नेताओं की कद काठी बनाम जनता का विश्वास◆ बाराबंकी में किस करवट बैठेगा चुनावी ऊँट ?

सदानंद वर्मा 9956155438

खादी कुर्ता पहन लेने से अथवा विधायक, सांसद बन जाने से कोई नेता नहीं बन जाता। विचारणीय है कि आजादी के बाद से अब तक बाराबंकी में अनेक एमएलए एमएलसी एमपी हुए हैं लेकिन नेता सभी नहीं बन पाए, आखिर क्यों ?


आम जनता के दिलों पर राज करने वाला ही असल नेता होता है। सच्चा और ईमानदार जनप्रतिनिधि ही नेता बनता है। किसी एक सरकार या दल की बात नहीं है, बात है आम जनता से छुपाकर जनप्रतिनिधियों द्वारा सरकारी दफ्तरों से वसूली करना कराना, थानाध्यक्षों से अपनी गाड़ियों में डीजल पेट्रोल भरवाना, आफिसों से महीना बाँध देना, ठेकेदारों से हिस्सेदारी तय करना आदि इत्यादि। जनहित की कीमत पर ऐसी कारगुजारी करने वाले जनप्रतिनिधि आखिर नेता तो बनने से रहे। यह पब्लिक है सब जानती है। कहते हैं काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ाई जा सकती। मतलब यह कि जनता एक बार धोखा खा सकती है बार-बार नहीं।


बाराबंकी की जनता अपने जनप्रतिनिधियों को ठीक से जानती है, किसी की असलियत छुपी नहीं है। इतिहास साक्षी है कि बाराबंकी में ऐसे कई मंत्री रहे हैं जो कि प्रतिष्ठा लगाकर मंत्री रहते हुए जिला पंचायत सदस्य के चुनाव भी नहीं जिता पाए। कई विधायक ऐसे रहे हैं जो दुबारा जीत नहीं सके। सिर्फ एक ही एक बार विधायक रहे हैं। जनता की सेवा का अवसर मिलने के बाद शपथ और संकल्प खूँटी पर टाँगकर मस्त हो जाते रहे हैं रंगीन शामों के आगोश में।
ऐसे तथाकथित नेता न तो जनता की आवाज बन पाते हैं और न ही जनता इन्हें अपने दिलों में जगह देती है। सच पूछिए तो जाति धर्म की बातें करके, आरोप-प्रत्यारोप लगाकर, चरित्र हनन करके, दारू और पैसे वितरित करके, प्रतिद्वंदी के खास लोगों को डिस्टर्ब करके चुनाव जीतने के सहज रास्तों को अपनाना राजनीतिज्ञों की आम फितरत होती जा रही है। ऐसे में जनता आखिर विश्वास करे तो कैसे और किस पर। जिनके चाल चरित्र में टेढ़ापन, कालापन, और नाकारापन भरा हो ऐसे लोग आखिर विश्वसनीय हो भी कैसे सकते हैं ? लेकिन जनता का दुर्भाग्य है कि अंधों में काने राजा का चुनाव करना होता है। जनता नेता नहीं जनप्रतिनिधि चुनती है।
अब बात करते हैं मौजूदा लोकसभा के चुनाव की। जिनमें प्रमुख रूप से तीन प्रत्याशी मैदान में हैं- भाजपा प्रत्याशी राजरानी रावत, इंडिया गठबंधन प्रत्याशी तनुज पुनिया, बसपा प्रत्याशी शिव कुमार दोहरे। कुछ प्रत्याशी ऐसे भी हैं जो बाराबंकी की जनता के साथ एक कदम भी साथ नहीं चले हैं, सिर्फ अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण अथवा हैसियत से अधिक अपना वजन समझने के कारण जोर आजमाइश में जुटे हैं। यही लोकतंत्र है कि कोई भी प्रत्याशी हो सकता है।
सीधे सीधे दो प्रत्याशियों में चुनाव की संभावना दिख रही है किंतु जबतक परिणाम न आ जाये तबतक सभी अपनी विजय की दावेदारी के हकदार हैं। आरोप प्रत्यारोप के बीच बाराबंकी का चुनाव इसलिए अधिक दिलचस्प हो गया है कि भाजपा और इंडिया गठबंधन की तरफ से कुर्मी मतदाताओं को रिझाने के लिए बेनी बाबू जी के नाम की माला जपी जाने लगी है। कुर्मी लीडर बतौर बाराबंकी में पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ही जनता के दिलों में जगह बनाने में सफल रहे हैं और जनता इनके न रहने के बाद भी इन्हें अपना नेता मानती है। साथ ही अनेक जनप्रतिनिधि और भी हैं जिनकी छवि जनता के बीच विश्वसनीय बनी हुई है, पद पर न रहने के बाद भी जनता नेतृत्व स्वीकार कर रही है। जैसे कई बार मंत्री रहे संग्राम सिंह वर्मा भी अपने सरल व्यवहार और कार्यशैली से जनता में विश्वास कायम करने में सफल रहे हैं। बिरादरी में इन दोनों नेताओं की मजबूत पकड़ है। और इस चुनाव में दोनों नेताओं का आशीर्वाद इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के साथ है। इसीलिए भाजपा के लोग बेनी बाबू का नाम लेकर जनता को उकसाने और कुर्मी मतदाताओं को अपने पक्ष में रोके रहने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं। अगर भाजपा की बात की जाए तो स्पष्ट है कि विकसित हो रहे कुर्मी नेतृत्व को डैमेज किया जाता रहा है। आज की तिथि में सिर्फ अवनीश कुमार सिंह एम एल सी ही भाजपा में एक ऐसे नेता हैं जिनकी छवि जनता में साफ सुथरी और विश्वसनीय है। इसप्रकार बाराबंकी के लोकसभा चुनाव में कुर्मी बिरादरी के बीच स्मृतिशेष बेनी प्रसाद वर्मा के पुत्र पूर्व मंत्री राकेश कुमार वर्मा, एम एल सी अवनीश कुमार सिंह पटेल और पूर्व मंत्री संग्राम सिंह के अनुज सुरेंद्र सिंह वर्मा सक्रिय हैं और इन्ही के नेतृत्व से बिरादरी के मतों का बटवारा भी होना है। यानी एक तरफ राकेश कुमार वर्मा और दूसरी तरफ अवनीश कुमार सिंह पटेल हैं। कुर्मी मतदाताओं का पुरजोर समर्थन किसे मिलेगा यह समय बताएगा और स्वयं कुर्मी मतदाता ही तय करेंगे।

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