1. जब भी जहां भी और जितनी बार भी नबी करीम ﷺ का नाम मुबारक आये तो हर बार आप पर दुरूदे पाक पढ़ना बअज़ उल्मा के नज़दीक वाजिब है और ऐसा न करने वालों पर सख्त वईदें आई है
? बहारे शरीअत,हिस्सा 1,सफह 21
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 57
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
नामे अक़्दस के साथ दुरूदे पाक न लिखने पर वईदें*
2. हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि जिसके पास मेरा ज़िक़्र हो उसे चाहिये कि मुझ पर दुरूद पढ़े
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 58
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
3. हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि जिसने रमज़ान पाया और अपनी बख़्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ जिसने अपने वालिदैन को पाया और उनकी खिदमत करके अपनी बख़्शिश ना करा सका वो हलाक हुआ और जिसके पास मेरा ज़िक़्र हुआ और उसने मुझपर दुरूद न पढ़ा वो हलाक हुआ
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 59
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
4. हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि जिसके पास मेरा ज़िक़्र हुआ और उसने मुझपर दुरूद न पढ़ा वो बदबख्त है
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 61
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
5. हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि जिसके पास मेरा ज़िक़्र हुआ और उसने मुझपर दुरूद न पढ़ा वो बख़ील यानि कंजूस है
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 63
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
6. हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि जिसके पास मेरा ज़िक़्र हुआ और वो मुझपर दुरूद पढ़ना भूल गया तो वो जन्नत का रास्ता भूल गया
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 64
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
7. हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि जिसके पास मेरा ज़िक़्र हुआ और उसने मुझपर दुरूद न पढ़ा वो बेवफा है
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 65
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
8. बाज़ लोग नामे अक़्दस के आगे बजाये पूरा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम लिखने के हिंदी में सिर्फ सल्ल0 अंग्रेजी में s.a.w और उर्दू में ص ل ع م लिख देते हैं ऐसा करना सख्त नाजायज़ो हराम है
? बहारे शरीअत,हिस्सा 1,सफह 21
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
ये तो हुई नामे अक़्दस के साथ दुरूदे पाक न लिखने की वईदें अब लिखने की फज़ीलत भी सुन लीजिये*
9. हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि जिसने मेरे नाम के साथ दुरूदे पाक लिखा तो जब तक वो वहां रहेगा फरिश्ते उसके लिए मग़्फिरत की दुआ करते रहेंगे
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 79
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
10. हज़रत सूफियान सूरी फरमाते हैं कि जब तक किताब में दुरूदे पाक लिखा रहेगा तब तक उसका सवाब जारी रहेगा
? क़ुर्ब मुस्तफा,सफह 80
صَلَّى اللّٰهُ عَلَيْهِ وَسَلَّم
* एक मुहद्दिस ने अपने पड़ोसी को बाद इंतेक़ाल ख्वाब में देखा तो पूछा कि तेरा क्या हुआ उसने कहा कि रब ने मुझे इस वास्ते बख्श दिया कि मैं जब भी रसूल अल्लाह ﷺ का नाम लिखता था तो दुरूदे पाक ज़रूर लिखता था,रिवायत में आया है कि जिसने भी नबी करीम ﷺ की शान को एक बाल बराबर भी कम करने की कोशिश की तो ऐसा शख्स काफिर है,और दुरूदे पाक को इख्तिसार यानि छोटा करके लिखना ऐसा ही है,हम सुन्नियों की नियत भले ही अपने नबी की शान को हल्का करने की ना हो जिससे कुफ्र तो ना होगा मगर फिर भी हराम तो है ही,लिहाज़ा दोस्तों थोड़ा सा वक़्त बचाने के लिए ऐसी मुसीबत में न फंसें और जहां भी हुज़ूर ﷺ का नाम आये तो पूरा दुरूद शरीफ ही लिखें*