बार फिर
भारतीय संस्कृति की ओर चलें ।।

स्वरचित मौलिक रचना निर्मला सिन्हा ग्राम जामरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ से एक सोशल वर्कर

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