ट्रंप तालिबान नेताओं से मुलाकात के लिए अब बेक़रार क्यों हैं? उन्होंने अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने का फ़ैसला क्यों किया, क्या अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद का सफ़ाया हो गया? या वहां शांति स्थापित हो गयी?

समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ

ट्रंप ने कहा है कि वर्षों बाद हम अमेरिकी सैनिकों को घर वापस लाना चाहते हैं

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि ‘‘जल्द ही’’ तालिबान के नेताओं से मुलाकात करने की उनकी योजना है। साथ ही उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध कोई और लड़े, विशेषकर उस क्षेत्र के देश यह लड़ाई लड़ें।
ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मैं जल्द ही तालिबान के नेताओं से व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात करुंगा। हम उम्मीद कर रहे हैं कि उन्होंने जो कहा है वे उस पर अमल करेंगे, वे आतंकवादियों का खात्मा करेंगे। वे कुछ बहुत बुरे लोगों का खात्मा करेंगे। 
इसी प्रकार ट्रंप ने कहा कि वे इस लड़ाई को जारी रखेंगे, हमें अफगानिस्तान में आतंकवादियों का सफाया करने में बड़ी सफलता मिली किन्तु इतने वर्षों के बाद अब वक्त आ गया है कि अपने लोगों को घर वापस लाया जाए। हम अपने लोगों को घर लाना चाहते हैं।’’
क़तर की राजधानी दोहा में अमेरिका और तालेबान गुट के मध्य एक समझौते पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद ट्रम्प का यह बयान सामने आया है। इस समझौते के अनुसार अमेरिका 14 महीनों के अंदर अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुला लेगा। अफगानिस्तान में अभी अमेरिका के लगभग 13,000 सैनिक मौजूद हैं।
रोचक बात यह है कि वर्ष 2001 में अमेरिका ने आतंकवाद और अलक़ायदा को ख़त्म करने के बहाने अफ़गानिस्तान पर हमला किया था।
सवाल यह उठता है कि क्या अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद का अंत हो गया, वहां शांति स्थापित हो गयी? जानकार हल्कों का मानना है कि अफ़ग़ानिस्तान से न आतंकवाद का अंत हुआ है और न वहां शांति स्थापित हुई है और अमेरिका ने आतंकवाद के ख़ात्मे के लिए अफ़गानिस्तान पर हमला नहीं किया था उसके अपने कुछ विशेष लक्ष्य थे जो शायद कुछ पूरे हो गये।
यही नहीं अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित होने की तो दूर की बात वहां मादक पदार्थों की खेती डबल से भी अधिक हो गयी है, सीरिया और इराक़ से बहुत से आतंकवादियों ने भाग कर अफ़ग़ानिस्तान को अपना नया बसेरा व घोंसला बना लिया है।
यही अमेरिका बहादुर है जो तालेबान को आतंकवादी गुट कहता था अब उसके साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर रहा है।
इसी तरह जानकार हल्कों का मानना है कि जब से तालेबान ने अमेरिकी विमान और ड्रोन को अपने नियंत्रित क्षेत्र में मार गिराया है और उसके बाद वहां कोई अमेरिकी या अफ़ग़ान सुरक्षा कर्मी चाह कर भी नहीं पहुंच सका तो अमेरिका को अपनी खोखली बहादुरी का बहुत अच्छी तरह अंदाज़ा हो गया
इसी तरह जनवरी में इराक में स्थित आधुनिकतम हथियारों से लैस अमेरिका की छावनी पर ईरान ने मिसाइलों की बारिश करके उसके घमंड की हवा निकाल दी और पूरी दुनिया ने उसकी ताक़त की वास्तविकता देख ली और अब वह अपनी दिखावटी ताक़त के भ्रम को बाक़ी रखकर क्षेत्र से भागने की जुगत में है।
यही नहीं जानकार हल्कों का मानना है कि अमेरिका ने तालेबान के साथ समझौता करके अपने नतमस्तक होने का सबूत दे दिया है और अब वह धीरे- धीरे पूरे क्षेत्र से जायेगा और 19 वर्षों से जारी मुसीबत को तालेबान के गले में डालकर ट्रंप जल्द से जल्द अफ़गानिस्तान से अपना बोरिया- बिस्तर लेपटना चाहते हैं इसलिए वे तालेबान नेताओं से दीदार के लिए आतुर हैं।

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