कथाब्यास महेंद्र “मृदुल” जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र जी के पावन चरित्रों का वर्णन करते हुये कहा कि……..
शान्ती देवी अवधेश वर्मा एसएम न्यूज़24टाइम्स विशेष संवाददाता मसौली जनपद बाराबंकी 8707331705
मसौली बाराबंकी मसौली क्षेत्र के कटरा भवानी नीम चबूतरा पर आयोजित पंच दिवसीय श्री रामकथा के चतुर्थ दिवस में सीतापुर से आये हुए कथाब्यास महेंद्र “मृदुल” जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र जी के पावन चरित्रों का वर्णन करते हुये कहा कि जब दशरथ जी को लगा की अब हम को इस राज्य का कार्यभार अपने बड़े पुत्र राम जी को दे देना चाहिये, तो अगले दिन राज दरबार जोड़ा गया और ये प्रस्ताव रखा गया तो सबने कहा कि हां यही उचित है मृदुल जी ने बताया कि मनुष्य को अपना जीवन रहते जितनी जल्दी हो सके सत्कर्म कर लेना चाहिये अपने अधूरे काम को पूरा कर लेना चाहिए नीति भी यही कहती प्रथमं नार्जितं विद्या,द्वितीयं नार्जितं धनं,तृतीयं नार्जितं पुंडय चतुर्थे किम करिष्यतं ।*ब्यक्ति को जीवन के पहले पन में विद्या और दूसरे पन में जब शरीर में बल आ जावे तब धन कमाना चाहिये और तीसरे पन में पुण्य वाला काम कर लेना चाहिये और अगर इन तीनो पन में आपने ये काम नही किये तो चौथे पन में आप कुछ नही कर पावेंगे यही सब विचार करके राजा ने घोंषणा कर दी अब तो अवध में चारो तरफ खबर फैल गयी और राज तिलक की तैयारी सुरु हो गयी पूरी अयोध्या को सजाया जाने लगा लेकिन इधर देवलोक में देवताओ में चिंतन बढ़ा की अगर प्रभु राजा बन गये तो जिस हेतु से नारायण का अवतरण हुआ है तो उसमें विघ्न आएगी इसलिये सभी देवता जाकर देव गुरु बृहस्पति जी से जाकर मिले और फिर गुरु जी के बताने से गुरु जी के साथ माता सरस्वतीजी से जाकर सारी बात बताई और कहा कि आप कोई ऐसा यत्न बताइये जिससे राम जी राजा न बनने पावे तो माता ने फटकारते हुए कहा कि अरे देवताओ स्वर्ग लोक में रहकर भी ऐसी ओछी बुद्धि वाला काम करते हो तो देवताओ ने कहा कि हे माता जी एक काम के बिगड़ने से सारे विस्व का कल्याण हो तो उसे बिगड़ जाने दो लेकिन विस्व का कल्याण होना चाहिये तब माता जी ने सोंच समझकर आधी रात के समय अयोध्या में आयी और जो कैकेई माता की दाशी मंथरा थी उसकी बुद्धि में प्रवेश करके मानो उसकी बुद्धि को ही पलट दिया हो उसने सुबह जाकर कैकेई से कहा कि तुम ये क्या कर रही हो तुम्हे पता भी है कुछ अरे कल राजतिलक राम जी का होगा फिर तुम्हारे पुत्र भरत का क्या होगा पहले तो रानी मंथरा को बहुत डांटती है परंतु जब कुछ देर बाद रानी ने सोंचा समझा तो बोली अब तू ही बता मै क्या करूँ जिससे मेरे भरत को राज्य मिल जावे मंथरा ने समझाया जाकर राजा से दो वरदान मांग लो पहले वरदान में भरत को राज्य और दूसरे में राम जी को चौदह वर्षो का वनवास मांग लो रानी ने वैसा ही किया राजा से माँगा की ,
सुनहु प्राण पति भावत जीका। देहु एक वर भरतहि टीका।।*
और दूसरा वर मांगा तापस वेष विशेष उदासी।चौदह वर्ष राम वनवासी।। राजा ने जब सुना की राम को वनवास और भरत को राजतिलक मांग में मांगे गए है तो उनको बहुत तकलीफ हुयी न चाहते हुए भी उनको वरदान देने पड़े भगवान राम जी पिता के वचन मानकर वन को चल पड़े तो उनके साथ माता सीता और भइया लक्ष्मण जी के साथ वन के लिये चल पड़े इधर अयोध्या के नर ,नारी सब बिलखने लगे भगवान की इस चर्चा को भारी संख्या में भक्तों ने प्रेम के साथ श्रवण किया ।इस मौके पर डा0दिलीप कुमार विश्वकर्मा रमेश वर्मा देवी शंकर सोनी नन्द किशोर सैनी विन्धेश्वरी वर्मा मायाराम सन्तोष कुमार सुनील वर्मा सन्दीप कुमार आदि भक्त उपस्थित रहे।
शान्ती देवी अवधेश वर्मा एसएम न्यूज़24टाइम्स विशेष संवाददाता मसौली जनपद बाराबंकी 8707331705