सियासी मारीचों की माया से परेशान हुआ गिरगिट?

कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)

बाराबंकी में चाल -चिंतन बदलकर सियासी मारीच विधानसभाओं में कर रहे हैं अलग-अलग दलों के प्रत्याशियों का प्रचार? फ़िलहाल नेताओं के बने हैं खास! सनद हो इन मायावियों का चापलूसी है मुख्य हथियार?

बाराबंकी। बेशर्मी की मोटी खाल से युक्त चपल ,चतुर सुजान सियासी मारीचों की माया से बेचारा गिरगिट भी परेशान हो गया है? यह महानुभाव चाल -चरित्र- चिंतन बदलकर अलग-अलग विधानसभा में अलग-अलग प्रत्याशियों का प्रचार करते नजर आते हैं? दिलचस्प है कि फिर भी यह नेताओं के खास हैं? क्योंकि इनका मुख्य हथियार आनन्द चूर्ण रूपी चापलूसी है! जो किसी भी नेता को बाग-बाग कर देने को काफी है?

बाराबंकी में विधानसभा चुनाव का जोर व शोर लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में विभिन्न दलों के समर्पित कार्यकर्ता अपने- अपने प्रत्याशी के प्रचार- प्रसार में पूरी ताकत झोंके हुए हैं। लेकिन चुनाव अभियान में एक ऐसी भी जमात है जिसने अपने भविष्य के फायदे के लिए दलीय प्रतिबद्धता के परखच्चे उड़ा दिए हैं! विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक सियासत में अवतरित इन मायावी मरीचों ने एक साथ भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस ही नहीं बल्कि अन्य छोटे दलों के प्रत्याशियों को भी खुश करने की कारगर युक्ति ईजाद कर ली है? सियासी मारीच में गजब का चापलूसी गुण है! बेशर्मी ने इनकी खाल को इतना मोटा कर दिया है कि कोई कुछ भी कहे! इन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला?

हालात यह है कि ऐसे मारीच सुबह किसी विधानसभा में किसी अन्य प्रत्याशी का प्रचार करते हैं? दोपहर में दूसरे प्रत्याशी का दूसरी विधानसभा में? तो रात होते-होते यह दो- तीन प्रत्याशियों के प्रचार को होशियारी से निपटा ही देते हैं। अर्थात इनका रंग बदलने का जो जज्बा है वह गिरगिट को भी पीछे छोड़ देता है? ऐसे सियासी मारीच पल भर में भाजपाई अथवा सपाई या फिर कांग्रेसी अथवा बसपाई बनते नजर आते हैं?

जब कभी यह आम लोगों की पकड़ में आते हैं तो यह संबंधों को निभाने वाले संत बने नजर आते हैं! चेहरे पर कोई संकोच नहीं! बातचीत में कोई रुकावट नहीं! बेबाक बोलते हैं फलाँने भैया से मेरे व्यक्तिगत संबंध हैं? इसमें पार्टी की कहीं कोई बात ही नहीं है !हम पहले संबंध देखते हैं! पार्टी बाद में देखते हैं समझे? संबंधों के लिए ही हमारा प्रयास है कि फलाँने भैया चुनाव जीत जाएं! इसके साथ फिर वह इतना उपदेश देते हैं कि इन नकली सियासी संतो के उपदेशों को सुनकर दल का असली समर्थक अथवा शुभचिंतक भी चुप्पी साध जाता है।

विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक बाराबंकी जिले का कोई भी विधानसभा क्षेत्र सियासी मारीचों की माया से अछूता नहीं है? सभी विधानसभाओं में इनकी अच्छी जमात है! इन्होंने अपने अन्य साथियों को भी इस अभियान को तेज करने के लिए अलग अलग इलाकों में छोड़ रखा है। हैरत है कि वे भी कम चतुर नहीं है।बड़े घाघ हैं!
अपने आका मारीच काका के निर्देश का पालन करते हुए वे संबंधों से आगे निकल जाते हैं? बोलते हैं! फलाँने मेरी जाति के हैं ।मेरे धर्म के हैं। वह चुनाव जीतेंगे तो मेरे काम बनेंगे? हमको दूसरा कौन क्या दे देगा?अपना काम देखो! ज्यादा दिमाग न लगाओ?

स्पष्ट है कि ऐसे सभी सियासी मारीचों का मुख्य हथियार चापलूसी है!ताज्जुब तब होता है जब विभिन्न दलों के नेता अपने इन सियासी मरीचों की असलियत को जानते हुए भी उन्हें अपने दिल का टुकड़ा समझते हैं? क्योंकि यह सियासी अय्यार चापलूसी से नेताजी को इतना खुश कर देते हैं कि! नेता जी आनंद में लीन होकर अपने असली कार्यकर्ता को भी तिलांजलि देने में एक बार भी कुछ नहीं सोचते?

फिलहाल कुछ ऐसे भी होशियार प्रत्याशी हैं जो ऐसे मरीचों को भली-भाँति जानते हैं। वह उनसे अपना काम तो निकालते हैं लेकिन उन्हें अपनी किसी गंभीर मंत्रणा में शामिल नहीं करते? इस विधानसभा से उस विधानसभा में उछल-कूद करने वाले इन भवेषियों का उद्देश्य और लक्ष्य यही रहता है कि सरकार किसी की बने! विधायक कोई बने! भविष्य में उनका कोई काम ना रुके? अर्थात उनके स्वार्थों की पूर्ति होती रहे? आज सियासी स्तर पर ऐसे मायावी चाल चरित्र चिंतन बदलने वाले मरीचों को देखकर बेचारा गिरगिट आंसू बहा रहा है? शायद गिरगिट यही सोच रहा होगा कि उसके रंग बदलने की विधा को इन इंसान रूपी गिरगिटों ने किसी लायक छोड़ा? दूसरी ओर विभिन्न दलों के समर्पित कार्यकर्ता इन मायावी महानुभाव की असलियत को जानते हुए भी इनका विरोध नहीं कर पाते! क्योंकि उन्हें पता है कि वह उनके अपने नेता के कनफुसियां खास हैं?

बेशर्मी की मोटी खाल से लबरेज ऐसे मारीच अपने स्वार्थ अभियान को आगे बढ़ाते हुए वैचारिक प्रतिबद्धता को धूल चटाते हुए आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं! प्रत्याशी को इस समय केवल वोट चाहिए? भले ही उसके अपने कार्यकर्ताओं की मेहनत पर ऐसे लोग चोट पर चोट कर रहे हो? फिलहाल तो सभी दलों में ऐसे सियासी मरीचों का अभिनंदन जारी है??

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