हिन्दू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का त्योहार हर साल माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक बसंत पंचमी हर साल जनवरी या फरवरी महीने में पड़ती है। इस बार बसंत पंचमी 29 जनवरी 2020 को है।
बसंत पंचमी की तिथि और शुभ मुहूर्त:
बसंत पंचमी की तिथि: 29 जनवरी 2020
पंचमी तिथि प्रारंभ: 29 जनवरी 2020 को सुबह 10 बजकर 45 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्त: 30 जनवरी 2020 को दोपहर 1 बजकर 19 मिनट तक
बसंत पंचमी का महत्व:
बसंत पंचमी के दिन बसंत ऋतु का आगमन होता है। ऋतुराज बसंत का बड़ा महत्व है। कड़कड़ाती ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है। यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है।
मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। बसंत को प्रेम के देवता कामदेव का मित्र माना जाता है। इस ऋतु को काम बाण के लिए अनुकूल माना जाता है। वहीं, हिंदू मान्यताओ के अनुसार इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए हिंदुओं की इस त्योहार में गहरी आस्था है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नाना का विशेष महत्व है। पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है।
बसंत पंचमी के दिन क्यों की जाती है सरस्वती की पूजा?
सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा ने जीव-जंतुओं और मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर सन्नाटा छाया रहता है। ब्रह्मा ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुईं। उस स्त्री के एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में था।
बाकि दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी।ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। जल धारा कोलाहल करने लगी। हवा सरसराहट कर बहने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादनी और वाग्देवी समेत कई नामों से पूजा जाता है। वो विद्या, बुद्धि और संगीत की देवी हैं। ब्रह्मा ने देवी सरस्वती की उत्पत्ती बसंत पंचमी के दिन ही की थी। इसलिए हर साल बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्म दिन मनाया जाता है।
बसंत पंचमी के दिन कैसे की जाती है देवी सरस्वती की पूजा?
पश्चिम बंगाल और बिहार में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का विशेष महत्व है। न सिर्फ घरों में बल्कि शिक्षण संस्थाओं में भी इस दिन सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है।बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा कर उन्हें फूल अर्पित किए जाते हैं।
इस दिन वाद्य यंत्रों और किताबों की पूजा की जाती है।इस दिन छोटे बच्चों को पहली बार अक्षर ज्ञान कराया जाता है। उन्हें किताबें भी भेंट की जाती हैं।इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है।इस दिन पीले चावल या पीले रंग का भोजन किया जाता है। बंगाल में इस दिन पीले रंग की खिचड़ी खाई जाती है।
मां सरस्वती का मंत्र:
मां सरस्वती की आराधना करते वक्त इस श्लोक का उच्चारण करना चाहिए।
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च
सरस्वती वंदना:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
कामदेव की पूजा:
बसंत पंचमी के दिन कुछ लोग कामदेव की पूजा भी करते हैं। पुराने जमाने में राजा हाथी पर बैठकर नगर का भ्रमण करते हुए देवालय पहुंचकर कामदेव की पूजा करते थे। बसंत ऋतु में मौसम सुहाना हो जाता है और मान्यता है कि कामदेव पूरा माहौल रूमानी कर देते हैं। दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बसंत कामदेव के मित्र हैं, इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है।
जब कामदेव कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है। इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। बसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु माना जाता है। इसमें फूलों के बाणों को खाकर दिल प्रेम से सराबोर हो जाता है। इन कारणों से बसंत पंचमी के दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा की जाती हैै।
Related Posts