क्षेत्र में युद्ध भड़का कर ईरान पर हथियारों के प्रतिबंध की समय सीमा बढ़ाने की कोशिश, क्या है अमरीका व इस्राईल की चाल?

समाचार एजेंसी न्यूज़ एसएम न्यूज़ के साथ

ऐसे समय में जब दुनिया बुरी तरह से कोरोना वायरस के संकट में फंसी हुई है, प्रतिरोध के मोर्चे के सदस्य देशों में सैन्य टकराव पैदा करने की कोशिशें तेज़ होती जा रही हैं।

इन दिनों इराक़ में स्वयं सेवी बल हश्दुश्शाबी पर हमलों में वृद्धि हो गई है, सीरिया में प्रतिरोध के मोर्चे के सैन्य ठिकानों पर निरंतर हमले हो रहे हैं और यमन में अंसारुल्लाह संगठन पर सैन्य दबाव बढ़ गया है, ये सब अमरीका व इस्राईल की ओर से प्रतिरोध के मोर्चे पर नए व सोचे समझे दबाव के चिन्ह हैं। ऐसा लगता है कि इस नई चाल में इस्राईल, अमरीका के प्रतिनिधित्व में प्रतिरोध के मोर्चे के सदस्यों को उकसा कर एक सैन्य टकराव शुरू करना चाहता है, चाहे वह सीमित स्तर ही का क्यों न हो ताकि उसकेी छाया में अमरीका को ईरान के ख़िलाफ़ हथियारों के प्रतिबंध की समय सीमा बढ़ाने का बहाना मिल जाए।

ऐसा लगता है कि ईरान की ओर से अंतरिक्ष में सैन्य उपग्रह के सफल प्रक्षेपण ने प्रतिरोध के मोर्चे के सदस्यों से टकराव के इस्राईल के संकल्प को और अधिक बढ़ा दिया है। जर्मनी में लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन की गतिविधियों पर प्रतिबंध और इसी के साथ मंत्री मंडल के गठन के बारे में नूरी मालेकी को इराक़ में अमरीका के राजदूत का हस्तक्षेपपूर्ण पत्र, अमरीका व इस्राईल के इस दबाव के कुछ अन्य पहलुओं को उजागर करता है।

वास्तविकता यह है कि परमाणु समझौते से निकल जाने के कारण अमरीका, इस समझौते के माध्यम से ईरान पर लगे हथियारों के प्रतिबंधों की समाप्ति को रोक नहीं सकता। इसी के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस व चीन की ओर से साथ न दिए जाने की वजह से वह, सुरक्षा परिषद में भी ईरान के ख़िलाफ़ नया प्रस्ताव पारित नहीं करा सकता। इस आधार पर मौजूदा हालात में उसके पास ले-दे कर यही रास्ता बचता है कि वह परमाणु समझौते में शामिल यूरोपीय सरकारों को इस्तेमाल करे। अमरीका समझता है कि वह यूरोपीय देशों को यह बात समझाने में कामयाब हो जाएगा कि अगर ईरान पर लगे हथियार संबंधी प्रतिबंधों को ख़त्म कर दिया गया तो वह प्रतिरोध के मोर्चे के सदस्य देशों को हथियार देने लगेगा।

ऐसा लगता है कि अगले चार महीने का समय ही वह एकमात्र अवसर है जो इस्राईल के सामने है और वह हर क़ीमत पर इसे इस्तेमाल करना चाहता है। वह प्रतिरोध के मोर्चे के सदस्य देशों को युद्ध में धकेलना चाहता है ताकि अमरीका के हाथ में बहाना दे सके। अगर मौजूदा हालात में इस्राईल सीरिया व इराक़ के मोर्चों पर टकराव शुरू करवाने में कामयाब नहीं भी हो पाता है तो वह पश्चिमी तट के कुछ भागों पर अवैध क़ब्ज़ा करने का अवसर तो हाथ से नहीं जाने देगा जिसका उसने वादा किया था।

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